ये महाकाल का फैसला है...!
चुनावी चटखारे
कीर्ति राणा ,वरिष्ठ पत्रकार
उज्जैन में महाकाल मंदिर क्षेत्र में महाकाल लोक योजना के पहले चरण का बीते अक्टूबर में प्रधानमंत्री के हाथों लोकार्पण कराया गया था। जल्दबाजी में कराए लोकार्पण का अघोषित एजेंडा यह भी था कि इस लोक की माया को वोट बैंक में भुना लेंगे। भयंकर आंधी ने ऐसे मंसूबों पर पानी तो फेर ही दिया और मुद्दा भी कांग्रेस की झोली में डाल कर एक तरह से कमलनाथ के साथ न्याय कर दिया है। महाकाल क्षेत्र के विस्तार के लिए धनराशि की मंजूरी तो कमलनाथ सरकार ने ही अपने 15 महीने के कार्यकाल में की थी। उसे अपनी उपलब्धियों में शामिल करने का काम शिवराज सरकार ने कर लिया था। धड़ाधड़ जमीन पर गिरी भारी-भरकम मूर्तियों से योजना में हुए भ्रष्टाचार की परतें भी खुल गई हैं। सरकार सख्त फैसला लेगी तो कांग्रेस को फिर मौका मिल जाएगा, लेकिन महाकाल ने तो अपना फैसला सुना दिया है। अब ओंकारेश्वर में बन रहे एकात्म धाम और आदि शंकराचार्य की मूर्ति का लोकार्पण समारोह बाकी है, सितंबर में प्रधानमंत्री के हाथों वहां सब ठीक ही हो।
आष्टा से हुआ पुतला दहन का शुभारंभ...
वैसे तो पार्टियों द्वारा टिकट वितरण की प्रक्रिया किए जाने पर नाराज दावेदारों के समर्थक मुर्दाबाद के साथ पुतला दहन करते हैं, लेकिन इस बार बहुत पहले आष्टा से शुरुआत हो गई है। आष्टा विधानसभा क्षेत्र लंबे समय से कांग्रेस के लिए अंगूर खट्टे बना हुआ है। इस बार जब से प्रजातांत्रिक समाधान पार्टी के अध्यक्ष कमल सिंह चौहान सैकड़ों वाहनों-समर्थकों के साथ भोपाल में कांग्रेस में शामिल हुए हैं, हवा कुछ बदली-बदली सी है। यही वजह है कि कांग्रेस के दावेदारों में उफान सा आ गया है। आष्टा क्षेत्र के प्रभारी पूर्व सांसद सज्जन वर्मा ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनका पुतला भी जलाया जा सकता है, पर ऐसा ही हुआ है। उन्होंने एक गुट से तो मेल-मुलाकात कर ली, लेकिन रेस्ट हाउस में इंतजार कर रहे दिग्विजय सिंह समर्थकों से नहीं मिल पाए तो गुस्से का इजहार पुतला जला के कर दिया। पुतला दहन से उठी चिंगारी इस क्षेत्र में चुनाव आने तक बदले की आग का रूप ले सकती है।
*निशाना कमलनाथ पर, नजर कहीं और *
मप्र खनिज निगम के अध्यक्ष-निर्दलीय विधायक प्रदीप (गुड्डा) जायसवाल ने एक तीर से दो शिकार करने की कला दिखाई है। बारासिवनी विधायक जायसवाल ने राज खोला है कि कमलनाथ ने उन पर खूब डोरे डाले थे, सीएम पद का आॅफर तक दिया, लेकिन मैं नहीं डिगा। जायसवाल ने आगे जो कहा वह भाजपा को चौकन्ना करने वाला है। गुड्डा भैया ने दावा ठोंक दिया है कि जनता चाहेगी तो इस बार मुख्यमंत्री भी बन जाऊंगा। चुनाव परिणाम से पहले ही जायसवाल का यह दावा भाजपा से ज्यादा उन प्रत्याशियों के लिए संभावना के द्वार खोलने वाला है जो कांग्रेस, भाजपा से अधिक किसी तीसरी ताकत के पास खिंचे जाना चाहते होंगे।
▪️सिंधिया पर भारी सांसद
भाजपा में ठसक के साथ शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया जब-जब गुना संसदीय क्षेत्र में जाते हैं, उनके दिल में हार की फांस का दर्द जरूर उठता होगा। सपने में भी नहीं सोचा होगा कि कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में वो गुना से लोकसभा चुनाव उन केपी यादव से हार जाएंगे, जो कभी उनके सारथी रहे थे। रही बात सांसद यादव की तो वो भी कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते। एक कार्यक्रम में सिंधिया पहुंचे, लेकिन सांसद को न तो आमंत्रित किया, न ही उनका जिक्र हुआ। बस, सांसद ने बयानों के ऐसे तीर छोड़े कि भोपाल तक बात पहुंच गई। अब संगठन ने सांसद को सचेत किया है कि चुनाव जब सिर पर हों तो सोच समझ कर बोलें। यह संकेत जरूरी भी है क्योंकि संगठन को सिंधिया से बहुत अपेक्षा भी है।
▪️सागर में ज्वालामुखी
सागर की राजनीति में परस्पर विरोधी बयानों का बहने वाला लावा अभी कुछ ठंडा सा लग रहा है, लेकिन ज्वालामुखी कभी भी फट सकता है। भोपाल से दिल्ली तक के भाईसाबों को पता है कि भूपेंद्र सिंह यदि सरकार में नंबर टू की पोजीशन पर हैं तो उसकी वजह शिवराज सिंह का विश्वास है। तो फिर सागर से उनके खिलाफ दो मंत्रियों और विधायक ने आवाज उठाई वो कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना तो नहीं है! इसकी वजह यही कि अकेले भूपेंद्र सिंह की तो हिम्मत नहीं कि अपने बलबूते पर इन दबंग नेताओं से पंगा लें। जो भी हो अनुशासन का डंडा लेकर घूमने वाले भाईसाबों को भी इन मंत्रियों के विरोधी स्वर से समझ आ गया होगा कि फिर आम कार्यकर्ता की तो कहीं सुनवाई होती ही नहीं होगी।
▪️चुनौती देने में क्या जाता है
कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में खुद भले ही सांसद और विधायक का चुनाव नहीं जीत सकीं हो, लेकिन भाजपा विधायक उषा ठाकुर को चुनौती देने में क्या जाता है। पहले उषा ठाकुर ने दिग्विजय सिंह को चुनौती दी महू से चुनाव लड़ कर दिखा दें। अब शोभा ओझा ने ऐसी ही चुनौती ठाकुर को दी है कि अब महू से चुनाव लड़ कर दिखा दें, कांग्रेस का साधारण सा प्रत्याशी उन्हें हरा देगा। हर बार नए क्षेत्र से चुनाव लड़ने को लेकर ओझा का यह भी कहना है कि वो काम नहीं करातीं इसलिए दूसरी बार उसी क्षेत्र से लड़ने का साहस नहीं है। अब ओझा को कौन समझाए कि हर बार नए क्षेत्र से तो ठाकुर ने जीत का रिकार्ड बनाया लेकिन वो तो अपने गृह क्षेत्र वाले विधानसभा से भी नहीं जीत पाईं।
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