गुरु सप्तमी महोत्सव पर निकला वरघोड़ा
मंत्री जैन पुरे वरघोड़े में कार्यकर्ता की तरह प्रसाद बाटते हुए चले
उज्जैन। जैन समाज द्वारा परम पूज्य, दादा गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सुरिश्वरजी गुरुमहाराज के 191 जन्म जयंती एवं 111वें स्वर्गारोहण दिवस गुरु सप्तमी 25 दिसम्बर को महोत्सव के रूप में मनाया गया।
अनुयोगाचार्य वीररत्त्न विजय मसा की पावन निश्रा में त्रिस्तुतिक जैन श्रीसंघ नमकमडी द्वारा गुरु सप्तमी महोत्सव के अंतर्गत विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए। जिसमें प्रातः 9 बजे ज्ञानमंदिर नमकमंडी से भव्य वरघोड़ा निकला जो नगर के प्रमुख मार्गाे से होता हुआ रंगमहल धर्मशाला पहुचा। ऊर्जा मंत्री पारस जैन पुरे वरघोड़े में कार्यकर्ता की तरह प्रसाद बांटते हुए चल रहे थे। महिला एवं बहु मंडल सुसज्जजित विशेष परिधान में नृत्य एवं भक्ति करते हुए शामिल हुए। रंगमहल में मंत्री के आतिथ्य में गुणानुवाद सभा हुई जिसमे नरेंद्र तल्ल्लेरा एवं राकेश बनवट द्वारा सामूहिक गुरूवंदन कराया गया। श्री राजेन्द्र जैन बहु परिषद् द्वारा मंगलाचरण एवं स्वागत गीत प्रस्तुत किया गया। स्वागत उदबोधन श्रीसंघ अध्यक्ष मनीष कोठारी ने दिया। शांतिलाल रुणवाल, मानकलाल गिरिया एवं गुणमाला बेन नाहर ने अपने उदबोधन के द्वारा गुरु के गुणों की व्याख्या की। संचालन संजय कोठारी ने किया एवं आभार नितेश नाहटा ने माना। आरती एवं मोतीमहल धर्मशाला में स्वामी वात्सल्य द्वारा साधार्मिक भक्ति का लाभ कोठारी परिवार द्वारा लिया गया।
दोपहर 12.39 पर गुरुपद महापूजन लाभार्थी परिवार मनोरमा देवी पारसचंद मनीष कोठारी परिवार एवं सकल श्रीसंघ द्वारा पढ़ाई गयी। शांतिबेन मेहता, नीलू गिरिया द्वारा लाभार्थी परिवार का बहुमान किया गया। सभा की शुरुआत अतिथियों के साथ अनिल रुणवाल, मदनलाल रुणवाल, नविन बाफना, राजबहादुर मेहता, सुनील मेहता, राजमल कोठारी, रमणलाल गिरिया, नरेश बाफना आदि ने दीप प्रज्जवलन के साथ की। दोपहर 12 बजे रोगी कल्याण समिति के माध्यम से जिला चिकित्सालय में मरीजों एवं उनके परिजनों को भोजन कराया गया। वीरेन्द्र गोलेचा ने बताया कि रात्रि 8 बजे रंगमहल धर्मशाला में भव्य भक्ति संध्या आयोजित की गयी जिसमे सभी समाजजन चेन्नई के गायक श्रेणिकराज नाहर एवं उज्जैन की जोड़ी, राजेन्द्र पटवा एवं विकास पगारिया की आवाज पर भक्ति के साथ झूमे।
गुणानुवाद करना तो सरल हे किन्तु गुणानुराग मुश्किल- श्री विररत्न विजय जी
अनुयोगाचार्य विररत्न विजय महाराज ने श्री राजेन्द्रसूरीजी को याद करते हुए अपने प्रवचन में कहा कि जैन शाशन हमेशा जयवंत रहे जिवंत रहे करोडो वर्षाे तक यसस्वी रहे। तीर्थकत भगवन्तों द्वारा इस शाशन की स्थापना करने के पश्चात इसे हम तक शुद्ध स्वरूप में पहुचाने का कार्य हमारे आचार्य भगवन्तो ने श्रेष्ठता से किया है, इन्होंने जैन शाशन की यशो गाथा को जन जन तक गुंजित किया है। राजेंद्र सुरिश्वरजी ने शिथलाचार को समाप्त कर त्रियोधार करवाया, वैराग्य और आराधना का मार्ग प्रसस्त किया। अब हमें समझना है कि हमें किस भावना के साथ चलना है क्योकि गुणानुवाद करना तो सरल है किन्तु गुणानुराग मुश्किल, गुरुदेव ने क्या जीवन जिया इससे ज्यादा महत्वपूर्ण जो उन्होंने मार्ग बताया है उस पर चलना है यही सार्थक गुणानुवाद है।