top header advertisement
Home - उज्जैन << दस दिवसीय समरस कला शिविर का हुआ समापन

दस दिवसीय समरस कला शिविर का हुआ समापन


उज्जैन- हमारे देश में विभिन्न कलाओं का समावेश है। देश का आकार वृहद होने से हमारे अन्यत्र राज्यों की कलाओं से परिचित नहीं हो पाते है। कालिदास संस्कृत अकादमी निरन्तर शैलीयों के संरक्षण एवं संवर्धन को संजोने का पवित्र कार्य कर रही है। पूर्वोत्तर की पारम्परिक मुखौटा शैली से हम मालवा वासियों को न केवल परिचित कराना अपितु उस कला का स्थानीय कलाकारों को प्रशिक्षण देना सराहनीय कार्य है। यह उद्गार समरस कला शिविर के समापन अवसर पर नगर पालिक निगम की सभापति श्रीमती कलावति यादव ने व्यक्त किये। उक्त जानकारी देते हुए अकादमी के निदेशक डॉ. गोविन्द गन्धे ने बताया की दस दिवसीय समरस कला शिविर में माजुली असम से पधारे कलाकारो ने 16 चरित्रों के मुखौटो का निर्माण किया जो की पूर्णतः प्राकृतिक सामग्रियों बांस, मिट्टी एवं गाय के गोबर इत्यादि का मिश्रण कर बनाये गये। आपने स्वागत उद्बोधन में कहा कि असम की यह कला निर्जिव को सजीव करने का सामर्थ्य रखती है। असम की पारम्परिक मुखौटा शैली के वरिष्ठ कलाकार श्री खगेन गोस्वामी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा की बिना रूपसज्जा के भाव प्रकट करने का प्रमुख साधन मुखौटे है। इस पारम्परिक कला में आधुनिकता का समावेश करते हुए ऐसी मुख मुद्रा का अविष्कार किया जिसमें संवाद सहजता एवं सजीवता से प्रकट किये जा सके। मैं एवं मेरे दल के सदस्य इस शिविर के माध्यम से उज्जैन आये यहाँ आकर जो प्यार एवं सम्मान हमें प्राप्त हुआ उससे हम अभिभूत है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. विनिता माहुरकर ने किया, आभार शिविर संयोजक डॉ. संदीप नागर ने व्यक्त किया। इस अवसर पर आमंत्रित कलाकार श्री खगेन गोस्वामी, श्री नितुल बरा, श्री कृष्णकान्त बरा, श्री अनन्त कलिता, श्री प्रणव बरा, श्री भास्कर ज्योति गोस्वामी, श्री बीटूपर बरा को शॉल, प्रमाण-पत्र एवं महाकाल का प्रसाद भेंट कर सम्मानित किया गया। साथ ही अ.भा. कालिदास समारोह, 2024 के अवसर पर अकादमी के प्रकाशन विक्रय केन्द्र में सहभागिता करने वाले श्री गुरु सांदीपनि इंस्टीट्यूट ऑफ मेनेजमेंट के छात्र-छात्राओं को प्रमाण-पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। असम के कलाकार श्री कृष्णकान्त बरा ने विभिन्न मुखौटो के माध्यम से अभिनय कला का प्रदर्शन किया। विगत 36 वर्षो से बाबा महाकाल की सवारी में निरन्तर सेवा दे रहे श्री शैलेन्द्र व्यास स्वामी मुस्कुराके को असम के कलाकारो द्वारा निर्मित पारम्परिक पगड़ी अतिथियों द्वारा पहनाकर भेंट की गई। संस्कृत महाविद्यालय के आचार्यद्वय डॉ. सदानन्द त्रिपाठी, डॉ. श्रेयस कोरान्ने, श्री गुरु सांदीपनि इंस्टीट्यूट ऑफ मेनेजमेंट की प्राचार्या डॉ गीता तोमर, अकादमी की उपनिदेशक डॉ. योगेश्वरी फिरोजिया, ललित कला संकाय विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन एवं संस्कृत महाविद्यालय के छात्र एवं छात्राएँ बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

Leave a reply