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भाजपा को हर घण्टे नुकसान...


ना काहू से बैर

राघवेंद्र सिंह,वरिष्ठ पत्रकार
भोपाल- संगठन की दृष्टि से देश में सबसे मजबूत राज्य माने जाने वाले मध्य प्रदेश में भाजपा अपने बुरे और सर्वाधिक उथल-पुथल के दौर में फंसी हुई है। दीपक जोशी का कांग्रेस में जाना आने वाले दिनों में तूफान का संकेत देता है। कई दीपक हैं जिनकी लौ फड़फड़ा रही है। आशंकाओं के बीच आशा की जा रही है कि कर्नाटक में मतदान के बाद पार्टी नेतृत्व कुछ बड़ा करेगा। वरना अभी तो हर घण्टे के हिसाब से पार्टी के नुकसान का मीटर डाउन है और इसी अनुपात में कांग्रेस के लाभ का भी। भाजपा में शिकायत है कि अनुभवी ईमानदार-वफादारों की लंबे समय से उपेक्षा की जा रही। पीढ़ी परिवर्तन के नाम पर पार्टी में जातिवाद,गुटबाजी,असंतोष, चापलूसी, गणेश परिक्रमा,दलाली, पार्टी और सिद्धांत को छोड़ व्यक्तिवाद के साथ नौसिखिएपन का बोलबाला हो रहा है। नए नेताओं की नीयत भले ही खराब न हो लेकिन अनुभवहीनता के कारण 'अनाड़ी का खेलना और खेल का सत्यानाश' वाली कहावत को चरितार्थ होती दिख रही है।
                     पांच प्रभारियों में से अधिकांश भी जब मुंह खोलते हैं तो अटपटी और अहंकार की बोली सुनाई पड़ती है। अनाड़ीपन की बानगी देखिए एक प्रभारी ने तो यह तक कह दिया कि जब नए कप आते हैं तो पुराने टूटे- फूटे कप बाहर हो जाते हैं। एक अन्य प्रभारी फरमाते हैं कि उनकी एक जेब में पंडित और एक मे बनिए रखे रहते हैं। आहत करने वाले बोल यहीं नही रुकते- ' तीन - चार बार के जीते विधायक पार्टी फोरम पर या निजी चर्चा में शासन प्रशासन में अपनी उपेक्षा की शिकायत संगठन में करते हैं तो उन्हें अयोग्य और निक्कमा कह कर अगले बार टिकट नही देने की  कही जाती है।'  संगठन मंत्री व प्रभारियों द्वारा वरिष्ठ कार्यकर्ताओं और नेताओं के महीनों से समय मांगने पर भी उनसे संवाद नही करना मध्यप्रदेश भाजपा की बड़ी समस्या है। यहीं से पार्टी पर संवेदनहीनता और संवादहीनता के आरोप लगते हैं। 

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प्रभारियों ने भाजपा को पांचाली बना दिया...
                       पच्चीस बरस पहले अभिवाजित मप्र में एक प्रभारी ही सब कुछ संभाल लेता था और पांच पांच प्रभारी होने पर भी हालात बेकाबू हो रहे हैं। वरिष्ठ भाजपा नेता रघुनन्दन शर्मा बहुत दुखी हैं।  प्रभारियों की अयोग्यता को वे कुछ यूं बयां करते हैं कि पांचों प्रभारी देवदुर्लभ प्रदेश भाजपा को पांचाली बना उसकी रक्षा करने बजाए चीर हरण करने में लगे हैं। जो दुर्दशा हो रही है उसे देख लगता है उनके लिए प्रभारी का काम पॉलिटीकल टूरिज्म जैसा हो गया है।  1998 में नरेंद्र मोदी और उसके बाद ओम प्रकाश माथुर, प्रमोद महाजन, अनन्त कुमार, वैंकया नायडू का भी प्रभारी और वरिष्ठ नेता के नाते प्रदेश के संगठन और सरकार में दखल रहा है।  लेकिन ऐसे हाल कभी नही रहे। सरकार-संगठन में हालत नही सुधरे और डैमेज कंट्रोल नही हुआ तो चुनाव तक भाजपा से बागियों और भितरघातियों की फेहरिस्त लंबी होने वाली है। क्योंकि अभी तो रायता फैलना और उसमें रपटना शुरू हो रहा है। इसे भांपते हुए राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं ' भाजपा को भाजपा ही हरा सकती है, कांग्रेस में कहां दम है ' ...मालवा निमाड़, महाकौशल, ग्वालियर-चंबल और विंध्य में असंतोष की खदबदाहट उफान पर आने को है। 
                      नेता-कार्यकर्ताओं में निराशा घर कर रही है। इसे देखने समझने के बाद भी रोकने वाले नजर नही आ रहे हैं। कम लगे तो सुधी पाठक और भाजपा को जानने वाले और भी कुछ जोड़-घटा सकते हैं। जिस भाजपा में कभी अनुशासन का डंका पिटता था वहां बगावत की बातें हो रही हैं। समालोचना की जाए तो ये दोष कार्यकर्ताओं का नही बल्कि नेतृत्व और भाजपा में दिल्ली से भेजे गए प्रभारियों का ज्यादा है। इसमें संघ परिवार से भेजे गए 'बेचारे' संगठन मंत्री भी बराबर के गुनहगार है। इनमें एक सज्जन तो यहां तक कहते हैं - असन्तुष्ट तो वे हैं जिन्होंने सबसे ज्यादा लुटा है, हमारा कार्यकर्ता तो पन्ना प्रभारी में भी खुश है। भाजपा में कठोर अनुशासन और संगठन की धमक के लिए संगठन महामंत्री रहे कप्तान सिंह सोलंकी का कार्यकाल संगठन के सुनहरे दौर के रूप में याद किया जाता है। यही वजह है कि पार्टी सबसे लोकप्रिय सीएम रही उमा भारती की बगावत और उनके द्वारा नई पार्टी भाजश के गठन से भी प्रभावित होने से बच गई थी। तब मन्त्रीगण तो क्या मुख्यमंत्री तक पार्टी कार्यालय में हाजिरी दर्ज कराते थे। श्री सोलंकी के बाद से प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा में नैतिक गिरावट का दौर आरम्भ हो गया था। यह फिसलन सत्ता व समय के तेज होती जा रही है।
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"सांची कहौं"
(ग्वालियर से राज चड्डा
 की FB से साभार)
                    माना कि पतुरिया का आकर्षण पतिव्रता से अधिक होता है पर वो तब तक ही साथ है जब तक जेब में माल है। उसकी अदाओं पर मर मिटने वालो, तुम्हारे जाने पर वो चूड़ियां नहीं फोड़ने वाली।तुम्हारे बाद उसका आशिक़ कौन हो सकता है,इसकी चिंता वो तब भी करती है जब वो तुम पर मर मिटने की कसमें खा रही होती है।दूसरी और तुम्हारी पत्नी तब भी तुम्हारे लिए मर मिटने की सोचती है जब तुमने उसे अपने दिल से निकाल दिया होता है।
                   कुछ यही स्थिति आज के भाजपा कार्यकर्ता की है।आंखें खुलने से लेकर आंखें बंद होने तक की नौबत आ गयी पर उसने पार्टी के सिवा कुछ न देखा न सोचा।हाथ में झंडा थामे लाठियां खाते रहे और ज़िंदाबाद करते रहे।बाल बच्चों को छोड़ पार्टी को बढ़ाने में दिन रात एक कर दिया।धंधे रोजगार चौपट हो गए पर इसी में मस्त रहे कि हमने नगर पालिका की चार सीटें जीत ली हैं।दस में जमानत बचा ली है।हारने के लिए चुनाव लड़ते रहे और मकान गिरवी रख कर घर का खर्च चलाते रहे।आपातकाल लगा तो जेलें भर डाली।यातनाएं सहीं पर उफ़्फ़ न की।एक ही सपना कि एक दिन आएगा जब हमारी सरकार बनेगी।हम अपने सपनों का भारत बनाएंगे। सरकार भी बनीं और हमारे ही बीच के मंत्री और मुख्यमंत्री भी बने।योजनाएं भी बनीं।उन पर अमल भी हुआ।लेकिन उसमें आम कार्यकर्ता की भागीदारी नगण्य रही।वही ठेकेदार जो पहले उनके करीब थे, इनके गले का हार हो गए।धीरे धीरे सत्ता के गलियारों में वे ही दिखाई देने लगे, जिनकी मुर्दाबाद बोलते बोलते हम यहां तक पहुंचे थे।उनके कदमों के निशान हर मंत्री के दरवाज़े पर दिखाई दे रहे थे, जिनकी लाठियों के निशान हमारी पीठ पर अनेकों बार अंकित हो चुके थे।घर वाली बाहर और पतुरिया अंदर।
                  मेरे ही अनेक साथी और मुझसे वरिष्ठ नेता आज मेरी ही भाषा बोल रहे हैं तो इसलिए नहीं कि उन्हें पद प्रतिष्ठा नहीं मिली।उनकी सतत उपेक्षा हुई।यह पीड़ा अस्वाभाविक भी नहीं है।किंतु जिनके विरुद्ध हम सतत संघर्ष करते रहे, वे व्यक्ति और वे मूल्य ही आप के सब कुछ हो गए।ठकुर सुहाती के आगे सच्ची सलाह अपमानित होती रही।आज सत्यनारायण सत्तन , भंवर सिंह शेखावत जैसे बीसियों कार्यकर्ता मुखर हो रहे हैं तो वो केवल दो चार नहीं हैं, प्रदेश के हज़ारों कार्यकर्ताओं की दमित आवाज हैं।सत्ता को चाहिए कि उनकी सुने।पार्टी की वर्तमान स्थिति के लिए उनके दर्द को समझे।नहीं तो सरकारें तो आनी जानी हैं, जो हमारी मूल पूंजी थी, समर्पित कार्यकर्ता उसके घर बैठने पर हम कहीं के नहीं रहेंगे। हम कहीं जाने वाले भी नहीं हैं।भाजपा का झंडे में ही दुनिया से जायेंगे।
आज खुशबीर सिंह शाद का वह शेर याद आ रहा है
"ये तेरा ताज नहीं, हमारी पगड़ी है,
सर के साथ ही जाएगी, सर का हिस्सा है"

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