हे महाकाल ! प्रशासन ने कर दिया आपका व्यवसायीकरण
डॉ. चन्दर सोनाने
देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में कहीं भी भगवान के दर्शन के लिए भक्त को पैसे नहीं देने होते हैं। बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल मंदिर ही ऐसा है, जहाँ श्रद्धालुओं को गर्भगृह में दर्शन करने के लिए पैसे देने पड़ते हैं। श्री महाकालेश्वर मंदिर के प्रबंधन और संचालन के लिए श्री महाकाल मंदिर प्रबंध समिति का गठन मध्यप्रदेश सरकार द्वारा वर्षों पूर्व किया गया है। यह समिति एक अधिनियम द्वारा संचालित होती है। अधिनियम में कहीं भी यह प्रावधान नहीं है कि भक्त को भगवान के दर्शन के लिए पैसे देने होंगे ! किन्तु वर्तमान में ऐसा ही हो रहा है ! मंदिर प्रबंध समिति ने महाकाल का पूरी तरह से व्यवसायीकरण कर दिया है। इस पर तुरन्त रोक लगाए जाने की आवश्यकता है।
श्री महाकालेश्वर मंदिर के लिए देश-विदेश से प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है। शनिवार, रविवार और सोमवार को यह संख्या एक लाख को भी पार कर जाती है। तीज-त्यौहार और पर्वों पर श्रद्धालुओं की संख्या 2 से 3 लाख तक पहुँच जाती है। जैसे गत महाशिवरात्रि पर करीब 3 लाख श्रद्धालुओं के आने की बात कही गई थी। महाकाल मंदिर में महाकाल लोक के बनने के बाद दिनों-दिन श्रद्धालुओं की सख्ंया में वृद्धि होती ही जा रही है।
दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग श्री महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के मन में यह कामना रहती है कि वे गर्भगृह में जाकर अपने आराध्य देव को स्पर्श कर प्रणाम करें। किंतु कुछ वर्षों से ऐसा नहीं हो पा रहा है। गर्भगृह में जाने के लिए श्रद्धालुओं के लिए अलग-अलग शुल्क निर्धारित कर दिये गए हैं। उदाहरण के लिए भस्मारती का दर्शन करना सबसे अधिक दूभर हो गया है। इसके लिए प्रवेश पत्र प्राप्त करना एक कठिन परीक्षा से कम नहीं है। यहीं नहीं भस्मारती के लिए प्रति सदस्य 200 रूपए का शुल्क निर्धारित किया गया है। शीघ्र दर्शन के लिए 250 रूपए प्रति व्यक्ति की दर रखी गई है। गर्भगृह में जाकर दर्शन करने के लिए एक व्यक्ति का 750 रूपए का शुल्क निर्धारित किया गया है। 2 व्यक्ति के लिए गर्भगृह में जाकर दर्शन करने पर 1500 रूपए का शुल्क रखा गया है। अर्थात् बाबा महाकाल को प्रशासन द्वारा अमीरों का भगवान बना दिया गया है। सामान्य दर्शनार्थियों के लिए मंदिर के गर्भगृह में जाकर दर्शन करना दिनों दिन दूभर किया जा रहा है। भक्तों के विरोध पर प्रशासन ने जरूर कुछ दिन, कुछ घंटे निशुल्क गर्भगृह में जाकर दर्शन के लिए निश्चित किए है, किन्तु यह पूर्ण रूप से अपर्याप्त है।
महाकाल मंदिर के दर्शन करने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु हजारों और लाखों की संख्या में आते है और वे श्रद्धापूर्वक भेंट राशि भी चढ़ाते हैं। यह भेंट राशि लाखों में होती है और वर्षभर में करोड़ की संख्या में दानदाता दान चढ़ाते हैं। इतना ही नहीं श्रद्धालु अपनी यथाशक्ति स्वर्ण और चाँदी के आभूषण और छत्र आदि भी चढ़ाते रहते हैं। इस प्रकार प्रतिवर्ष करोड़ां रूपए की दानराशि आने के बावजूद श्रद्धालुओं से दर्शन के लिए शुल्क लेना आश्चर्यजनक और दुःखद है !
महाकाल मंदिर आकर हजारों और लाखों रूपए का दान देने वाले श्रद्धालु भी है। इसके साथ ही सोने चाँदी के आभूषण और छत्र आदि चढ़ाने वाले भक्त भी कम नहीं है। इसका हिसाब-किताब कभी भी मंदिर प्रबंध समिति की बैठक में प्रस्तुत नहीं किया गया और न ही यह सार्वजनिक किया गया कि एक वर्ष में कितने लाख की सोने चाँदी की भेंट राशि आई है और उसका मंदिर समिति द्वारा क्या किया जा रहा है ?
श्री महाकालेश्वर मंदिर मध्यप्रदेश राज्य सरकार द्वारा पारित अधिनियम द्वारा संचालित होता है। किन्तु अधिनियम में यह कहीं भी उल्लेख नहीं है कि मंदिर प्रबंध समिति श्ऱद्धालुओं से दर्शन के लिए शुल्क ले सकती है। इतना ही नहीं, मंदिर प्रबंध समिति द्वारा जो विकास और निर्माण के अलावा अन्य मदों पर खर्च किए जाते हैं, वह अन्य मदों का कहीं अधिनियम में प्रावधान है क्या ? इसके बावजूद प्रशासन और मंदिर प्रबंध समिति हर वर्ष मनमाने तरीके से खर्च कर रहा है ! यह अपने आप में एक जाँच का विषय है।
महाकाल मंदिर परिसर में पिछले सात माह पूर्व महाकाल लोक का भव्य और आकर्षक निर्माण किया गया है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इस महाकाल लोक का लोकार्पण किया गया था। उसके बाद महाकाल मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में दिन दुनी रात चौगुनी वृद्धि होती जा रही है। पहले की तुलना में और महाकाल लोक बनने के बाद श्रद्धालुओं की कई गुना ज्यादा वृद्धि को देखते हुए प्रशासन ने दर्शनार्थियों की सुविधा के लिए कोई माकूल इंतजाम नहीं किए। इस कारण प्रतिदिन महाकाल मंदिर के आसपास का क्षेत्र का यातायात कुप्रबंध का शिकार हो जाता है।
बेतहाशा और अनियंत्रित रूप से बढ़ रहे ऑटो, ई-रिक्शा, मैजिक और चार पहिया वाहनों के कारण मंदिर क्षेत्र में यातायात अवरूद्ध होना और जाम लगना सामान्य सी बात हो गई है। इस दिशा पर मंदिर समिति, जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने अभी तक कोई खास इंतजाम नहीं किया है। इस कारण जाम में फंसे श्रद्धालु शासन-प्रशासन को कोसते नजर आते हैं। यह एक दो दिन की बात नहीं रोजाना की बात हो गई है। शनिवार, रविवार और सोमवार को तो अनेक जगह पर जाम लगना सामान्य बात हो गई है।
श्रद्धालु आस्था और श्रद्धा से महाकालेश्वर के दर्शन के लिए आते हैं। इसलिए पैसे देकर गर्भगृह में जाकर दर्शन करने पर प्रतिबंध लगाने की तुरन्त आवश्यकता है। यदि श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या के कारण सबको गर्भगृह में जाकर दर्शन कराना संभव नहीं है तो पैसे देकर दर्शन करने की सुविधा देना तो और भी ज्यादा भेदभाव पूर्ण नीति है। इस पर तुरन्त लगाम लगाना चाहिए। वीआईपी को तो कहना क्या ? मंत्री और वरिष्ठ अधिकारी के लिए कोई नियम कायदे ही नहीं है ! वे कभी भी गर्भगृह में जाकर आराम से पूजन - अर्चन करने के लिए स्वतंत्र हैं। मानो मंदिर उन्हीं के लिए बना हों। यह देखकर आम श्रद्धालु बेबस और हताश होकर देखता भर रह जाता है। इस भेदभाव और मनमानी पर तुरन्त रोक लगाने की आवश्यकता है। प्रदेश के मुखिया श्री शिवराज सिंह चौहान को चाहिए कि वे मंदिर में चलने वाली इस भेदभावपूर्ण नीति पर तुरन्त लगाम लगावें। बाबा महाकाल सबके हैं। और सबके साथ समान नियम लागू होना ही चाहिए। किसी के साथ पैसे के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। बाबा महाकाल से प्रार्थना करते है कि वे शासन-प्रशासन में बैठे लोगों को सदबुद्धि दें !
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