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ब्राह्मण जन व बटुकों ने श्रावणी उपाकर्म की परंपरा निभाई


उज्जैन। श्रावण पूर्णिमा के अवसर पर श्रावणी उपाकर्म करने के लिए सोमवार को सुबह से ही शिप्रा तट पर ब्राह्मण समाज के बटुक और जनेऊधारी ब्राह्मणों ने श्रावणी उपाक्रम परंपरा निभाई। वैदिक मंत्रोच्चार के बीच नदी में स्नान कर जनेऊ बदली गई। इस दौरान वर्ष में जाने-अनजाने में हुए पाप कर्म का प्रायश्चित किया।

सावन पूर्णिमा रक्षाबंधन पर सोमवार को ब्राह्मणों ने श्रावणी उपाकर्म की परंपरा निभाई। सुबह शिप्रा नदी के घाट पर स्नान कर विधिवत मंत्रोच्चार के साथ अपना नया जनेऊ बदला और उतारे गए जनेऊ को नदी में प्रवाहित किया। श्रावण मास की पूर्णिमा को श्रावणी उपाकर्म किया जाता है। सभी ब्राह्मण शिष्य अपने आचार्य के नेतृत्व में पवित्र नदियों के तट पर जनेऊ संस्कार निभाते है। पं. उमाकांत शुक्ल ने बताया कि श्रावण उपाकर्म करने के दौरान अपने पितरों का तर्पण कर जाने अनजाने में हुए समस्त दोषों से मुक्ति के लिए प्रार्थना की गई। ब्राह्मण बंधुओं द्वारा प्रत्येक वर्ष रक्षाबंधन पर यह कर्म शिप्रा नदी तट पर संपन्न किया जाता है। वहीं मंगलनाथ मार्ग स्थित गायत्री शक्तिपीठ पर सुबह श्रावणी उपाकर्म का आयोजन किया गया। शक्तिपीठ श्रावणी उपाकर्म के लिए आने वाले साधकों को सभी सामग्री की व्यवस्था की गई थी। उपकर्म के बाद यज्ञ, चांद्रायण साधना की पूर्णाहुति, रक्षाबंधन और वृक्षारोपण किया जाएगा।

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