RBI का फैसला, अब नहीं खुलेगा देश में बिना ब्याज वाला इस्लामिक बैंक
अब देश में इस्लामिक बैंक नहीं खुलेगा. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने देश में इस्लामिक बैंक खोलने की इजाजत नहीं देने का फैसला लिया है. सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में RBI ने बताया कि सभी नागरिकों को वित्तीय और बैंकिंग सेवाओं के समान अवसर की सुलभता को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया है.
इस्लामिक या शरिया बैंकिंग ऐसी वित्तीय व्यवस्था है, जो ब्याज नहीं लेने के सिद्धान्तों पर आधारित है. इसकी वजह यह है कि इस्लाम में ब्याज लेना हराम माना जाता है. भारत में इस्लामिक बैंक खोलने के प्रस्ताव पर सरकार और RBI ने विचार किया. इसके बाद इसको नहीं खोलने का फैसला लिया.
इससे पहले अप्रैल में भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा था कि ब्याज मुक्त बैंकिंग शुरू करने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की गई है. हालांकि केन्द्र सरकार के निर्देश पर रिजर्व बैंक में एक अंतर विभागीय समूह (आईडीजी) स्थापित किया गया है, जिसने देश में ब्याज मुक्त बैंकिंग शुरू करने के कानूनी, तकनीकी और नियामकीय पहलुओं की समीक्षा करने के बाद अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी है.
इस्लामिक बैंक खोलने का प्रस्ताव इसलिए किया खारिज
इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था को लेकर RIT के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में केंद्रीय बैंक ने कहा कि सभी नागरिकों को बैंकिंग और वित्तीय सेवाएं विस्तृत और समान रूप से उपलब्ध हैं. लिहाजा इस्लामिक बैंक को खोलने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया. इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था एक ब्याज मुक्त बैंकिंग व्यवस्था है.
आरटीआई के तहत आरबीआई से ब्याज मुक्त बैंकिंग की दिशा में उठाए जाने वाले कदमों की जानकारी मांगी गई थी. मालूम हो कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने 28 अगस्त 2014 को जन धन योजना की शुरुआत की थी, जिसका मकसद देश के सभी परिवारों को वित्तीय समावेशन के दायरे में लाना है.
इससे पहले ब्याज मुक्त बैंकिंग प्रणाली के मसले पर गंभीरता से विचार करने के लिए साल 2008 के अंत में आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया गया था.
इस्लामिक बैंक के कर्ज की खास बात
इस्लामिक बैंक के कर्ज की खास बात यह है कि अगर आप समय से अपनी पूरी ईएमआई का भुगतान कर देतें हैं, तो बैंक आपको अपने मुनाफे से कुछ राशि निकालकर बतौर ईनाम दे देगा. इस कर्ज में चूंकि किसी तरह का ब्याज नहीं रहता, तो आपकी ईएमआई शुरू से अंत तक एक रहती है और इस कर्ज अदायगी की समय सीमा में कोई हेरफेर नहीं होता.
अब दोनों तरह के बैंकों के कर्ज देने की प्रक्रिया को जानकर आपको समझ आ गया होगा कि आखिर कैसे इस्लामिक बैंक शरियत के नियम के मुताबिक बिना ब्याज के काम कर लेते हैं. मालूम हो कि भारत में मुसलमानों की बड़ी संख्या और कम साक्षरता के चलते कई गरीब मुसलमान परिवार इस्लामिक कानून के कारण बैंकिंग व्यवस्था से नहीं जुड़ पाते.
खाड़ी देशों समेत अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों में भी मुसलमानों को बैंकिग से जोड़ने के लिए ऐसे बैंकों को खोला गया है. भारत में केन्द्रीय रिजर्व बैंक पहले ही ऐसे बैंकों की स्थापना के लिए हरी झंड़ी दे चुका है. अब वह इसे हकीकत में लाने की कोशिश में लगा है.