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कैलाश जी! आप से नहीं थी ऐसी भाषा की उम्मीद....


राज-काज
दिनेश निगम ‘त्यागी,वरिष्ठ पत्रकार
                       राष्ट्रीय स्तर का कोई नेता जो खुद बुजुर्ग होने की दहलीज पर खड़ा हो, दूसरे बुजुर्गों के लिए हल्की भाषा का इस्तेमाल कर मजाक उड़ाए तो अटपटा लगता है। हम बात कर रहे हैं भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय की। पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं कमलनाथ एवं दिग्विजय सिंह के लिए आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के दो बड़े नेता इन्हें मैं जासूस कहूं या बुढ़ऊ बोलूं, घूम रहे हैं। इनकी 75-75 साल उम्र है। वे जब चलते हैं, सिर्फ चाल ही देख लें आप। कमलनाथ जब चलें तो आप उनका एक वीडियो निकाल लेना और शिवराज जी चलें तो उनका वीडियो निकाल लेना, स्पीड से पला चल जाएगा कि भाजपा कितनी तेज है। कांग्रेस की तुलना में भाजपा तेज चलती है, यह दूसरे तरीके से भी कहा जा सकता था। लेकिन कई बार की तरह कैलाश ने इस बार भी भाषा की मयार्दा तोड़ दी। कांग्रेस की ओर से इस पर तत्काल प्रतिक्रिया आई। ज्यादा नेताओं ने कैलाश को चेताया कि यदि वे फिर ऐसा बोले तो उनकी ही शैली में जवाब दिया जाएगा। प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष नूरी खान चुप नहीं रहीं। उन्होंने विजयवर्गीय को आइना देखने की सलाह देते हुए कहा कि आपका चेहरा पशुतुल्य लगता है। जरा फेस योगा करिए। यह भाषा भी आपत्तिजनक है।
मिशन-23 की राह में रुकावट न बन जाए यह चिंता....
                    भाजपा के बड़े नेता जो चिंता साल भर से बैठकों में व्यक्त कर रहे थे, वही विधानसभा चुनाव से 6 माह पहले हुई पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में भी व्यक्त की गई। यह चिंता है नेताओं-कार्यकर्ताओं के साथ संवादहीनता। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय सहित कई नेताओं ने कहा कि संवादहीनता की ही वजह से दीपक जोशी पार्टी छोड़कर गए, हरविंदर सिंह बब्बू ने प्रदेश अध्यक्ष से अपनी जान को खतरा बता दिया, कुसुम मेहदेले कह रही है पार्टी नेतृत्व का यह रवैया आत्मघाती हो सकता है। भंवर सिंह शेखावत के स्वर बगावती हैं। बैठक में कहा गया कि छोटे से लेकर बड़े से बड़े नेता से संवाद होना चाहिए। यह न होना सबसे बड़ी चिंता है। इसके कारण पार्टी के अंदर असंतोष है। यह सच है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जनता के बीच बड़े कार्यक्रम लगातार कर रहे हैं लेकिन व्यक्तिगत रूप से जिनसे बात होना चाहिए, वह नहीं हो पा रही। इसके लिए भाजपा पदाधिकारी और सरकार के मंत्री सबसे ज्यादा जवाबदार बताए जा रहे हैं। यह चिंता ही मिशन-23 की सफलता की राह में रुकावट बन सकती है। खबर है कि इस मसले पर केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से बात की है। वे चार दिन पहले ही बीएल संतोष तथा धर्मेंद्र प्रधान सहित कुछ केंद्रीय नेताओं से बात कर लौटे हैं।दिग्विजय के ‘इकरार’ में ‘इंकार’ का संकेत....
                  कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने मीडिया को एक चटपटी खबर दी। उन्होंने कह दिया कि यदि कांग्रेस नेतृत्व आदेश करेगा तो वे गुना लोकसभा सीट में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। दिग्विजय ने यह बात अपनी शैली में कही। इसमें इकरार तो था लेकिन इंकार के संकेत ज्यादा थे। उन्होंने बिना किंतु-परंतु लगाए सिंधिया के खिलाफ चुनाव लड़ने की बात नहीं कही। उन्होंने कहा कि वैसे तो वे राज्यसभा के सदस्य हैं। इस लिहाज से उनका चुनाव लड़ना जरूरी नहीं है। दिग्विजय ने कहा कि मेरा गृह क्षेत्र राजगढ़ है, फिर भी पिछली बार मुझसे कहा गया कि आपको भोपाल से लड़ना तो मैं मैदान में उतर गया। लोकसभा चुनाव में अभी लगभग एक साल का समय है। फिलहाल इस साल प्रस्तावित विधानसभा चुनावों की तैयारी चल रही है, इसलिए लोकसभा चुनाव में कौन कहां से लड़ेगा कोई नहीं जानता। संभव है सिंधिया खुद गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र से चुनाव न लड़ें, क्योंकि वे भी राज्यसभा सदस्य हैं। फिर भी दिग्विजय से सवाल पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया। उन्होंने सीधे यह कहने की बजाय कि वे सिंधिया के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे, थोड़ा घुमा-फिरा कर बात की और गेंद कांग्रेस नेतृत्व के पाले में डाल दी। चुनाव लड़ाने का आखिरी फैसला तो आलाकमान का ही होगा।
मोदी के  जरिए भाऊ ने प्रस्तुत कर दी दावेदारी....
                    भाजपा के वरिष्ठ नेता, भाऊ नाम से चर्चित गौरीशंकर बसेन की काम की अलग शैली है और बात करने का अलग बेबाक अंदाज भी। भाजपा के कई नेता जब अपने बयानों के जरिए पार्टी नेतृत्व की नींद हराम किए हैं, ऐसे में  भाऊ पीछे कैसे रहते। उन्होंने कह दिया कि उनकी उम्र अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कम है, यदि वे चुनाव लड़ सकते हैं तो मैं क्यों नहीं? चुनाव लड़ने और काम करने के लिए मैं भी पूरी तरह फिट हूं। आज के दौर में कोई मोदी का नाम लेकर यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा सकता है लेकिन भाऊ हैं ही ऐसे नेता। कोई परवाह किए बगैर जो कहना है, कह डालते हैं। उनके कथन से साफ है कि वे भी भाजपा के वरिष्ठ नेताओं कुसुम मेहदेले, भंवर सिंह शेखावत, हिम्मत कोठारी, सत्यनारायण सत्तन, अनूप मिश्रा आदि की तरह पार्टी नेतृत्व से संतुष्ट नहीं हैं। पहले वरिष्ठता को नजरअंदाज कर उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई और अब उनका टिकट ही खतरे में है। हालांकि बिसेन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी हैं। इसीलिए उन्होंने खुलकर कभी असंतोष जाहिर नहीं किया। मुख्यमंत्री ने भी उन्हें राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बनाकर और केबिनेट मंत्री का दर्जा देकर संतुष्ट करने की कोशिश की है। उनके ताजे बयान से साफ है कि इस बार उनका टिकट खतरे में हैं जबिक वे चुनाव लड़ना चाहते हैं।
‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ जैसी बल्लेबाजी....
                  कमलनाथ लंबे समय से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घोषणावीर कहते आ रहे थे। आरोप लगाते थे कि शिवराज थैले में नारियल लेकर चलते हैं। चाहे जहां फोड़कर भूमिपूजन, शिलान्यास कर देते हैं। यह भी कहते थे कि मैं घोषणाओं पर नहीं, काम पर विश्वास करता हूं। पर अब कमलनाथ भी उसी रास्ते पर हैं। वादों, घोषणाओं के मसले पर दोनों के बीच ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की तर्ज पर प्रतिस्पर्द्धा चल रही है। मुख्यमंत्री चौहान ने लाडली बहना योजना शुरू की तो कमलनाथ ने नारी सम्मान योजना। मुख्यमंत्री ने युवाओं, समाजों के कार्यक्रमों में जाकर घोषणाएं शुरू की तो कमलनाथ भी वही करने लगे। कमलनाथ की घोषणाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। नारी सम्मान के तहत महिलाओं को प्रतिमाह 1500 रुपए, घरेलू गैस सिलेंडर 500 रुपए, कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम के बाद अब 100 यूनिट बिजली माफ, 200 यूनिट बिजली हाफ का नारा। साफ है कि कमलनाथ किसी भी मसले पर मुख्यमंत्री चौहान से पीछे नहीं रहना चाहते। फर्क यह है कि सरकार होने के नाते मुख्यमंत्री घोषणाओं को लागू कर रहे हैं और कमलनाथ सरकार बनने पर इन्हें लागू करने का वचन दे रहे हैं। प्रदेश की जनता शिवराज की घोषणाओं पर भरोसा करती है या कमलनाथ के वचनों पर, यह विधानसभा चुनाव के नतीजे तय करेंगे।  
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