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विक्रमोत्सव 2025 : अंतरराष्ट्रीय इतिहास समागम का समापन


उज्जैन- जीवन के लिए कर्म करो। कर्म निष्काम करो। कर्म धर्म से युक्त हो और जो कर्म धर्म से युक्त है वह समाज के हितार्थ होता है। कर्मचारी समाज के हित में हो और अंत में यह धर्म से युक्त कर्म निष्काम कर्म में बदलना चाहिए‌। कर्म निष्काम होना चाहिए। समाज में एकता अखंडता और सामंजस्य लाना है तो उसके लिए प्रेम अत्यंत आवश्यक है। यह प्रेम निष्काम कर्म से ही लाया जा सकता है। आचार्य प्रद्युम्न ने आगे यह भी कहा की इतिहास लेखन की परंपरा जितनी लिखित है। उतनी अलिखित भी है। जिसमें कि हमारी जन श्रुतियाँलोकोक्तियाँकथाएँ इसकी मार्गदर्शिका है। लिखित इतिहास में उन्होंने ऋग्वेद को सर्वाधिक प्राचीन लिखित साहित्य का लिखित इतिहास का साक्षी माना। यह बात हरिद्वार के आध्यात्मिक संत आचार्य प्रद्युम्न ने विक्रमोत्सव अंतर्गत आयोजित अंतराष्ट्रीय इतिहास समागम के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते कही। उन्होंने कहा कि जो हमें वेदों में विभिन्न आख्यान मिलते हैं वह सभी कहीं ना कहीं इतिहास से जुड़े हुए हैं। क्योंकि उनमें भूमंडल की बात है। उनमें स्थान विशेष के देवी देवताओं या पूजा पद्धतियों की बात है।यह कहीं ना कहीं इतिहास से जुड़ता है।

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