top header advertisement
Home - उज्जैन << भारतीय इतिहास का हो तथ्यनिष्ठ और वस्तुनिष्ठ पुनर्लेखन : डॉ. सीताराम दुबे

भारतीय इतिहास का हो तथ्यनिष्ठ और वस्तुनिष्ठ पुनर्लेखन : डॉ. सीताराम दुबे


उज्जैन- आज इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता है। भारतीय इतिहास का तथ्यनिष्ठ और वस्तुनिष्ठ पुनर्लेखन किया जाना चाहिए। यह बात हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के पूर्व प्रोफेसर रहे डॉ. सीताराम दुबे ने विक्रमोत्सव- 2025 के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय इतिहास समागम में कही। उन्होंने भौतिकवादी, प्रत्ययवादी और उपाश्रयीवादी इतिहास लेखन को सीमित अर्थों में इतिहासलेखन अभिव्यिक्त किया। समागम के द्वितीय दिवस ‘’बृहत्तर भारत में इतिहास, संस्कृति, पुरातत्त्व एवं विक्रमादित्य’’ विषय पर भारत के विभिन्न अंचलों से पधारे विद्वानों ने अपने शोध-पत्रों का वाचन किया। इस सत्र में गोवा से पधारी डॉ. के.सी. लक्ष्मी देवी ने गोवा स्वतंत्रता संग्राम में मध्य -प्रदेश मालवा और उज्जैन के स्वतंत्रता सेनानियों की भूमिका पर शोध-पत्र का वाचन किया। दयालबाग आगरा विश्वविद्यालय से पधारी डॉ. अनीता ने साहित्य विशेष कर लोक-गाथाओं में विक्रमादित्य के आदर्श को प्रस्तुत किया। डॉ. नरेंद्र सिंह पंवार ने बृहत्तर भारत में विक्रमादित्य के साहित्यिक साक्ष्य विषय पर अपना शोध आलेख प्रस्तुत किया तथा दक्षिण पूर्वी-एशिया और मध्य-एशिया के देशों में भारतीयों द्वारा अपने श्रम से उपनिवेश बनाने की चर्चा की। सत्र में अमेरिका से शोधार्थी श्रेया हरि ऑनलाइन उपस्थित हुई। आपने महाकाल मंदिर की कला एवं स्थापत्य, पूजा शैली तथा परमार शासकों के योगदान पर चर्चा की। गुजरात वड़नगर से पधारे डॉ. रमेशचंद्र चतुर्वेदी ने प्राचीन शिक्षा प्रणाली और राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर चर्चा की। तत्पश्चात नासिक से पधारे डॉ. सुरेश पांडे ने बॉडी लैंग्वेज पर चर्चा की। आपने ध्यान दिलाया कि विश्व में सर्वप्रथम अजंता की गुफाओं में जो चित्र बने हैं वे विश्व में प्रथम बार बॉडी लैंग्वेज पर आधारित चित्र है। हरिद्वार से पधारे डॉ. अजय परमार ने हरिद्वार और गढ़वाल में विक्रमादित्य संबंधित साक्ष्यों को प्रस्तुत किया। आपने कन्नड़ ग्रंथ राजबलीकथे में निहित विक्रमादित्य सम्बन्धी जानकारी दी।

Leave a reply