देशभक्ति की बातों से कुछ लोग परेशान क्यों - अभिनेता श्री अनुपम खेर
लोक-मंथन समयानुकूल - श्री सोमदोंग रिनपोछे
परिवार में, समाज में, सब जगह मंथन जारी रखना होगा-डॉ.चन्द्रप्रकाश द्विवेदी
तीन दिवसीय लोक-मंथन का समापन
आज हम देशभक्ति की बात करते हैं तो कुछ लोगों को परेशानी होने लगती है। वह कहते हैं कि देशभक्ति हमें न सिखाओ। यह सही है कि कोई किसी को देशभक्ति नहीं सिखा सकता, यह तो भीतर से आती है। देशभक्ति हमारे खून में है। जब भी अवसर आता है, यह प्रकट होती है। देशभक्ति की बात से यदि किसी को पीड़ा होती है तो होने दीजिए, हम तो अपना काम करेंगे। यह विचार लोक-मंथन के समापन समारोह के विशिष्ट अतिथि प्रख्यात अभिनेता श्री अनुपम खेर ने तीन दिवसीय राष्ट्रीय-विमर्श लोक-मंथन के समापन समारोह में व्यक्त किए। 'लोक-मंथन' संस्कृति विभाग मध्यप्रदेश शासन, भारत भवन और प्रज्ञा प्रवाह संस्था के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हुआ।
श्री खेर ने कहा कि पिछले दो-तीन वर्ष में असहिष्णुता और देशभक्ति के विषय जान-बूझकर उठाए गए हैं। जब असहिष्णुता की बहस शुरू की गई, तब मेरे भीतर का भारतीय जागा और उसने कहा कि यह चुप रहने का समय नहीं है। इस कारण मैंने असहिष्णुता का खुलकर विरोध किया। उन्होंने बताया कि कुछ लोग देश-प्रेम की बात करने वालों की उपेक्षा करने का प्रयास करते हैं। सवाल है कि आखिर देशभक्ति की बात करने पर हम रक्षात्मक क्यों हों? श्री खेर ने बताया कि वह कश्मीरी पंडित हैं, इसलिए उनकी रगों में देशभक्ति है। अपने ही देश में निर्वासित होने के बाद भी कश्मीरी पंडितों ने कभी भी देश के खिलाफ कोई बात नहीं कही। उन्होंने बताया कि प्रत्येक भारतीय के लिए राष्ट्र सबसे पहले होना चाहिए। किसी भी व्यक्ति के अंगुलियों के निशान दुनिया में किसी दूसरे व्यक्ति से नहीं मिलते हैं अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय है। हम सबकी अलग-अलग पहचान है, लेकिन सबसे पहली पहचान भारतीय है।
समापन सत्र के मुख्य अतिथि बौद्ध धार्मिक गुरु सोमदोंग रिनपोछे ने लोक-मंथन को समयानुकूल बताते हुए कहा कि यह एक नई दिशा देगा। लोक-मंथन की महत्ता इस बात से है कि इसमें देश, काल, स्थिति को विचार के रूप में स्वीकार करते हुए 'राष्ट्र सर्वोपरि' को महत्त्व दिया गया है। आज चारों ही स्थितियाँ सहज नहीं हैं। देश में प्रदूषण का बोलबाला है। स्वच्छ पानी नहीं है। गति की शीघ्रता एवं स्थिति की स्थिरता ने विचित्र परिस्थिति पैदा कर दी है। हर व्यक्ति चुनौतियों की चर्चा करता है। समाधान किसी के पास नहीं है। हिंसा की अत्याधिक वृद्धि, युद्ध और आतंकवाद के रूप में दिखाई देती है। मनुष्य कहीं भी स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं करता है। उन्होंने कहा कि महाभारत का युद्ध 18 दिन में समाप्त हो गया, लेकिन वियतनाम का 18 वर्ष चला। अपना शस्त्र बाजार बनाए रखने के लिए तब भी हिंसा हुई, जो आज तक जारी है। उन्होंने कहा कि प्रदूषण के लिए प्लास्टिक को जिम्मेदार ठहराया जाता है, किन्तु प्लास्टिक उत्पादन रोकने की बात नहीं होती।
लोक-मंथन आयोजन समिति के कार्याध्यक्ष डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने कहा कि शास्त्र ने कहा कि दूसरा कोई नहीं है। लोक के प्रति कबीर ने कहा कि 'प्रेम गली अति सांकरी, जा में दोई न समाए'। अत: यहाँ सभागार में दूसरा कोई है ही नहीं। अत: सबसे पहले विचार करते हैं कि दासता क्या होती है, साथ ही विदेशी दासता से मुक्ति की इच्छा भी है। उन्होंने बताया कि सिंकदर के एक सैनिक ने ऋषि सेलेटस से पूछा कि ज्ञान चर्चा करनी है। ऋषि ने कहा कि वस्त्र उतार और मेरे पास शिला पर लेट जा। वस्त्र उतारने के लिए तैयार नहीं तो मन पर पड़े पर्दे कैसे उतारेगा। हमने लोक-मंथन में मन पर पड़े पर्दे उतारने की कोशिश की है। डॉ. द्विवेदी ने कहा कि गायों को गिनने से दूध नहीं मिलता। क्या सिर्फ बौद्धिक विमर्श से समाज को अमृत मिल जाएगा? इस विमर्श को आगे ले जाना होगा, परिवार में, समाज में, सब जगह, यह मंथन जारी रखना होगा। मंथन में बहुत अधिक लोगों की आवश्यकता नहीं होती। गीता का अमृत कृष्ण और अर्जुन के संवाद से निकला। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि मुझे विश्व की चिंता है, इसलिए भारत की चिंता करता हूँ, क्योंकि विश्व के सभी प्रश्नों का उत्तर भारत से मिलेगा। वहीं, गुरु गोलवलकर ने कहा है कि दुर्जनों की सक्रियता से उतनी हानि नहीं हुई जितनी सज्जनों की निष्क्रियता से हुई है।
इससे पहले आयोजन समिति के सचिव श्री जे. नंदकुमार ने लोक-मंथन की रिपोर्ट पर चर्चा की। कार्यक्रम का संचालन एवं आभार प्रदर्शन लोक-मंथन के संयोजक श्री दीपक शर्मा ने किया।