इतिहास का पराजय बोध बदलने वाले “सभ्यता योद्धाओं “ की गाथाएँ, जिन्हें हम नहीं जानते
लाजपत आहूजा, वरिष्ठ पत्रकार
हमें जो इतिहास पढ़ाया गया उससे हमारी प्रतिरोध की क्षमता का कतई पता नहीं चलता .अलग-अलग कालखंड के उन सभ्यता योध्दाओं के बारे में हम नहीं जानते हैं ,या कम जानते हैं ,जिनके कारण भारत,विषम प्रतिकूलताओं के बावजूद भारत बना रह सका.
इतिहासकार और लीक से हटकर तथ्य रखने वाले लेखक विक्रम संपथ अपनी नई किताब में भारतीय इतिहास में रुचि रखने वाले सुधि पाठकों के लिये यह यशस्वी अध्याय लेकर आएँ हैं.प्रारंभ उन्होंने कश्मीर के शक्तिशाली शासक ललितादित्य मुक्तापीड से किया है. मोहम्मद बिन कासिम ने सातवीं शताब्दी में मुलतान के दाहिर सेन को पराजित किया,तो दाहिर सेन के पुत्र ने कश्मीर में शरण ली .क़ासिम अब कश्मीर की ओर बढ़ चला जहां ललितादित्य से उसे मुँह की खानी पड़ी.कश्मीर के शासक ने यह कार्य कन्नौज के यशो वर्मन के साथ से कर दिखाया.कितने लोग जानते हैं गुजरात की पाटन की रानी नायकी के बारे में जिसने मोहम्मद गोरी को ११७८ में युध्द क्षेत्र से भागने को मजबूर कर दिया था.गोरी ने पहले गुजरात के रास्ते भारत में घुसने का सोचा था.उसके निशाने पर था अन्हिल बाड़ पाटन जो चालुक्य वंश की राजधानी थी.यहाँ की रानी थीं सोलंकी राजा अजयपाल की मृत्यु के बाद बागडोर सँभालने वाली नायकी देवी.उसका छोटा बेटा था.गोरी ने सोचा होगा कि एक औरत उसका क्या बिगाड़ लेगी .माउंट आबू की तलहटी पर स्थित गदरघटा के इलाक़े में हुई लड़ाई ने गोरी की ग़लतफ़हमी दूर कर दी.चालुक्यों ने कसाहरादा की लड़ाई में विदेशी आक्रमणकारियों को रौंद दिया.गोरी जान बचाकर भागा.गोरी ने फिर गुजरात का रास्ता छोड़ दिया.बाद के आक्रमण उसने पंजाब के रास्ते से किये.
औरंगजेब को हराने वाले असम
के अहोम और सेनापति लाचित
शिवा जी से प्रेरित असम के अहोमों ने औरंगजेब की सेनाओं को दो दो बार हराया. सेनापति लाचित बरफूकन ने मैदान के साथ ब्रम्ह पुत्र नदी के भयंकर युध्द में राजराम सिंह को मात दी और लौटने को मजबूर कर दिया. बीमार होने पर खाट पर आकर लाचित ने नदीयुध्द का दृश्य ही बदल दिया .उनकी स्मृति में आज भी राष्ट्रीय डिफ़ेंस अकादमी में हर वर्ष बेस्ट केडेट को स्वर्ण पदक दिया जाता है.
मराठों के नौ सेनापति कान्हो जी आंग्रे का समुद्र पर अलग ही जलवा था.एक समय में तो उन्होंने अंग्रेजों और पुर्तगालियों की संयुक्त सेनाओं को परास्त कर अपनी शर्तों पर संधि की.कोंकण के समंदर में उनका पासपोर्ट चला करा करता था.विक्रम संपथ की इस किताब में कुल १५ स्वर्णिम व्यक्तित्व /अध्याय समय के शिलालेख पर अंकित है.इनमें उपरोक्त के अलावा अभी हाल में चर्चा में रहे चोल साम्राज्य के पिता-पुत्र राजराजेश्वर और राजेन्द्र ,वारागंल की रूद्रमा देवी,रानी अब्बक्का जिन्होंने पुर्तगालियों से लोहा लिया के प्रसंग हैं.शक्तिशाली मुग़लों से टकराने वाली चाँदबीबी,बंदा बैरागी,यूरोपियन ताक़तों विशेषकर डचों को हताश कर देने वाले मार्तण्ड वर्मा और काशी और सोमनाथ मेदिर का पुनर्निर्माण कराने वाली रानी अहिल्या बाई, कृष्ण भक्त माणिपुर के राजर्षि जयसिंह की गाथाएँ हैं.शिवगंगा, दक्षिण की रानी वेल नचियार और लखनऊ की बेगम हजरत महल के भी प्रसंग लिये गए हैं.
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