सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी राजनीतिज्ञों पर बेअसर
डॉ. चन्दर सोनाने
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच के मामले में सख्त रवैया अपनाया। सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न दलों के राजनीतिज्ञों से कहा कि जब राजनीति और धर्म अलग-अलग हो जायेंगे, नेता राजनीति में धर्म का इस्तेमाल करना बंद कर देंगे, तब यह नफरत फैलाने वाली बयानबाजी अपने आप बंद हो जायेगी।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के.एम जोसेफ और बी.वी नागरत्ना की पीठ ने हेट स्पीच के मामले में आदेश देने के बावजूद महाराष्ट्र सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं करने पर कड़ी टिप्पणी की। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्रियों श्री जवाहरलाल नेहरू और श्री अटलबिहारी वाजपेयी के भाषणों का हवाला भी दिया। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि दूरदराज से लोग उन्हें सुनने आते थे और आज असामाजिक तत्व नफरत फैलाने वाले भाषण दे रहे हैं। लोगों को खुद को संयमित रखना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की उक्त पीठ महाराष्ट्र के अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की सुनवाई कर रही थी। ये अर्जी केरल के रहने वाले एक व्यक्ति द्वारा दाखिल की गई थी। उसमें कहा गया था कि महाराष्ट्र में हिन्दू संगठन की रैलियों में जो हेट स्पीच के भाषण दिए गए थे, उनके खिलाफ अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की थी। उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र में सकल हिन्दू समाज नाम का एक संगठन हिन्दू जन आक्रोश मोर्चा के नाम से पिछले 6 माह के दौरान करीब 50 रैलियाँ आयोजित कर चुका है। याचिकाकर्ता का दावा था कि इन रैलियों में बहुत भड़काऊ भाषण दिए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट की उक्त पीठ ने हेट स्पीच के मामले में सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को निर्देश भी दिए कि हेट स्पीच के मामले में आरोपी का धर्म देखे बिना तत्काल उसके विरूद्ध एफआईआर दर्ज की जाए, ताकि संविधान की प्रस्तावना में शामिल देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को सुरक्षित रखा जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी तरह की हेट स्पीच में राज्यों की पुलिस किसी औपचारिक शिकायत का इंतजार नहीं करें और स्वतः संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज करें। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया के ऐसे मामलों में किसी भी तरह की कौताही को कोर्ट की अवमानना मानी जायेगी।
सुप्रीम कोर्ट के हेट स्पीच मामले में सख्त निर्देश और चेतावनी देने के बावजूद राजनैतिक दलों पर उसका कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है। हाल ही में कर्नाटक विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री को जहरीला साँप कह दिया। दूसरी तरफ केन्द्रीय गृहमंत्री ने कर्नाटक चुनाव के दौरान ही कह दिया कि कांग्रेस को जीताने का मतलब है राज्य में दंगे होंगे। केन्द्रीय गृहमंत्री ने यह भी कहा कि कर्नाटक में कांग्रेस द्वारा दिया गया 4 प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण भाजपा ने खत्म कर दिया है। कांग्रेस सत्ता में लौटी तो फिर मुस्लिम आरक्षण लागू करेगी। इसलिए उसे सत्ता से दूर रखे।
अनेक प्रदेश के मुख्यमंत्री भी इस मामले में पीछे नहीं है। कर्नाटक चुनाव के दौरान ही उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने धार्मिक आधार पर मुसलमानों को दिए गए आरक्षण को गलत बताते हुए यह कह दिया कि देश एक और विभाजन के लिए तैयार नहीं है। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव इस वर्ष होने जा रहे है। कांग्रेस सरकार ने भाजपा के हिन्दूत्व कार्ड के जवाब में बड़ी तैयारी कर ली है। कांग्रेस सरकार ने भगवान राम के वनगमन पथ को 3 माह में पूरा करने की योजना बनाई है। इस पथ पर 9 स्थानों पर भगवान राम की आदमकद मूर्तियाँ लगाई जा रही है। इसमें से 3 जगह ये मूर्तियाँ लगाई भी जा चुकी है। रायपुर के पास माता कौशल्या की जन्मस्थली चंदूखेड़ी में तीन दिन का कौशल्या महोत्सव भी मनाया गया। यहाँ भी श्रीराम की मूर्ति लगाई गई है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल ही में परशुराम जयंती पर उनकी जन्मस्थली जानापाव में परशुराम लोक बनाने की घोषणा की। मध्यप्रदेश की संस्कृति मंत्री ने हाल ही में एक नोटशीट जारी करते हुए कहा कि मैहर के मंदिर की समिति से मुस्लिम कर्मचारियों को हटाया जाए। ये हो क्या रहा है ?
कुछ समय पहले हेट स्पीच का एक बहुचर्चित मामला भाजपा के प्रवक्ता नूपुर शर्मा का आया था। नूपुर शर्मा के खिलाफ महाराष्ट्र के ठाणे के मुंब्रा थाने में एक शिकायत दर्ज की गई थी। नूपुर शर्मा के खिलाफ आपसी दुश्मनी को बढ़ावा देने और धार्मिक भावनाओं को आहत पहुंचाने के मामले में आईपीसी की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया। नूपुर शर्मा पर एक टीवी चैनल पर डीबेट के दौरान पैगम्बर मोहम्बद के खिलाफ कथित रूप से टिप्पणी करने का आरोप था। किन्तु नूपुर शर्मा का क्या हुआ ? पूरी सरकार नूपुर शर्मा के साथ खड़ी हो गई और उसे बचा ले गई।
सुप्रीम कोर्ट ने उस समय भी नूपुर शर्मा की टिप्पणियों को तकलीफदेह बताया था और कहा था कि किसी भी पार्टी की प्रवक्ता होने का यह मतलब नहीं है कि उनके पास ऐसे बयान देने का लाइसेंस है। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट रूप से कहा था कि नूपुर शर्मा ने देशभर में भावनाओं को उकसाया है। देश में जो भी हो रहा है, उसके लिए वो अकेली जिम्मेदार है। उसे पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए थी।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जोसेफ और जस्टिस नागरत्ना ने प्राचीन स्थानों और शहरों के नाम बदलने के लिए पुनर्नामकरण आयोग बनाने की माँग वाली जनहित याचिका पिछले दिनों खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा आक्रांताओं के इतिहास को खोदकर वर्तमान और भविष्य के सामने नहीं रख सकते। कोई देश अतीत का गुलाम नहीं रह सकता। हमें आगे बढ़ना है। कोर्ट ने यह भी कहा कि हमारा देश धर्म निरपेक्ष है। हिन्दू धर्म जीवन जीने का तरीका है। इसमें कट्टरता नहीं है। इतिहास मौजूदा और भावी पीढ़ी को डराने वाला नहीं होना चाहिए। कोर्ट में याचिकाकर्ता को यह भी कहा कि ये मुद्दे जिन्दा रखकर आप चाहते है देश उबलता रहे। कोर्ट ने यह भी कहा कि धर्म का सड़कों के नाम से कोई लेना-देना नहीं। अतीत को ऐसे मत कुरेदिए जो अशांति पैदा करें।
सुप्रीम कोर्ट के अनेक बार हेट स्पीच पर सख्त रवैया अपनाने और चेतावनी देने के बावजूद कोई राजनैतिक दल और उसके नेता उसकी कोई परवाह नहीं कर रहे हैं। किसी पर भी सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी का कोई असर नहीं हो रहा है। ऐसे में क्या किया जाए ? सुप्रीम कोर्ट के ऊपर कौन है ? हमारे देश में सुप्रीम कोर्ट ही है, जिससे पीड़ित लोगों को आशा बंधी रहती है। देश में जब-जब भी कोई बात संविधान के विपरीत होती है तो सुप्रीम कोर्ट सख्त रवैया अपनाता है। हेट स्पीच के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रवैया अपनाया। इसके बावजूद क्या हुआ ? लगता है किसी को सुप्रीम कोर्ट की परवाह ही नहीं है। अतः अब सुप्रीम कोर्ट को ही चेतावनी से आगे बढ़कर सख्त एक्शन लेने की जरूरत है। वह खुद हेट स्पीच में दोषी पाए गए व्यक्ति के विरूद्ध कानून के प्रावधान अनुसार सख्त कार्रवाई करें और दोषी को सजा सुनाए, तभी शायद विभिन्न राजनैतिक दल संभले ! वास्तव में राजनीति और धर्म का घालमैल ही यह सब करा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी के बावजूद कुछ नहीं हो रहा है। इसलिए अब सुप्रीम कोर्ट को मात्र अपील और चेतावनी तक सीमित नहीं रहते हुए दोषी को सजा भी सुनानी चाहिए, तभी शायद विभिन्न राजनैतिक दलों के नेताओं की जुबान में लगाम लग सके और हेट स्पीच से होने वाले दुष्परिणाम से देश को बचाया जा सके।
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