‘मेक इन इण्डिया’ ने किया ‘मेड इन चाइना’ को पस्त
दुनिया भर के बाजारों को सस्ते और दोयम दर्जे के उत्पादों से पाटकर अपनी मैन्युफैक्चरिंग की बादशाहत दिखाने वाले चीन को गुणवत्ता और भरोसे के बाजार में भारत से पटखनी मिली है. यूरोपीय संघ और दुनिया के 49 बड़े देशों को लेकर सोमवार को जारी मेड इन कंट्री इंडेक्स (एमआइसीआइ-2017) में उत्पादों की साख के मामले में चीन हमसे सात पायदान पीछे है. सूचकांक में भारत को 36 अंक मिले हैं, जबकि चीन को 28 से ही संतोष करना पड़ा है. सौ अंकों के साथ पहले स्थान पर जर्मनी, दूसरे पर स्विट्जरलैंड है
स्टैटिस्टा ने अंतरराष्ट्रीय शोध संस्था डालिया रिसर्च के साथ मिलकर यह अध्ययन दुनियाभर के 43,034 उपभोक्ताओं की संतुष्टि के आधार पर किया. यूरोपीय संघ समेत सर्वे हुए 50 देश दुनिया की 90 फीसद आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं. सर्वे में उत्पादों की गुणवत्ता, सुरक्षा मानक, कीमत की वसूली, विशिष्टता, डिजायन, एडवांस्ड टेक्नोलॉजी, भरोसेमंद, टिकाऊपन, सही तरीके का उत्पादन और प्रतिष्ठा को शामिल किया गया है.
पीएम की मुहिम का असर
2014 में देश की सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विभिन्न योजनाओं के जरिए ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा दिया. मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए दुनिया भर में पीएम मोदी ने दौरे के दौरान खूब प्रचार-प्रसार किया. फायदा यह हुआ कि कई मल्टीनेशनल कंपनियां भारत में आकर प्रोडक्ट तैयार करने और आयात-निर्यात करने के लिए रूचि दिखाई. इसी का नतीजा है कि भारत पनडुब्बी से लेकर सेटेलाइट तक खुद बनाने में सक्षम हो चुका है. 2014 में देशी कंपनियों द्वारा निर्मित मंगलयान मंगल की कक्षा में पहले प्रयास में स्थापित करने वाला भारत दुनिया का एकमात्र देश बना.
'मेड इन' लेबल का इतिहास
19वीं सदी के समापन के दौरान जर्मनी दुनिया के बाजारों को बड़े ब्रांड की नकल करके घटिया उत्पाद बेचकर पाट रहा था. भले ही आज उसके उत्पादों और इंजीनियरिंग का कोई सानी न हो, लेकिन तब वह भारी मात्रा में अपने घटिया और बड़े ब्रांडों की नकल करके बनाए उत्पादों को ब्रिटेन निर्यात कर रहा था. जिससे ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था डांवाडोल होने लगी. लिहाजा ब्रिटेन ने नकली उत्पादों से बचने को ‘मेड इन’ लेवल की शुरुआत की.
अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में चीन का पर्दाफाश
चीन ने न्यूनतम मजदूरी के बूते अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जमकर घटिया और सस्ता माल उतारा. चीन हमेशा से संसाधनों की सीमित उपलब्धता के चलते मैन्युफैक्चरिंग में घटिया कच्चे माल का इस्तेमाल करता है. लेकिन अब उसके उत्पादों की कलई खुल चुकी है. उत्पाद वैश्विक गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतर रहे.