मप्र में चुनाव- करप्शन,कर्मचारी और हताश कार्यकर्ता बन गए मुद्दे...
ना काहू से बैर
राघवेंद्र सिंह,वरिष्ठ पत्रकार
भोपाल - मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर लीडर और उनकी पार्टियां गियर बदल रही हैं। करप्शन के मुद्दे पर कर्नाटक की जीत से उत्साहित कांग्रेस, भाजपा को बैकफुट धकेल रही है। करप्शन दुधारी तलवार है और चतुर सुजान दिग्विजय सिंह इसे लेकर भाजपा पर हमलावर बने हुए हैं। हालांकि वे दावा भी नही कर रहे हैं कि कांग्रेस सरकार में आई तो कम से कम मंत्री और उनका स्टाफ एकदम ईमानदार होगा। करप्शन पर कांग्रेस ज़ीरो टॉलरेंस की पॉलिसी पर काम करेगी। क्योंकि भाजपा सरकार बेईमान है तो जनता का सहज सवाल होगा कि क्या उनके नेता हरिश्चंद भले ही न हो पर ईमानदार सरकार देगी ? जैसा पंजाब में आम आदमी पार्टी ने रिश्वतखोरी पर शिकायत करने के लिए टोल फ्री नम्बर जारी किए और इस मुद्दे पर मंत्रियों के हटाया भी। इससे मंत्री भले ही निपटे मगर थोड़े समय के लिए ही सही जनता में धारणा बनने लगी कि करप्शन की शिकायत में मंत्री की बर्खास्तगी भी हो सकती है। कोई कुछ भी कहे इसके लिए बड़ा कलेजा चाहिए। कांग्रेस को इसका उत्तर देना कठिन है। क्योंकि कांग्रेस छोड़ शिव सत्कार में मंत्री बने नेतागण करप्शन के सवाल पर भाजपा को भी हलाकान किए हुए। भाजपा में भी सब ईमानदार हैं ऐसा नही हैं लेकिन वे पार्टी के इस नारे का थोड़ा लिहाज करते थे कि
" भय भूख न भ्रष्टाचार हम देंगे ऐसी सरकार ..." इसलिए कांग्रेस ने कर्नाटक सरकार में 40 प्रतिशत कमीशन लेने के आरोप को एमपी में 50 परसेंट तक ले जाने के आरोप जनता के बीच ले जाने की रणनीति बनाई है । यद्द्पि 15 महीने की कमलनाथ सरकार पर भी करप्शन के खूब आरोप लगे थे। इतना ही नही व्यापमं से लेकर सिंहस्थ, ई टेंडरिंग घोटाले और अवैध रेत खनन जैसे घोटाले पर न केवल चुप्पी साधी बल्कि उन्हें क्लीन चिट तक दे डाली थी। इससे करप्शन पर कांग्रेस की करनी- कथनी पर सवाल उठे और कार्यकर्ताओं व जनता के बीच उसके प्रति विश्वास कमजोर पड़ गया था। इस दुधारी तलवार के इस्तेमाल के साथ कांग्रेस को साफ सुथरी सरकार देने वादा भी करना होगा। उनके मंत्री विधायकों को ईमानदार होने के साथ ईमानदार दिखना भी पड़ेगा। यह सब "आग दरिया है और डूब कर जाने" जैसा कठिन काम होगा।
बहरहाल, करप्शन पर कांग्रेस के आरोपों पर डिफेंसिव हुई भाजपा की तरफ से अभी तक कोई नियोजित प्रभावी प्रतिकार नही हुआ है। पार्टी की चुप्पी उसके रणनीतिकारों के कमजोर व बचकाना होने की तरफ संकेत करती हैं। जो उसकी रणनीतिक कमजोरी की तरफ इशारा करती है। फिलहाल तो कांग्रेस को इसका लाभ मिल रहा है।
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ईमानदारों को टिकट मिले तो कुछ बात बने...
करप्शन के आरोपों के बीच भाजपा कांग्रेस समेत ज्यादातर पार्टियां ईमानदार और साफ-सुथरी छवि वालों को विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाती है तो कुछ माहौल बदल सकता है। भ्रष्ट मंत्री और विधायकों के टिकट काटकर साफ-सुथरी छवि वालों को टिकट दिया जाए तो भी यह संदेश जाएगा की पार्टी ईमानदार नेताओं को सामने ला रही है। हालांकि यह कठिन काम है लेकिन भ्रष्टाचार मुद्दा बना तो कांग्रेस और भाजपा को अपनी पार्टी में इमानदार कार्यकर्ता फ्रेंडली और जनता के बीच सक्रिय रहने वाले नेताओं को ढूंढना पड़ेगा और उन्हें पीले चावल देकर चुनाव मैदान में उतारना होगा कांग्रेस के लिए यह टास्क इसलिए भी जरूरी है क्योंकि करप्शन का मुद्दा वही जोर-शोर से उठा रही है। अट्ठारह साल सत्ता में रहने वाली भाजपा में 'चाल चरित्र और चेहरे ' वाला नारा नेतृत्व ने भुला दिया। इसे याद दिलाने वाले अब सम्मान की नज़र से कम ही देखे जाते हैं।
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कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन बड़ा मुद्दा...
कांग्रेस कर्मचारी जगत में पुरानी पेंशन लागू करने को घोषणा कर भाजपा से आगे निकल गई है। यह कुछ वैसे ही है जैसे 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने किसानों का दो लाख तक का कर्जा माफ करने की बात कर गेम बदल दिया था। इस पर कर्ज में डूबे भाजपा समर्थक किसानों ने भी कांग्रेस को वोट दिया था। अब कुछ यही हालात कर्मचारी पेंशन को लेकर बन रहे हैं। चुनाव के नजदीक आते ही भाजपा भी इसे मानवीय मुद्दा मान कर कर्मचारियों की पेंशन व्यवस्था लागू करने की घोषणा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कर सकते हैं।
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कार्यकर्ताओं की हताशा की चिट्ठी को तार समझें ...
सियासी दल कोई भी हो कार्यकर्ताओं की उपेक्षा के नतीजे ने चुनाव में हार के रूप में भुगतने ही पढ़ते हैं सत्ता पक्ष पर यह बात थोड़ी प्रबलता के साथ लागू होते हैं। भाजपा के पुराने कार्यकर्ता सत्ता की सियासत से थोड़ा अलग है उन्हें अब चुनाव के चलते इस बात की पीड़ा ज्यादा है की पार्टी उन्हें कोई काम नहीं दे रही है। सरकारी शैली में जनता के बीच जाने और कार्यकर्ताओं से सुख-दुख पूछने के संवाद सम्मेलन कागजों पर खूब किए जा रहे हैं ग्राउंड जीरो पर स्थिति संगठन के दावे से एकदम उलट है यही वजह है कि नगर निगम चुनाव में भोपाल तक में वार्ड में मतदाता पर्चियां नहीं बताएं और साथ ही मतदाता सूची का निरीक्षण परीक्षण और संशोधन दी संगठन स्तर पर अभियान के तौर पर नहीं चलाया गया। उपेक्षा के कारण भाजपा में 2003 से पहले का कार्यकर्ता ना सड़क पर दिखा और ना चुनावी गतिविधियों में उसका सहयोग दिया गया। विधानसभा चुनाव सर पर है और प्रभारियों से लेकर प्रदेश संगठन के साथ जिले और मंडल स्तर पर चुनाव जिताऊ कार्यकर्ताओं की पूछ परख नहीं हो रही है। कांग्रेस में कार्यकर्ता के मुद्दे पर स्थितियां अलग है यहां पर दिग्विजय सिंह खुद मैदान में मोर्चा संभाले हुए। पिछले दिनों दिल्ली में पार्टी हाईकमान के साथ देश के नेताओं की जो बैठक हुई थी उसके बाद सुरेश पचौरी,अजय सिंह राहुल, अरुण यादव, जीतू पटवारी और कमलेश्वर पटेल जैसे नेताओं की सक्रियता मंडलम स्तर तक बढ़ी है। भाजपा अब इस मुद्दे पर ग्राउंड जीरो पर कांग्रेस से पिछड़ती दिख रही है। भाजपा कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि 15 जून तक केंद्रीय नेतृत्व से कोई नए दिशा निर्देश मिलेंगे और उसके बाद हालात तेजी से बदलेंगे।
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बुन्देलखण्ड भाजपा में बवाल पर सीएम सख्त...
भाजपा में बगावत और कलह-क्लेश का माहौल अब सत्ता की रसमलाई खाने वालों पर भी सिर चढ़कर बोल रहा है। खास बात यह है शिवराज मंत्रिमंडल के तीन मंत्री सियासी तौर पर गुत्थमगुत्था हो गए हैं। बंद मुट्ठी से लेकर इस्तीफे तक की बातें कुलीनों के कमरों से बाहर आने लगी हैं। संगठन के बाद तीन वरिष्ठ मंत्रियों की आज सीएम शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात हुई। एकदूसरे को फूटी न देखने वाले ये मंत्री महोदय बाहर किसी के बारे में कोई अप्रिय और नकारात्मक टीका टिप्पणी नही करने की नसीहत के साथ सीएम हाउस से विदा हुए। उम्मीद की जा रही है कि एक दूसरे से जले भुने बैठे ये महाबली माननीय मंत्रीगण मर्यादा का पालन करेंगे। जिस पार्टी ने दस दस साल से विधायक और मंत्री बनाया उस पार्टी की सेवा ये आपस में सामान्य से नीचे के स्तर के कार्यकर्ताओं की भांति लड़भिड़ कर रहे हैं। कार्यकर्तागण इसे सत्ता का नशा तो कुछ सत्ता का अजीर्ण बता रहे हैं। जानकार कहते हैं दिल थाम कर बैठिए आने वाले दिनों में महाकौशल, विंध्य मालवा और निमाड़ में भी कुनबे में कर्कश कलह की खबरें धैर्य के तटबंध तोड़ें तो किसी को हैरत न होगी। एक बार फिर पार्टी प्रबंधन की प्रतिष्ठा दांव पर है।
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