भारतेंदु हरिश्चंद्र : ३५ वर्ष की आयु ,१०० साल का काम
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र कुल ३५ साल जिये और हिन्दी को इस युग नायक ने वो प्रतिष्ठा दी कि एक पूरा युग उनके नाम जुड गया । उन्होंने और उसके बाद पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी ने उस हिन्दी को जिसे खड़ी बोली कहा जाता है ,का भारत को उपहार दिया ।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने “हिन्दी , हिन्दू और हिन्दुस्तान “ के सांस्कृतिक जयघोष को चरम पर पहुँचाया. इसमें देश के नवजागरण के आन्दोलन का शंखनाद था ।
बीस भाषाओं के जानकार भारतेंदु ने हिन्दी को सरल सहज बनाने के लिये “प्रथम हिन्दी व्याकरण “ लिखा । यह और बात है कि उनके इस रूप की चर्चा नहीं होती . भारतेन्दु ने हिन्दी के लिये क्या नहीं किया - मौलिक नाटक लिखे ,अनुवाद किये कविताएँ लिखीं ,निबन्ध लिखे , पत्रिकाएँ निकालीं,संगठन बनायें । हरिश्चंद्र स्कूल खोला ,हरिश्चन्द्र मैगज़ीन निकाली । भारतेंदु उर्दू में भी कविता करते थे । उनका एक रोचक क़िस्सा है -एक दिन वे अपने बगीचे में घूम रहे थे कि एक शायर वहाँ से गुजरे .माहौल देखकर उनकी शायरी जागी और उन्होंने फ़रमाया -
आती है बाग से कुछ बू -ए -कबाब ..फिर वो अटक गए । भारतेंदु ने यूँ मिसरा पूरा किया - किसी बुलबुल का दिल जला होगा ।
आधुनिक हिन्दी के इस जनक ने अपने पुरखे अमीर चन्द्र का कलंक धो दिया जो प्लासी लड़ाई में अंग्रेजों के साथ थे । जिन्होंने धोखा देते हुये खुद ही अंग्रेजों से धोखा खा लिया था। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने लिये देश से सम्मान अर्जित किया ।
आज माधवराव सप्रे संग्रहालय भोपाल में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के सहयोग से दो दिनी राष्ट्रीय संगोष्ठी हो रही है . स्पष्ट है कि अन्यों के साथ भारतेंदु जी को भी स्मरण किया गया . उनके लिखे नाटक “सत्य हरिश्चन्द्र “ का मंचन १२मई को भोपाल के शहीद भवन में हो रहा है .उनके जाने के दो शताब्दियों बाद भी उनके नाटक का मंचन होना ,कालजयी प्रवृत्ति का प्रतीक है । नाटक के युवा निर्देशक हरीश वर्मा हैं ।