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रियो ओलम्पिक में भारत को मिलें मात्र दो पदक, देश की खेल नीति में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत



संदीप कुलश्रेष्ठ @  सवा सौ करोड की आबादी वाले हमारे देश में रियो में आयोजित ओलम्पिक में मात्र दो पदक मिले हैं। ये दो पदक भी हमारे देश की बेटियों ने प्राप्त किए हैं। इतने कम पदक मिलने पर सबकों निष्पक्ष रूप से गंभीर चिंतन और मनन करने की जरूरत हैं और कड़े निर्णय लेने की आवश्यकता हैं। इसके लिए देश की वर्तमान खेल नीति में आमूलचूल परिवर्तन करने की सख्त जरूरत हैं। हर हाल में राजनीति से परे रखकर खेल नीति बनाने की आवश्यकता हैं।
                     हाल ही में सम्पन्न रियो ओलम्पिक में सबसे पहले साक्षी मलिक (23 वर्ष) ने फ्री स्टाइल कुश्ती में कास्य पदक जीतकर देशवासियों को पहला तोहफा दिया। इसके बाद पी वी सिंधू (21 वर्ष) ने महिला बैडमिंटन में रजत पदक दिलाकर हमारे देश का नाम रोशन किया। यही मात्र दो पदक इस ओलम्पिक में हमारे देश को मिले हैं।
                     देश में अभी तक ओलम्पिक के इतिहास में पांच महिलाओं को पदक मिले हैं। सबसे पहले कर्णम मल्लेश्वरी ने वेटलिफ्टिंग में सन् 2000 में कास्यं पदक जीता था। इसके बाद साइना नेहवाल ने बैडमिंटन में सन् 2012 में कास्यं पदक प्राप्त किया था। सन् 2012 में ही एम सी मैरीकॉम ने मुक्केबाजी में कास्ंय पदक जीतकर देश का गर्व बढ़ाया था। इस प्रकार अभी तक कुल पांच महिलाओं ने ओलम्पिक के इतिहास में पदक दिलाकर अपना नाम हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज कर लिया हैं।
                      विदेशों की तुलना में हमारे देश में खेलों की स्थिति बहुत खराब हैं। हमारे यहां खेलों में भी राजनीति होती हैं। और हर तरह की कुटनीति भी होने के कारण ओलम्पिक में पदक पाने का हमारा ख्वाब मात्र ख्वाब बनकर रह जाता हैं। ओलम्पिक जैसे अन्तरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में भारत की             दयनीय स्थिति के अनेक कारण हैं, जो लगभग सर्वज्ञात हैं। अब हमें नए सिरे से देश की खेलनीति को बनाने की जरूरत हैं। इसके लिए कम से कम प्रतिवर्ष 10 हजार करोड रूपये का प्रावधान किया जाना आवश्यक हैं। इसमें प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में पढने वाले विद्यार्थियों में ही आपस में विभिन्न राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धाएँ करवा कर उनमें से योग्य प्रतिभाशाली छात्र छात्राओं का चयन किया जाना चाहिए। इन्हें शुरू से ही दीर्घकालीन लक्ष्य तय कर उच्च तकनीकी प्रशिक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित करने की आवश्यकता हैं। इन प्रतिभाशाली बच्चों के रहने खाने और अन्य मूलभूत आवश्यकताओं की समस्त व्यवस्था करने की समस्त जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होना चाहिए।
                प्रशिक्षणार्थी खिलाड़ी के अट्ठारह वर्ष के होते ही उन्हें राजपत्रित अधिकारी के समकक्ष वेतनमान तथा सुविधाएँ देकर उनके भविष्य की सुरक्षित व्यवस्था की जाने की भी आवश्यकता हैं। देश के केंद्र शासन के समस्त विभागों और समस्त केंद्रीय प्रतिश्ठानों को इसकी जिम्मेदारी दिया जाना उचित होगा। बड़े औद्योगिक घराने को भी प्रतिभाशाली छात्र छात्राओं को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता हैं। इससे खिलाडियों का भविष्य सुरक्षित होगा और  वे निश्चिंत और समर्पित होकर अपने खेल के प्रति ध्यान लगा सकेंगे। प्राथमिक और माध्यमिक शाला स्तर से ही चयनित होकर आने वाले इन प्रतिभाशाली विद्यार्थियों के शिक्षण , आवास, भोजन, कपड़े तथा खेल के प्रशिक्षण की सम्पूर्ण निशुल्क व्यवस्था करने की जरूरत हैं। विदेशों में यही होता हैं। शुरूवात से ही प्रतिभाशाली बच्चों को कड़ा प्रशिक्षण देकर तैयार करते हैं। इसके फलस्वरूप ही वे ओलम्पिक में अपने देश का नाम रोशन करतें हैं। यही हमारे देश में भी करने की सख्त आवश्यकता हैं। ऐसा करने से निश्चित रूप से परिणाम हमारे पक्ष में होगा। हमारे देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं हैं। यह सब जानते हैं। जरूरत सिर्फ इस बात की हैं कि उन्हें सही समय पर सही मार्गदर्शन और सही प्रशिक्षण मिलें । और उन्हें अपना भविष्य खेल में सुरक्षित दिखाई देगा तो निश्चित रूप से यह कहा जा सकता हैं कि हर क्षेत्र में हमारे देश के युवा हमारे देश का नाम रोशन करने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए हमेशा तत्पर रहेंगे और वे यह सिद्ध भी करके दिखाएंगे।

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