आज विदा हो जायेगा ‘आईएनएस विराट’, 30 साल से भारतीय नौसेना का अटूट हिस्सा
करीब 30 साल देश की समुद्री-सीमाओं की रखवाली करने के बाद भारतीय नौसेना का विमानवाहक युद्धपोत, ‘आईएनएस विराट’ आज रिटायर हो रहा है. मुंबई में एक पारंपरिक सैन्य समारोह में विराट को विदाई दी जायेगी.
करीब 15 साल तक विराट ने अकेले भारत के दोनों समुद्री तट- पूर्व और पश्चिम तट- के साथ साथ अरब सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक अकेले ही दुश्मनों की नापाक हरकतों पर ही नजर ना रखी बल्कि किसी को पास भी नहीं फटकने दिया. नौसेना का एक एयरक्राफ्ट कैरियर, ‘विक्रांत’ करीब 18 साल पहले रिटायर हो गया था. जबकि रशिया से दूसरा एयरक्राफ्ट कैरियर, ‘विक्रमादित्य’ नौसेना के जंगी बेड़े में 2014 में शामिल हुआ.
विराट को भी भारत ने 1987 में ब्रिटिश रॉयल नेवी से खरीदा था. उस वक्त विराट का नाम ‘एचएमएस हर्मेस’ था और ब्रिटेश नौसेना में 25 साल गुजार चुका था. उसने अर्जंटीना के खिलाफ फॉकलैंड-युद्ध में महत्वपूर्ण हिस्सा लिया था. अब भारत में करीब 30 साल सेवा देने के बाद ‘विराट’ की भी रिटायर हो रहा है. विराट का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में सबसे अधिक समय तक सेवा देने के लिए शुमार है.
अब एक बार फिर भारत के पास एक विमानवाहक युद्धपोत रह जायेगा. क्योंकि कोच्चि शिपयार्ड में बन रहा स्वदेशी विमानवाहक युद्धपोत, विक्रांत को तैयार होने में अभी दो-तीन साल लग सकते हैं (पुराने वाले युद्धपोत के नाम पर ही इसका नाम रखा गया है जैसाकि नौसेना की पंरपरा होती है).
क्या है विराट की ताकत
करीब 24 हजार टन वजनी विराट की लंबाई करीब 740 फीट और चौड़ाई करीब 160 फीट थी. उस पर डेढ़ हजार (1500) नौसैनिक तैनात होते थे. विराट पर एक समय में तीन महीने का राशन रखा रहता है क्योंकि विराट एक बार समंदर में निकलता था तो 90 दिन तक बंदरगाह में वापस नहीं लौटता था. उसपर तैनात सी-हैरियर लड़ाकू विमान और सीकिंग हेलीकॉप्टर विराट की ताकत को कई गुना बढ़ा देते थे.
हालांकि ना तो करगिल युद्ध और ना ही श्रीलंका के पीसकीपिंग मिशन में विराट का इस्तेमाल किया गया लेकिन उसने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई. आखिरीबार, विराट को दुनिया ने विशाखापट्टनम में इंटरनेशनल फ्लीट रिव्यू (आईएफआर) में दिखाई दिया था. लेकिन इससे पहले विराट ने अमेरिका और जापान के साथ साझा युद्धभ्यास, मालाबार में हिस्सा लिया था.
किसी भी देश की नौसेना की ताकत होता है विमान-वाहक युद्धपोत यानि एयरक्राफ्ट कैरियर. जिस किसी भी देश की नौसेना के जंगी बेड़े में ये शक्तिशाली युद्धपोत होता है, उस देश की समुद्री ताकत दुगनी या यूं कहें कि तिगनी-चौगनी हो जाती है. एयरक्राफ्ट कैरियर चाहे अपनी समुद्री-सीमा में हो या सात-समंदर पार, वो अपने देश का प्रतिनिधित्व तो करता ही है अपने-आप में संप्रभुता का प्रतीक भी होता है. दूसरे शब्दों में वो समुद्र में ‘चलता-फिरता किला’ है.
जैसा कि नाम से विदित है, एयरक्राफ्ट कैरियर की ताकत उसपर तैनात लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर होते हैं. मिग, सुखोई, मिराज, इत्यादि सुपरसोनिक फाइटर प्लेन, जो आवाज की गति से भी तेज उड़ते हैं और पलक झपकते ही दुश्मन को नेश्तानबूत करने का माद्दा रखते हैं, वे इस जंगी युद्धपोत को और अधिक घातक बना देते हैं. ये जहाज कितना विशालकाय होता है इसका पता इस बात से सहज लगाया जा सकता है कि इसका फ्लाई-डेक यानि जहां से फाइटर प्लेन टैक-ऑफ या लैंडिग (उड़ान) भरते हैं वो दो-तीन फुटबॉल ग्राउंड की बराबर होता है.
कितना महंगा होता है एयरक्राफ्ट
लेकिन एक एयरक्राफ्ट कैरियर जितना महंगा होता है (20 हजार करोड़ से लेकर 50-60 हजार करोड़ कीमत), उसका रखरखाव भी उतना ही मंहगा होता है. माना जाता है कि एक विमान-वाहक युद्धपोत के रखरखाव में हर साल करीब 100 करोड़ रुपये का खर्चा आता है. जबतक एयरक्राफ्ट कैरियर ‘ओपरेशनल’ यानि सक्षम होता है तबतक तो हर देश की नौसेना उसका खर्चा उठाती है, लेकिन उसके रिटायर (अक्षम) होने पर काफी मुश्किल आती है. उसके रख-रखाव में होने वाला खर्च किसी को भी चुभने लगता है. लेकिन जिस देश की सेवा में उस जहाज ने 25-30 या फिर 40-50 साल लगाएं हों उससे इमोशनल-अटैचमेंट भी काफी हो जाता है.
यही वजह है कि पिछले साल रक्षा मंत्रालय ने सभी तटीय-राज्यों को चिठ्ठी लिखकर विराट को म्यूजियम बनाने की पेशकश की थी. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री, चंद्रबाबू नायडू ने इसको खरीदने की इच्छा जताई है. आंध्र प्रदेश की तटीय-राजधानी, विशाखापट्टनम में पहले से ही पनडुब्बी म्यूजियम है.
रक्षा मंत्रालय ने विराट के रिटायरमेंट से पहले म्यूजियम बनाने की पेशकश इसलिए की क्योंकि जब हाल ही में भारतीय नौसेना के एयरक्राफ्ट कैरियर, ‘आईएनएस विक्रांत’ को तोड़कर (और पिघलाकर) स्क्रैप यानि कबाड़ में तब्दील कर दिया गया, तब देश में काफी हाय-तौबा मचा. ‘आईएनएस विक्रांत’ करीब 17 साल पहले नौसेना से रिटायर हुआ था.
कब खरीदा गया था?
भारत ने आईएनएस ‘विक्रांत’ को ब्रिटेन से 60 के दशक में तब खरीदा था जब वो ब्रिटिश रॉयल-नेवी से रिटायर हो चुका था. भारतीय नौसेना में 30-35 साल काम करने के बाद, विक्रांत को 1998 में रिटायर कर दिया गया. अगले 17 साल यानि 2015 तक वो ऐसे ही मुंबई डॉकयार्ड में खड़ा रहा. जेट्टी पर जगह घेरने के साथ-साथ हर साल नौसेना को 100 करोड़ रुपये उसके रख-रखाव में खर्च करना पड़ रहा था. ऐसे में नौसेना ने उसे स्क्रैप-डीलर्स को बेच दिया. ये बात जैसे ही सार्वजनिक हुई, हाय-तौबा मच गया. हर किसी ने नौसेना के इस कदम का विरोध किया. लेकिन किसी ने उस भीमकाय जहाज का क्या किया जाए, कोई सुझाव नहीं दिया. मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा, लेकिन कोई रास्ता ना मिलता देख सर्वोच्च न्यायालय ने भी ‘विक्रांत’ को स्क्रैप में तब्दील करने की हरी झंडी दिखा दी. जाहिर है विराट के साथ वो ना हो जो विक्रांत के साथ हुआ.