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धर्मधानी उज्जैन की ऐसी माया, अटलजी ने यहीं सत्ता को काजल की कोठरी बताया


उज्जैन। भगवान महाकाल की नगरी और मध्य प्रदेश की धर्मधानी उज्जैन का लोकसभा क्षेत्र भाजपा का गढ़ माना जाता है। 17 में से 12 लोकसभा चुनावों में यहां भाजपा या इसके मातृ संगठन जनता पार्टी व भारतीय जनसंघ के प्रत्याशियों को जीत मिली। इसकी नींव वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से ही पड़ गई थी।


तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों को देखकर मतदाताओं ने कांग्रेस को नकारना शुरू कर दिया था। जनसंघ के बाद भाजपा ने इस लोकसभा क्षेत्र में लगातार अपना परचम लहराया। भाजपा के दिग्गज नेता स्व. अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने उज्जैन के खूब दौरे किए। अटलजी की सभाएं हुईं। यहां की बड़नगर तहसील में उन्होंने कुछ समय स्कूली शिक्षा भी प्राप्त की थी।


वर्ष 1977 में विदेश मंत्री रहते जब अटल बिहारी वाजपेयी उज्जैन आए थे तो उन्होंने क्षीरसागर में सभा ली थी। इसे धर्मधानी का प्रभाव ही कहना उचित होगा कि उन्होंने साफगोई से कहा था कि हम वर्षों से विपक्ष की राजनीति करते आ रहे हैं। अभी-अभी सत्ता में आए हैं। सत्ता में आने के बाद कुछ अजीब सा माहौल नजर आ रहा है।

ये झुकी-झुकी नजरें, ये लंबे-लंबे सलाम, ये गाड़ियों का काफिला, कहीं हमारा दिमाग खराब न कर दे। सत्ता तो काजल की कोठरी है। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि जब हम सत्ता से बाहर आएं तो इस सफेद कुर्ते पर कोई काला दाग नहीं आना चाहिए।

जनसंघ ने वर्ष 1967 में यहां से पहला चुनाव जीता। हुकुमचंद कछवाय, फिर फूलचंद वर्मा और फिर डा. सत्यनारायण जटिया ने मतदाताओं के मन में विश्वास के बीज बोकर कांग्रेस को ऐसे उखाड़ फेंका कि बाद के 13 चुनावों में सिर्फ दो बार (वर्ष 1984 और 2009 में) ही कांग्रेस प्रत्याशी यहां से जीत सके।

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