भ्रष्टाचार के स्तर में आई कमी : रिपोर्ट
देश में भ्रष्टाचार का स्तर घट रहा है। पिछले साल 31 प्रतिशत लोगों को स्कूल, अदालत, बैंक या अन्य कामों के लिए 10 रुपए से लेकर 50 हजार रुपए तक की रिश्वत देनी पड़ी। 2005 में 53 प्रतिशत लोगों को रिश्वत देनी पड़ती थी। यानी भ्रष्टाचार के स्तर में 22 प्रतिशत की कमी आई। यह बात नीति आयोग के सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज ने अपनी 11वीं इंडिया करप्शन स्टडी-2017 रिपोर्ट में बताई है।
- 20 राज्यों में किए गए सर्वे पर बेस्ड इस रिपोर्ट में भ्रष्टाचार को लेकर लोगों की सोच और अनुभव को आधार बनाया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक देश में सालाना 6350 करोड़ रुपए रिश्वत का लेन-देन होता है। जबकि 2005 में सालाना 20500 करोड़ रुपए रिश्वत का लेन-देन होता था। वहीं, 56 प्रतिशत लोगों का मानना है कि नोटबंदी के बाद देश में भ्रष्टाचार के स्तर में कमी आई है।
दक्षिण के राज्यों में भ्रष्टाचार ज्यादा
- रिपोर्ट के मुताबिक मध्य भारत के राज्यों के मुकाबले दक्षिणी राज्यों में भ्रष्टाचार ज्यादा है। सबसे अधिक 77 प्रतिशत लोगों को कर्नाटक में रिश्वत देनी पड़ी। दूसरे पर आंध्र प्रदेश 74 प्रतिशत और तीसरे नंबर पर तमिलनाडु 68 प्रतिशत है। वहीं, हिमाचल प्रदेश सबसे कम भ्रष्टाचार वाला राज्य है, यहां केवल 3 प्रतिशत लोगों को रिश्वत देनी पड़ी।
पिछले साल 43 प्रतिशत लोगों ने माना कि भ्रष्टाचार बढ़ा
- भ्रष्टाचार के बारे में मीडिया में आई खबरों और लोगों से सुनी बातों के आधार पर पिछले साल 43 प्रतिशत लोगों ने यह माना कि देश में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। जबकि सेंटर की ओर से 2005 में की कई पहली स्टडी में 73 प्रतिशत लोगों का मानना था कि देश में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। यानी 12 साल में करप्शन का लेवल कम हुआ है।
नोटबंदी और लैंड रिफॉर्म का असर
- रिपोर्ट को जारी करते हुए नीति आयोग के मेंबर बिबेक देबराय ने कहा कि आने वाले साल में भ्रष्टाचार में और कमी देखी जाएगी। यह नोटबंदी और लैंड रिफॉर्म का असर होगा। सेंटर की महानिदेशक पीएन वासंती का कहना है कि यह लोगों में अवेयरनेस का असर है।
1 प्रतिशत लोग ही करते हैं RTI का इस्तेमाल
- सर्वे में 58 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उन्हें आरटीआई की जानकारी है, पर महज एक फीसदी लोग ही उसका इस्तेमाल करते हैं। पब्लिक सर्विसेज की ऑनलाइन अवेलिबिलिटी, मिसाल के लिए एलपीजी के आधार से लिंक होने के चलते भी भ्रष्टाचार कम हुआ है।
10 पब्लिक सर्विसेज जिन्हें नॉर्म्स माना गया
- जिन सर्विसेज को नॉर्म्स (मानक) बनाया गया, उनमें फूड सप्लाय (खाद्य आपूर्ति), बिजली, पानी, अस्पताल, स्कूल, पुलिस, अदालत, बैंक, जमीन रजिस्ट्रेशन, कर शामिल हैं।
अदालतें और पुलिस बिना पैसे लिए नहीं करतीं काम
- लोगों का अनुभव है कि अगर अदालतें और पुलिस को पैसे न दिया जाए तो वे जनता का काम नहीं करते हैं। घूस नहीं देने पर 3.5 प्रतिशत लोगों को अदालत से मनचाही तारीख या आदेश की वैरिफाइड कॉपी नहीं हासिल हो सकी, उन्हें बस तारीख पे तारीख मिली। घूस न देने पर 1.8 प्रतिशत लोगों की पुलिस ने एफआईआर तक नहीं लिखी।