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आपदा के निश्चित स्थानों का स्थायी समाधान खोजें, आपदा जोखिम न्यूनीकरण की राज्य-स्तरीय कार्यशाला



विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री श्री उमाशंकर गुप्ता ने कहा है कि आपदा के निश्चित स्थान का स्थायी समाधान विशेषज्ञ खोजें। उन्होंने कहा कि ऐसे स्थान, जहाँ लगातार आपदा आ रही है, के कारण और स्थायी बचाव के उपाय अपनाना आवश्यक है। इसे रोकने कार्य-योजना भी बनायी जाये। श्री गुप्ता ने यह बात आपदा जोखिम न्यूनीकरण को विकासात्मक योजनाओं का अभिन्न हिस्सा बनाने के लिये राज्य-स्तरीय कार्यशाला के शुभारंभ समारोह में कही। दो-दिवसीय कार्यशाला मध्यप्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा यूनीसेफ के सहयोग से की जा रही है।

श्री उमाशंकर गुप्ता ने कहा कि आपदा प्रबंधन के लिये अपनायी गयी सामग्री का रख-रखाव आवश्यक है। उन्होंने कहा कि जिन विभागों के पास बचाव की आवश्यक सामग्री उपलब्ध रहती है, उसे सूचीबद्ध किया जाना चाहिये।

श्री गुप्ता ने कहा कि आपदा की संभावनाओं को कैसे कम किया जा सकता है, इस पर भी विचार किया जाना चाहिये। एक जैसी घटना हमेशा एक ही स्थान पर हो रही हो, तो उसका आकलन करना होगा। उन्होंने विशेषज्ञों से कहा कि आपदा नहीं आये, इस पर भी गहन चिंतन होना चाहिये। आपदा प्रबंधन में सभी विभाग की महती भूमिका होती है। विभागों को आपसी सामंजस्य बनाकर काम करना चाहिये। आपदा को दूर करने नागरिक और समाज को भी भागीदार बनाना चाहिये।

श्री गुप्ता ने कहा कि कार्यशाला में जो निष्कर्ष निकलेगा, उसके उपयोगी अमल के लिये सरकार को सुझाव प्रस्तावित किया जाये। मुख्यमंत्री के ध्यान में लाकर सुझावों को अपनाया जायेगा।

गृह सचिव श्री डी.पी. गुप्ता ने कहा कि कार्यशाला में आपदा प्रबंधन के लिये सभी विभाग की सहभागिता पर चर्चा होगी। उन्होंने कहा कि आपदा से बचाव के लिये पहले से तैयार रहने से बड़ी दुर्घटना को टाला जा सकता है। उन्होंने ह्योगो एवं सेन्दई फ्रेक-वर्क में अंतर बताते हुए आपदा प्रबंधन योजनाओं को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण दिल्ली द्वारा दी गयी मार्गदर्शिका के परिप्रेक्ष्य में अद्यतन करने संबंधी जानकारी दी।

यूनीसेफ के चीफ फील्ड ऑफीसर श्री माइकल स्टीवन जूमा ने कार्यशाला के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने सेन्दई फ्रेम-वर्क 2015-30 के विषय में जानकारी दी।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य श्री कमल किशोर ने अधोसंरचना संबंधी क्षति को समझाया। उन्होंने बताया कि विकासात्मक कार्यों में आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सभी सहयोगी विभाग को अपनी अलग आपदा प्रबंधन योजना तैयार करने को कहा गया है। विगत 10 वर्ष में भारत में आपदा से होने वाली मृत्यु दर पर नियंत्रण पाया जा सका है।

डीएमआई उपाध्यक्ष श्री नंदन दुबे ने आपदा संबंधी प्रशिक्षण एवं जन-जागृति के लिये सुझाव दिये।

मध्यप्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के उप सभापति श्री सुरेन्द्र सिंह ने राज्य-स्तरीय विभागीय और जिला-स्तरीय आपदा प्रबंधन कार्य-योजनाओं को अद्यतन करने के संबंध में जानकारी दी।

द्वितीय सत्र में उड़ीसा आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री कमल लोचन मिश्रा ने उड़ीसा में बाढ़ तथा तूफान के लिये किये जा रहे उपायों पर विस्तार से चर्चा की।

कार्यशाला में होमगार्ड एवं सिविल डिफेंस, राहत, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, लोक निर्माण, किसान-कल्याण एवं कृषि विकास, पशुपालन, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, ग्रामीण यांत्रिकी सेवा, नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण, मध्यप्रदेश राज्य योजना आयोग तथा भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की विभागीय आपदा प्रबंधन कार्य-योजना पर चर्चा हुई। यूनीसेफ डीआरआर सेक्शन के चीफ श्री लार्स बर्न्ड्, राष्ट्रीय तथा अन्य राज्यों के आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के और मध्यप्रदेश स्थित विभिन्न विभाग के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
दुर्गेश रायकवार

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