15 वर्षों में सैकड़ों लोगों को सिखाई स्विमिंग
तैराकी का जुनून एक युवा पर इतना हावी हुआ कि अपने जीवन के 44 साल इसी शौक में लगा दिए। इसी शौक ने तब से लेकर अब तक दो साल के बच्चों से लेकर 60 वर्ष के बुजुर्गों तक को तैराकी सीखा दी।
पानी में स्वयं के बचाव के उद्देश्य से शुरू नागदा के दिलीप सिंह बघेल का अभियान राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में यहां के बच्चों को सफल बनाने का हो गया है।
लोग जुड़ते गए कारवां बनता गया
वर्ष 1980 में 20 वर्ष की उम्र में ग्रेसिम उद्योग में श्रमिक की नौकरी लगने बाद दिलीप सिंह बघेल को तैराकी का उनका शौक चंबल किनारे ले आया। चारों और झाड़िया और जंगल जैसे किनारे से चम्बल में अकेले तैरना प्रारम्भ किया। कुछ समय बाद ग्रेसिम बिरला स्कूल के अध्यापक नरेंद्र पाल और ब्रजमोहन गर्ग भी उनसे जुड़ गए।
समय के साथ अकेले चले युवा दिलीप बघेल के साथ लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया। तब अकेले चले दिलीप के साथ आज 44 साल बाद उनके साथ करीब 200 तैराकों का कायाकल्प परिवार (ग्रुप) है। तब का जंगल अब शहर का सबसे सुंदर नदी किनारे का (कायाकल्प हनुमान शिव मंदिर) पर्यटन केंद्र बन गया है।