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अपना एमपी गज्जब है..78 चीते मर रहे हैं..सरकार कमेटियां बना रही है !


अरुण दीक्षित,वरिष्ठ पत्रकार
                 एमपी के कूनो नेशनल पार्क में गुरुवार को चीते के दो बच्चे और मर गए!उनके साथ पैदा हुआ तीसरा गंभीर हालत में है!चौथा पहले ही मर चुका है।ये चारो कूनो में ही पैदा हुए थे।इनकी उम्र करीब दो महीने थी। दरअसल चीतों के मरने की शुरुआत तो इस साल मार्च में ही शुरू हो चुकी थी।जो 20 चीते नामीबिया और अफ्रीका से लाए गए थे उनमें से तीन मर चुके हैं। बाकी किस स्थिति में रहेंगे,यह वक्त बताएगा।
               चीतों की मौत के साथ यह सवाल एक बार फिर उठा है कि क्या एमपी की जलवायु और भौगोलिक स्थिति चीतों के रहने लायक है।देश के प्रतिष्ठित वन्य प्राणी विशेषज्ञ साफ कह चुके हैं कि देश की जलवायु चीतों के अनुकूल नही है।उनका मानना है कि आने वाले दिनों में अन्य चीतों पर भी खतरा हो सकता है।उनके मुताबिक कूनो नेशनल पार्क गिर के शेरों के हिसाब से तैयार हुआ था।वहां चीते नहीं रह सकते।सवाल यह भी है कि जब चिड़ियाघरों में चीते नही पनप पाए तो अचानक हजारों मील दूर ,दूसरे देशों से लाकर जंगल में छोड़े गए चीते कैसे रह लेंगे।सवाल यह भी है कि आखिर देश से चीते क्यों और कैसे खत्म हुए थे?
                 फिलहाल तीन महीनों में तीन बड़े और तीन शावकों की मौत के बाद भोपाल से दिल्ली तक खलबली मची हुई है।जैसा कि सरकार हमेशा करती आई है,उसने चीता टास्क फोर्स के ऊपर एक और विशेषज्ञ समिति बना दी है।इस  समिति में 11 सदस्य होंगे।इस विशेषज्ञ समिति को सलाह देने के लिए  4 अंतर्राष्ट्रीय चीता विशेषज्ञों का एक पैनल भी बनाया गया है।अब यही समिति चीतों से जुड़े सभी फैसले करेगी।
                 इस बीच स्थानीय स्तर पर दबी जबान से जो चर्चाएं चल रही हैं,वे यह संकेत देती हैं कि कूनो नेशनल पार्क में चीतों की जंदगी सुरक्षित नहीं है।दरअसल वे यहां के लिए बने ही नही हैं।जलवायु की वजह से ही चीते देश से लुप्त हुए थे!इस बीच चीतों की मौत के बाद वन विभाग की ओर से जो विज्ञप्तियां जारी की गई हैं उनकी भाषा भी इसी तरह के संकेत दे रही है।चीतों की देख रेख कर रहे वन अधिकारी यह मान रहे हैं कि कूनो चीतों के रहने लायक नही है।ऊपर से यहां कम जगह में ज्यादा चीते छोड़ दिए गए हैं।
                 गुरुवार को 2 शावकों की मौत के बाद यह कहा गया कि गर्मी बहुत ज्यादा थी। पारा 47 के आसपास था।बच्चे अपनी मां के साथ घूमते घूमते डिहाइड्रेट हो गए।जब तक उन पर नजर गई तब तक देर हो चुकी थी।दो की जान चली गई।एक की हालत बेहद नाजुक है।एक दो दिन पहले ही मर चुका था।
 इसके साथ ही विभाग यह बताना नही भूला कि अफ्रीका में भी ऐसे बच्चे कम ही जीवित रह पाते हैं!साथ ही वे यह बताना भी नही भूले कि जिस ज्वाला के ये शावक हैं,वह जंगल के प्राकृतिक वातावरण में नही पली है।वह सुरक्षित वातावरण में पाली गई थी।साथ ही वह पहली बार मां बनी है।बस उन्होंने यह नही कहा कि ये चीता खुले जंगल में छोड़ने लायक ही नहीं हैं।
                     एक बात और.. 23 मार्च 23 को सबसे पहले नामीबिया से लाई गई मादा चीता साशा की मौत हुई थी।तब यह कहा गया था कि वह पहले से बीमार थी।फिर 23 अप्रैल 23 को नर चीता उदय नही रहा।तब भी यही कहा गया कि भी स्वस्थ नही था।
 9 मई को मादा चीता दक्षा की मौत साथी नर चीतों के हमले में हुई बताई गई।तब यह कहा गया कि उग्र कामाग्नि के चलते नर चीतों ने दक्षा को मार डाला।
 अब ज्वाला के शावक सूरज की तपिश सहन नही कर पाए!बेचारे गर्मी में मर गए!
                      6 मौतें और 6 कहानियां!लेकिन ऊपर से नीचे तक कोई यह कहने की हिम्मत नही जुटा पा रहा है कि चीतों को कूनो नेशनल पार्क में छोड़ने का फैसला ही गलत था। आपको याद होगा कि पिछले साल सितंबर के महीने में पूरा देश चीता चीता चिल्लाया था।17 सितंबर को अपने 73वें जन्मदिन पर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कूनो आकर नामीबिया से लाए गए चीतों को कूनो नेशनल पार्क के विशेष बाड़े में छोड़ा था। तब एमपी की सरकार ने पीएम के जन्मदिन पर शानदार आयोजन किया था।पूरे देश ने देखा था कि किस तरह प्रधानमंत्री चीते के साथ गाड़ी में बैठकर विशेष बाड़े तक पहुंचे।कैसे उन्होंने पिंजरे का दरवाजा खोला और कैसे चीता उसमें से निकल कर भागा।करोड़ों खर्च करके यह दृश्य उन्हें और देश की जनता को दिखाया गया था।खर्च अब भी चल रहा है। चलता रहेगा।
                    आप भूले नहीं होंगे..तब पूरे दर्प के साथ कहा गया था 70 साल बाद देश में चीते आए हैं।सिर्फ पीएम की वजह से ही देश फिर से चीते देख पाएगा।
 सबसे अहम बात खुद पीएम ने एक प्रायोजित रैली में कही थी...पहले कबूतर छोड़े जाते थे..अब चीते छोड़े जाते है...देश बदल रहा है।
 ऐसा नहीं है कि जिस समय चीते छोड़े जा रहे थे उस समय कूनो की भौगोलिक स्थिति का जिक्र करना वन्य प्राणी विशेषज्ञ भूल गए थे।उन्होंने तब भी चेताया था।लेकिन जन्मदिन के उत्साह और अपने सेवाभाव के प्रदर्शन के चक्कर में राज्य सरकार ने कुछ नही सुना।चीतों को आना था वे आ गए!भक्तों ने नारा दे दिया.. मोदी है.. तो मुमकिन है!
 चीता सीरियल के अहम पार्ट हैं गुजरात के गिर के बब्बर शेर!उनकी कहानी पर किसी ध्यान न जाए इसलिए बीच में चीते लाए गए।
 दरअसल कूनो नेशनल पार्क में गुजरात के बब्बर शेरों को लाया जाना था।उनके हिसाब से ही पूरी तैयारी की गई थी।लेकिन गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तब यह ऐलान कर दिया था कि वे किसी भी कीमत पर अपने शेरों को गुजरात से बाहर नहीं जाने देंगे।
                          सरकारों के बीच लड़ाई का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।कोर्ट ने साफ कह दिया कि गुजरात को शेर एमपी को देने होंगे।इसी बीच मोदी जी प्रधानमंत्री बन गए।एमपी की सरकार बब्बर शेर भूल गई।उसने न शेर मांगे न गुजरात ने दिए चूंकि उन्हें याद था इसलिए गुजरात के शेरों की जगह नामीबिया और अफ्रीका से चीते ले आए!जन्मदिन पर तोहफा ले लिया।देश को चीते दिखा दिए! अब शेरों की बात कौन करेगा। सुप्रीम कोर्ट को कौन ध्यान दिलाएगा कि उसके आदेश का पालन नहीं हुआ।
 बताया गया है कि सुप्रीम कोर्ट में यह कहकर मामला खत्म कराया जाएगा कि चूंकि अब कूनो नेशनल पार्क में चीते आ गए हैं इसलिए वहां अब शेरों की जरूरत नहीं है।प्रधानमंत्री का प्रण पूरा हो जाएगा और सुप्रीम कोर्ट का मान भी रह जायेगा!चीतों की परवाह किसे है? वे गर्मी से मरेंगे तो मरते रहें।वन्य प्राणी विशेषज्ञ चीख चीख कर अपनी बात कहते रहें!उनकी यह बात कौन सुनेगा कि भारत से चीते शिकार की वजह से नही बल्कि यहां की जलवायु की वजह से लुप्त हुए थे। फिलहाल कमेटी पर कमेटी बन रही है।विशेषज्ञ नियुक्त हो रहे हैं।चीतों पर चर्चा जारी रहेगी।लेकिन शेरों पर अब कोई बात नहीं होगी?सीएम बोल नही सकते और अफसरों की हैसियत से बाहर की बात है।
 हैं न अपना एमपी गज्जब! चीते मरते हैं तो मरें..किसी का मुंह नही खुलेगा!!!

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