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अंधेरा दूर करने 3 हजार पोल लगाने वाला टेंडर फिर अटका


शहर में 3 हजार नए पोल लगाने का टेंडर चार माह बाद शून्य हो गया है। कारण, टेंडर प्रक्रिया में एक ही बिडर (नीलामी में बोली लगाने वाला) शामिल हुआ। ऐसे में तकनीकी तौर पर इसे खोला नहीं जा सकता। अब फिर से टेंडर प्रक्रिया करना पड़ेगी। संभव है, इसमें एक माह का समय और लग जाए। निगम का एक और टेंडर प्रक्रिया में ही उलझ कर रह गया है।

शहर में निगम के 45 हजार से अधिक पोल हैं, जिनके मेंटेनेंस और ब्लैक स्पॉट पर पोल लगाने की जिम्मेदारी उन्हीं की है। नई परिषद के गठन के बाद लोगों की सबसे ज्यादा शिकायतें पार्षदों और महापाैर के पास यही पहुंची कि बिजली का पोल व लाइट खराब है। बंद होता है तो कोई सुधारने भी नहीं आता।

पार्षदों ने इसके समाधान के लिए अगल-अलग टेंडर बुलाने के लिए अफसरों को कहा भी लेकिन अफसरों ने ऐसी 42 डिमांड के आधार पर करीब साढ़े तीन करोड़ का एक ही टेंडर निकाल दिया। अगस्त में निकले इस टेंडर के खुलने की नौबत आई और उम्मीद बंधी अंधेरी गलियों में नए पोल लग सकेंगे लेकिन इससे पहले टेंडर खुला तो उसमें सिर्फ एक बिडर ही आया।

सिंगल बिडर होने पर उसे काम नहीं दिया जा सकता। ऐसे में यह प्रक्रिया फिर शुरू करना होगी। प्रकाश विभाग से जुड़े अधिकारी बताते हैं कि टेंडर रीकॉल करने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। सारी प्रक्रिया को भी देख लिया जाए तो एक माह में काम शुरू हो जाएगा। मतलब, नए पोल लगने में अभी एक माह का समय और लगेगा।

इसलिए टेंडर उलझाते चलते हैं जिम्मेदार

परिषद के सम्मेलन में पार्षदों ने शहर में स्ट्रीट लाइटों के सुधार नहीं होने का मुद्दा उठाया तो निगम सभापति ने नियमों का हवाला देकर सबको बैठा दिया था। यहां यह बात सामने आई थी कि सरकारी एजेंसी शहर की स्ट्रीट लाइटों के मेंटेनेंस देने के लिए प्रभावशाली लोगों ने अड़ंगा लगा दिया था। टेंडर अटक गया। फिर नया टेंडर निकाला तो उसमें भी सिंगल बिडर ही आया और यह भी अटक गया।

45 हजार पोल, कई डेमेज तो कुछ नए लगाने की जरूरत

एमपीईबी और निगम द्वारा शहर में 45 हजार पोल लगाए गए हैं। इनमें सेंट्रल लाइटिंग भी शामिल है लेकिन नए पोल लगाने और पुरानों का मेंटेनेंस का जिम्मा निगम का ही है लेकिन यहां फाइलों में उलझी प्रक्रिया के चलते इमरजेंसी के काम भी महीनों हो जाते हैं।

सिंगल बिडर आने से यह सवाल उठता है कि ठेकेदार निगम के साथ काम क्यों नहीं करना चाहते। कारण स्पष्ट है, सालों तक पेमेंट नहीं होना। ठेकेदार भी निगम के कामों से दूरी बना रहे हैं। ठेकेदारों का कहना है कि निगम अगर पुराना पेमेंट ही कर दे तो उन्हें नए ठेकेदार ढूंढने की जरूरत न पड़े, जो हैं वे ही काम कर लेंगे लेकिन यहां पेमेंट तो मिलता नहीं।

जरूरी सुविधाओं में आती है यह, देखेंगे क्या कर सकते हैं

स्ट्रीट लाइट हो या पेयजल ये असेंशियल सुविधाओं में आती है। यहां प्रक्रिया बाधा नहीं बनेगी, जो भी वैकल्पिक रास्ते होंगे, उन्हें अपनाकर समस्या का समाधान किया जएगा।
आशीष पाठक, निगमायुक्त

नियमानुसार निर्णय लेंगे
जहां से भी शिकायत आएगी, वहां मरम्मत की जाएगी। रही बात, सिंगल टेंडर की तो ऐसी जानकारी में आया है कि शासन से ऐसे निर्देश भी हैं कि सिंगल टेंडर भी किया जा सकता है। उसका परीक्षण कर निर्णय लेंगे।
- मुकेश टटवाल, महापौर

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