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शिक्षा तक सभी की पहुंच सुलभ और सस्ती हों, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ये हों शामिल



संदीप कुलश्रेष्ठ     

     प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाने के लिए पूर्व कैबिनेट सचिव श्री टी.एस.आर. सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति गठित की थी। इस समिति द्वारा अपना प्रतिवेदन सौंप दिया गया हैं, किंतु इसका पूरा खुलासा अभी नहीं हुआ हैं। आर एस एस के सर संघ चालक डॉ. मोहन भागवत ने हाल ही में विजयादशमी के अवसर पर अपने उद्बोधन में कहा है कि शिक्षा तक सभी की पहुंच सुलभ और सस्ती होनी चाहिए। देश के शहरी और ग्रामीण अंचलो तक सबकों शिक्षा मिले इसके लिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह बात शामिल होना जरूरी हैं ।
              भारत में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में बनी थी। इसमें सन् 1992 में संसोधन किया गया था। तब से लेकर आज तक 24 सालों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर कोई ठोस काम नहीं हुआ । केवल प्रयोग ही हुए हैं। जिसके जो मन में आया ,उसने वह लागू कर दिया। अब 21 वीं सदी में शिक्षा के तौर तरीकों और बुनियादी स्वरूप का पूरा ढांचा ही बदल गया हैं। अब इसी परिप्रेक्ष्य में नई राष्ट्रीय सुरक्षा नीति भी बनाने की जरूरत हैं।
              आर एस एस से ही जुडे एक संगठन षिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संस्थापक और सचिव श्री अतुल कोठारी ने हाल ही में एक नई बात कही हैं। उनका कहना हैं कि देष में प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी में मातृ भाषा के माध्यम से ही शिक्षा दी जाए। उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया। उनका कहना है कि अंग्रेजी किसी भी स्तर पर अनिवार्य नहीं होना चाहिए। इस संबंध में उनके अपने तर्क हैं। श्री अतुल कोठारी ने अपनी बात मानव संसाधन विकास मंत्रालय तक भी पहुंचाई है, जो राष्ट्रिय शिक्षा नीति बना रही हैं।
               हर तबके तक शिक्षा पहुंचे, इससे कोई भी इनकार नहीं कर सकता। किंतु यह शिक्षा सभी की पहुंच में हों, सुलभ हों, और सस्ती भी होना चाहिए। इस और ध्यान देने की सख्त जरूरत हैं। इसके लिए केंद्र शासन और राज्य शासन को मिलकर ठोस प्रयास करने की जरूरत हैं। तभी यह संभव हो सकेगा। इस महत्वपूर्ण कार्य में समाज की सहभागिता भी आवश्यक हैं। उन्हें भी इस दिशा में जागरूक होने की जरूरत है।
                प्राइवेट स्कूलों की तुलना में हमारे देश में सरकारी स्कूलों में मूलभूत सुविधाए भी वर्तमान मे ंनहीं हैं। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में न तो अच्छे स्कूल भवन है और न ही उनके बैठने के लिए टाटपट्टी तक उन्हें उपलब्ध होती हैं। ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों के लिए टेबल कुर्सी तो अभी एक सपना ही हैं। यही नहीं ग्रामीण स्कूलों में अभी भी हालात यह हैं कि अनेक प्राथमिक शालाओं में कक्षा 1 से 5 वीं तक पढ़ाने के लिए मात्र एक शिक्षक तैनात हैं। सभी तक शिक्षा पहुंचे इसके लिए यह भी जरूरी हैं हर कक्षा के लिए अलग अलग शिक्षक तैनात हों। यही नही विषय के मान से भी शिक्षक होना चाहिए ताकि बच्चों को सही शिक्षा मिल सकें। सरकारी स्कूलों में इन मूलभूत सुविधाओं की आज अत्यंत आवश्यकता हैं।
                   भारत में राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाते समय यह ध्यान देने की जरूरत है कि केवल शहरी इलाके के बच्चों को सभी सुविधा मिले, इसके लिए मात्र योजना नहीं बनानी चाहिए। हमारे देश की 73 प्रतिषत जनता अभी भी ग्रामीण अंचलों में निवास करती हैं। उनके परिवेश, परिस्थिति तथा आवश्यकता के मान से उन्हें शिक्षा देने की आवश्यकता हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं जुटाना अत्यंत आवश्यक हैं। इसके बिना शिक्षा बेमानी हैं। शहर और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के बच्चों और विद्यार्थियों को स्तरीय शिक्षा मिले इसके लिए गहन चितंन मनन की आवश्यकता हैं। शहर और ग्रामीण दोनों स्तरों के ऐसी शिक्षा दी जाने की आवश्यकता हैं, जिससे कि उनमें भेदभाव न हो। और वे स्वस्थ्य प्रतिस्पर्धा कर सकें। इसके लिए यह जरूरी है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाने समय ग्रामीण परिवेश को ध्यान में रखते हुए शिक्षा नीति बनाई जाए ताकि वे भी देश के विकास में सबके साथ चल सके और अपना और अपने देश का विकास कर सके।
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