पाप से घृणा करो, पापी से नहीं -दुर्लभमति माताजी
उज्जैन | तीर्थंकर का जीवन जगत में सर्वश्रेष्ठ व सर्वोत्तम होता है। रावण ने अपने जीवन काल में पाप किए पर उसने अपने पापों को क्षय करके तीर्थंकर प्रकृति को बंद कर लिया। इसलिए हमें पाप से घृणा करना चाहिए पापी से नहीं। यह बात श्री अर्हत चक्र मंडल विधान के दौरान धर्मसभा में आर्यिका दुर्लभमति माताजी ने समवशरण में पूछे प्रश्न का उत्तर देते हुए कही। श्री विद्या कुंभ चतुर्मास सेवा समिति द्वारा बताया गया रोज सुबह 7 बजे से श्रीजी अभिषेक शांतिधारा के बाद आचार्य विद्यासागर महाराज के पूजन प श्चात विधान की पूजन किया जाता है।