तुम उतने ही परेशान रहोगे, जितने अब हो -सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर
आलेख
तुम उतने ही परेशान रहोगे, जितने अब हो
-सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर
आज का इंसान, पुरुष हो या स्त्री उसे किसी भी परिस्थिति में आज में आनंद नहीं दिखता। वह कल्पना के आनंद में आज को नष्ट करता जा रहा है। आज की अपनी पारिवारिक व्यवस्था और परंपरागत संस्कारों के खिलाफ कुचक्र में फंसता जा रहा है। उसको लगता है यह नहीं वह मिल जाए, वैसा हो जाए, उसके जैसा धन आ जाए। उसके जैसा घर हो जाए। उसके जैसी खुशी आ जाए। उसके जैसी पत्नी मेरी हो। स्त्री सोचती है उसके जैसा आदमी मेरा होता। .... तो हम अपने आज और जो हमारे पास है, उससे संतुष्ट नहीं हैं। और खोए हुए हैं, उस आनंद की चाह में, जो ना हमारा है और ना हमारा कभी होगा।
हम उस स्थिति में अपने को ढालना चाहते हैं जिस परिस्थिति में कोई ओर जी रहा है। पर उससे पूछो कि उस स्थिति में उसके हाल क्या हैं..? क्या वह भी तुम्हारी तरह नहीं सोच रहा है कि जो उसके पास है उससे संतुष्ट नहीं है और जो उसके पास नहीं है उसकी चाह उसमें है। इस मनोविज्ञान को समझना कि हम संतुष्ट हैं, अपने आप की आज की स्थिति से, निष्कर्ष पर पहुंच जाएंगे, इस सब को समझने के लिए कुछ इस तरह समझिए।
जब जवान हैं तो किस से परेशान हैं? जवानी से। जब बूढ़ा गया है तो किस से परेशान हैं? बुढ़ापे से। जब पैसा नहीं आ रहा तो क्यों परेशान हैं? पैसा नहीं आ रहा है। जब पैसा बहुत आ गया तो क्यों परेशान है? पैसा आ गया। बच्चे पैदा नहीं हो रहे तो परेशान हैं? बच्चा पैदा हो गया तो क्यों परेशान हैं? शादी नहीं हुई तो क्यों परेशान हैं? शादी हो गयी तो क्यों परेशान हैं?
तो जो जिस अवस्था में होता है वो सोचता है उसकी परेशानी उस अवस्था के कारण है। ये बात गौर से समझना, जो जिस अवस्था में होता है शरीर की, अनुभव की, जीवन की जिस भी अवस्था में है वो सोचता है उसकी परेशानी का सम्बन्ध उस खास अवस्था से है, लेकिन अगर हम यह पाएँ कि फर्क ही नहीं पड़ता हम किस अवस्था में है, परेशान तो हम सदा रहते हैं। तो निष्कर्ष क्या निकला? हमारी परेशानी का सम्बन्ध हमारी अवस्था से नहीं है, हमारे होने से है।
हम हैं ऐसे की अवस्था कुछ भी रहे हम परेशान ही रहेंगे। तुम चले जाओ किसी स्वप्न सुन्दरी या अप्सरा के पास कोई दिक्कत नहीं है, बस तुम तब एक नयी परेशानी लेकर आ जाओगे, कहोगे ठीक नहीं थी और भी अधिक सुन्दरी चाहिए। कोई दिक्कत नहीं है, तुम्हें परेशान रहना ही रहना है।
तुम्हारी, तुम स्त्री हो या पुरुष किसी तरीके से मान लो कामवासना मिटा दी जाए।तो तुम्हें क्या लग रहा है तुम्हारी परेशानियाँ मिट जाएँगी? नहीं और वासनाग्रस्त हो जाओगे। तुम इतने ही परेशान रहोगे जितने अब हो, बस तब तुम अपनी परेशानी की एक नई झूठी वजह ढूँढ लोगे, जैसे वे सब पुरानी जो तुमने वजहें बतायी थी वो झूठी थीं। वैसे फिर तुम कोई नई वजह बता दोगे, वो वजह भी बराबर की झूठी होगी।