टीएलएफ के खिलाफ गुस्सा भड़का हवन करते हाथ जले सरकार के
कीर्ति राणा,वरिष्ठ पत्रकार
सरकार को सलाह देने वाले यदि वाकई समझदार हैं तो छोटे दुकानदार, ठेले-वाहन पर व्यवसाय करने वाले खुदरा दुकानदार भी इतने नासमझ नहीं हैं जो सरकार के ट्रेड लाइसेंस शुल्क (टीएलएफ) को आंख मूंद कर स्वीकार कर लें। यही वजह है कि इंदौर ही नहीं पूरे प्रदेश में कारोबार पर कुठाराघात माने जा रहे टीएलएफ के खिलाफ व्यापारिक संगठनों में भड़की चिंगारी आग बनने वाली है। भाजपा नेताओं को आश्चर्य करना ही चाहिए कि चुनावी साल में सरकार ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने का यह निर्णय कैसे ले लिया ? व्यापारी वर्ग को इस बात पर आश्चर्य करना चाहिए कि टीएलएफ की मार उन्हें तो तत्काल समझ आ गई लेकिन फिर से सत्ता में आने के घुंघरू बांधे घूम रहे कांग्रेस के नेताओं को संपट क्यों नहीं बंध रही है? शायद कांग्रेस इसलिए बोलने से कतरा रही है कि उसके दिमाग में अब तक यह भरा हुआ है कि भाजपा तो व्यापारियों की पार्टी है, व्यापारियों के वोट जब मिलते ही नहीं तो क्यों बोलें ! कांग्रेस यदि अब भी किसानों के भरोसे है तो उसके रणनीतिकारों को यह भी पता होगा कि शहरों में भी मतदाता बसते हैं। टीएलएफ के बहाने मुझे जो सत्ता-संगठन की रणनीति समझ आ रही है वह यह कि अगले कुछ दिनों तक टीएलएफ की आग को भड़कने दिया जाएगा फिर व्यापारी संगठनों के साथ सरकार-संगठन के प्रमुखों की द्विपक्षीय बैठक में टीएलएफ को स्थगित (समाप्त करने का नहीं) करने का निर्णय लेकर सरकार भी अपने इस वोट बैंक की नाराजी दूर कर देगी।निर्णय से खुश व्यापारी संगठन जय जयकार करने के साथ ही सरकार को जिले-जिले में सम्मान-आभार वाले इवेंट की राह दिखा देंगे।
होना तो यह चाहिए था कि कानून के जानकार इंदौर के महापौर जब मुख्यमंत्री से इंदौर के मास्टर प्लान का अनुरोध करने गए थे तब ही कान में फूंक देते कि टीएलएफ का निर्णय सरकार के लिए आत्मघाती हो सकता है।महापौर ने आश्वस्त तो किया है कि टैक्स लागू नहीं करेंगे लेकिन जानकार यह भी जानते हैं कि सरकार गजट नोटिफिकेशन जारी कर चुकी है। प्रदेश की नगर निगमों-पालिकाओं से सर्वानुमति से प्रस्ताव पारित होना चाहिए कि टीएलएफ वापस लिया जाए। संभव है कि संगठन की गाइड लाइन का लिहाज कर के इंदौर सहित अन्य नगर निगमों के प्रथम नागरिक चुप रह गए हों, ताज्जुब तो इस बात का है कि विपक्ष के मुंह में भी दही जमा है और पैरों में मेहंदी लगी है। प्रदेश की किसी भी नगर निगम, पालिका आदि के नेता प्रतिपक्ष ने टीएलएफ जैसे निर्णय लेने वाली सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए महापौरों पर दबाव लाने का साहस नहीं दिखलाया है। टीएलएफ में हर दो साल में पांच प्रतिशत की बढ़ोतरी का प्रावधान भी किया गया है। इसके लिए सरकार की तरफ से 18 अप्रैल 2023 को गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है।
▪️ अब प्रति वर्गफीट, रोड की चौड़ाई मुताबिक टीएलएफ वसूला जाएगा
प्रदेश के बड़े-छोटे-खुदरा व्यापारियों के साथ ही ठेले व अन्य वाहनों पर व्यापार करने वालों के लिए यह तगड़ा झटका ही है। नगरीय निकायों की आमदनी बढ़ाने के लिए व्यापार अनुज्ञप्ति शुल्क (टीएलएफ) अब प्रति वर्गफीट और दुकान, संस्थान के सामने वाली रोड की चौड़ाई के आधार पर नियत कर दिया है।
अभी तक यह शुल्क किए जाने वाले व्यापार पर निर्भर था।हर व्यापार की अलग-अलग कैटेगरी के आधार पर यह दस रुपए से लेकर 15 से 20 हजार रुपए तक होता था। जैसे कि विधवा महिला के कारोबार करने पर शुल्क दस रुपए मात्र था, लेकिन अब दुकान, संस्थान की माप और सामने की रोड़ चौड़ाई के आधार पर यह शुल्क लगेगा।
लाइसेंस फीस की चार कैटिगरी निर्धारित नगरीय विकास एवं आवास विभाग के मुताबिक प्रदेश के किसी भी नगर निगम सीमा क्षेत्र में 15 मीटर से अधिक चौड़ी सड़क किनारे 1000 फीट की दुकान में व्यापार करने वालों को वार्षिक 6000 रुपये टीएलएफ (ट्रेड लाइसेंस फीस) देना होगा। नगर निगम सीमा में सड़कों की चौड़ाई और क्षेत्र के आधार पर टीएलएफ 50 हजार रु। नगर पालिका सीमा में यही शुल्क 25 हजार। नगर परिषद में 15 हजार रुपये प्रतिवर्ष तो देना ही है। वाहन से व्यापार में यातायात प्रभावित होने पर ट्रेड लाइसेंस निरस्त करने का प्रावधान भी किया गया है। सड़क की चौड़ाई पर यह दर
▪️ नगर निगम सीमा में 7.5 मीटर से कम या 7.5 मीटर चौड़ी सड़क के किनारे 4 रुपये प्रति वर्ग फीट
नगर पालिका में 3 रुपये प्रति वर्ग फीट।
नगर परिषद में 2 रुपये प्रति वर्ग फीट की दर से टीएलएफ जमा करना होगा।
चौड़ाई अधिक होने पर
▪️ 7.5 और 15 मीटर के बीच चौड़ी सड़क के किनारे नगर निगम में 5 रुपये प्रति वर्ग फीट।
नगर पालिका में 4 रुपये प्रति वर्ग फीट और नगर परिषद में 3 रुपये प्रति वर्ग फीट की दर से लाइसेंस फीस चुकानी होगी.
▪️15 मीटर से अधिक चौड़ी सड़क पर नगर निगम में 6 रुपये प्रति वर्ग फीट।नगर पालिका में 5 रुपये प्रति वर्ग फीट और नगर परिषद में 4 रुपये प्रति वर्ग फीट की दर से लाइसेंस फीस चुकानी होगी।
मोहल्ला,कॉलोनी या व्यापारिक परिसर
▪️ मोहल्ला या कॉलोनी में नगर निगम में 4 रुपये प्रति वर्ग फीट, नगर पालिका में 3 रुपये प्रति वर्ग फीट और नगर परिषद 2 रुपये प्रति वर्ग फीट की दर से लाइसेंस फीस देनी होगी.
▪️छोटे अथवा मध्यम आकार के बाजारों में नगर निगम में 5 रुपये प्रति वर्ग फीट, नगर पालिका में 4 रुपये प्रति वर्ग फीट और नगर परिषद में 3 रुपये प्रति वर्ग फीट की दर से फीस देनी होगी.
▪️ वृहत या बड़े बाजारों में नगर निगम में 6 रुपये प्रति वर्ग फीट, नगर पालिका में 5 रुपये प्रति वर्ग फीट और नगर परिषद में 4 रुपये प्रति वर्ग फीट की दर से फीस देनी होगी.
गुमटी या कच्ची दुकान
▪️ गुमटी या कच्ची दुकानों के लिए लाइसेंस फीस नगर निगम सीमा में 250 रुपये, नगर पालिका सीमा क्षेत्र में 150 रुपये और नगर परिषद सीमा में सौ रुपये की दर से लायसेंस फीस चुकानी होगी.
वाहनों के माध्यम से व्यापार
▪️ मिनी ट्रक, पिकअप वैन, जीप या अन्य कोई भी चार पहिया वाहन से व्यापार करने पर नगर निगम में 400 रुपये प्रति वाहन, नगर पालिका में 300 रुपये प्रति वाहन, नगर परिषद में 200 रुपये प्रति वाहन लाइसेंस फीस लगेगी. ऑटो रिक्शा या किसी भी तिपहिया वाहन से व्यापार करने पर नगर निगम में 250 रुपये प्रति वाहन, नगर पालिका में 200 रुपये प्रति वाहन और नगर परिषद में 150 रुपये प्रति वाहन लाइसेंस फीस चुकानी होगी.
▪️गुमटी, कच्ची दुकान के लिए
गुमटी व कच्ची दुकान के लिए यह निगम एरिया में 250 रुपए।
नगर पालिका परिषद में 150 रुपए।
नगर परिषद में टोटल 100 रुपए प्रति साल।
व्यापारी हुए संगठित
टीएलएफ लागू करने के निर्णय से प्रदेश के व्यापारियों में नाराजगी है। कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने राज्य सरकार द्वारा ट्रेड लाइसेंस का शुल्क बढ़ाये जाने का विरोध किया है।अहिल्या चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री पदाधिकारियों का कहना है विरोध की क्या प्रक्रिया क्या होना चाहिए, इस हेतु समस्त व्यापारिक संस्थानों की महत्वपूर्ण मीटिंग 26 अप्रैल को सियागंज सभागृह में शाम चार बजे आयोजित की है। संस्था के अध्यक्ष रमेश खंडेलवाल व महामंत्री सुशील सुरेका, मालवा चेंबर ऑफ कामर्स के अजित सिंह नारंग का कहना है व्यापारी पहले ही टैक्सों की मार से घायल है । अब रोज नए-नए तरीके से व्यापारियों पर असहनीय भार लादे जा रहे हैं। बजाए इज ऑफ डूइंग बिजनेस के व्यापार करना मुश्किल होता जा रहा है।