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खगोल विज्ञान के शोधार्थियों को शोध के लिए वेधशाला में नया आकाश मिलने जा रहा है


उज्जैन। खगोल विज्ञान के शोधार्थियों को शोध के लिए उज्जैन के ग्राम डोंगला में स्थित पद्मश्री डा.विष्णु श्रीधर वाकणकर वेधशाला में नया आकाश मिलने जा रहा है। शोधार्थी देश के किसी भी कोने में बैठकर यहां लगे टेलीस्कोप की सहायता से आनलाइन ग्रह, तारों का अध्ययन कर सकेंगे। इसके लिए वेधशाला परिसर में स्थित टेलीस्कोप व डोम के एकीकरण का काम शुरू हो गया है।

जल्द ही टेलीस्कोप को सैटेलाइट से जोड़ा जाएगा। इसके बाद मेपकास्ट अवलोकन के लिए स्लाट तैयार करेगा। शोधार्थी स्लाट के अनुसार संभावना का आकाश देख सकेंगे। प्रकल्प अधिकारी घनश्याम रत्नानी ने बताया आइआइटी इंदौर व मध्य प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (मेपकास्ट) के माध्यम से खगोल विज्ञान के विशेष तैयार करने के लिए विशेष प्रकल्प चलाया जाएगा।


वर्तमान में रोबोटिक वेधशाला कम्प्यूटर के माध्यम से संचालित हो रही है। इसमें एक डोम और एक टेलिस्कोप है, इनकी सहायता से जब भी आकाशीय नजारा देखना होता है तो दोनों को अलग-अलग घुमाना पड़ता है।

नए प्रकल्प के लिए डोम को टेलीस्कोप से जोड़ने अर्थात एकीकरण का काम किया जा रहा है। इसके बाद टेलीस्कोप में ऐसी प्रोग्रामिंग की जाएगी, तो रिमोट से संचालित होगी। इसका फायदा यह होगा की नेट कनेक्टिविटी से देश के किसी भी कोने में बैठकर टेलीस्कोप को संचालित किया जा सकता है।

आइआइटी इंदौर देश की एक मात्र ऐसी आईआईटी है जहां एस्ट्रोनामी, एस्ट्रोफिजिक्स तथा स्पेस इंजीनियरिंग जैसे विभाग हैं। यहां बड़ी संख्या में शोधार्थी खगोल विज्ञान पर अध्ययन करने आते हैं। मेपकास्ट के जरिए इसकी प्रोग्रामिंग की जाएगी और शोध के लिए स्लाट तैयार किए जाएंगे। शोधार्थी मेपकास्ट की वेबसाइट पर आवेदन करेंगे। इसके बाद उन्हें स्लाट उपलब्ध कराया जाएगा।

बारिश के बाद चार माह विशेष
मेपकास्ट के विशेषज्ञों के अनुसार बारिश के बाद करीब चार माह का समय आकाशीय नजारा देखने के लिए महत्वपूर्ण है। क्योंकि बारिश के कारण हवा में मौजूद पार्टिकल व प्रदुषण खत्म हो जाता है। इससे अनंत आकाश में मौजूद ग्रह, तारे आदि स्पष्ट नजर आते हैं। शोध के लिए जो स्लाट तैयार होगा, वह इसी अवधि का रहेगा।

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