पत्ता कटने के संकेत से सकते में मंत्री....
राज-काज
दिनेश निगम ‘त्यागी’,वरिष्ठ पत्रकार
अगले साल प्रस्तावित विधानसभा चुनावों को ध्यान में रख कर राज्य मंत्रिमंडल में फेरबदल की खबरें तेज हैं। सकते में लगभग आधा दर्जन मंत्री हैं, जिन्हें हटाने के संकेत दे दिए गए हैं। इनमें से कुछ खराब परफारमेंस के कारण खतरे में हैं जबकि कुछ का पत्ता जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधने के कारण कट सकता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पार्टी नेतृत्व पहले भी कई बार संकेत दे चुके हैं, जिन मंत्रियों का परफारमेंस ठीक नहीं है, वे समय रहते सुधार लें वर्ना उन्हें हटा दिया जाएगा। लगता है यह घड़ी अब नजदीक आ गई है। खबर है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल का पूरा खाका तैयार कर लिया गया है। गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद इस पर अमल हो जाएगा। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के कुछ मंत्रियों पर भी गाज गिरेगी, क्षेत्रीय संतुलन के लिहाज से इसे जरूरी माना जा रहा है। खास बात यह है कि इसके लिए सिंधिया को तैयार कर लिया गया है। सिंधिया की नजर चूंकि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है, इसलिए वे ज्यादा मोल-भाव करने की स्थिति में भी नहीं हैं। इधर पत्ता कटने की खबर से मंत्रियों की नींद उड़ गई है। ये अपना परफारमेंस सुधारने की कोशिश में हैं और पार्टी नेताओं को साधने में भी। दूसरी तरफ एक दर्जन से ज्यादा विधायक अपने नेताओं की मदद से मंत्रिमंडल में जगह पाने की लाबिंग में जुटे हैं।
यह महज कोरी अफवाह या दाल में कुछ काला.... यह महज कोरी अफवाह हो सकती है और दाला में कुछ काला भी। लेकिन राजनीतिक हल्कों में भाजपा नेताओं की केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से टकराव की खबरें सुर्खियां बनने लगी हैं। चंबल-ग्वालियर अंचल में एक दूसरे के हित ज्यादा टकरा रहे हैं। भाजपा कार्यालय में हुई एक बैठक से सिंधिया अचानक उठकर चले गए। खबर चटपटी होकर निकली। आनन-फानन भाजपा के मैनेजर सक्रिय हुए। स्पष्टीकरण आया कि सिंधिया को बुखार था, इसलिए चले गए। स्थिति सिंधिया खेमे ने स्पष्ट नहीं की। बाहर चर्चा थी कि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ उनके किसी मसले पर मतभेद थे। बाद में पता चला कि सिंधिया कोरोना पॉजीटिव निकल आए हैं। भाजपा में अभी से अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए प्रत्याशी चयन का काम शुरू हो गया है। सिंधिया अपने सभी समर्थक विधायकों को तो टिकट चाहते ही हैं, उप चुनाव हारे समर्थकों के लिए भी सक्रिय हैं। इसका भाजपा के अंदर विरोध है। चर्चा है कि मंत्रिमंडल फेरबदल में सिंधिया के कुछ समर्थक प्रभावित हो सकते हैं। इस खबर ने सिंधिया एवं उनके समर्थकों की नींद उड़ा रखी है। दूसरी तरफ सिंधिया की प्रदेश में बढ़ती सक्रियता से भाजपा के कई नेता सशंकित हैं और उनका तोड़ ढूंढ़ रहे हैं।
अब भी कम नहीं हुई अरुण से नाराजगी....
अरुण यादव की तुलना में निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा को तवज्जो, संकेत साफ है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ अब भी अरुण से खफा हैं। कमलनाथ के निर्देश पर शेरा को भारत जोड़ो यात्रा का बुरहानपुर एवं खंडवा का प्रभारी नियुक्त किया गया है। शेरा वे निर्दलीय विधायक हैं जो कांग्रेस से बगावत कर विधानसभा का चुनाव लड़े और जीते। कांग्रेस की सरकार बनी तो दबाव की राजनीति करते रहे। ऐसे में खंडवा से सांसद, प्रदेश अध्यक्ष एवं केंद्रीय मंत्री रहे अरुण यादव की तुलना में शेरा को तरजीह कैसे दी जा सकती है? खंडवा, बुरहानपुर अरुण यादव का कार्य क्षेत्र है। बुरहानपुर से राहुल गोधी की भारत जोड़ो यात्रा प्रदेश में प्रवेश कर रही है। अब तक सारी व्यवस्थाएं अरुण देख रहे थे। ऐसा क्या हुआ कि अचानक पूरी जवाबदारी शेरा को सौंप दी गई और अरुण को बाहर कर दिया गया? किसी की समझ नहीं आया। कमलनाथ और अरुण के बीच प्रारंभ में पटरी नहीं बैठ रही थी। कमलनाथ ने नाथूराम गोडसे की पूजा करने वाले हिंदू महासभा के एक नेता को कांग्रेस ज्वाइन कराई थी तो अरुण ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। ट्वीट में उन्होंने लिखा था, ‘बापू हम शर्मिदा हैं’। दोनों के बीच दूरी और बढ़ी थी। बाद में सुलह की भी खबरें थीं। नए घटनाक्रम से साफ है कि अब भी सब ठीक नहीं है।
कमलनाथ ने कराई अपने नेताओं की फजीहत....
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ गोविंद सिंह, अजय सिंह, अरुण यादव के साथ जयवर्धन सिंह एवं केके मिश्रा की जमकर फजीहत हुई, वजह बने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ। पहले पार्टी के आधा दर्जन नेताओं ने आरोप लगाया था कि भाजपा राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर हमले करा सकती है। नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह के पास कट्टा लेकर घुसे युवक से इसे जोड़ा गया था। आरोप दिग्गज नेताओं की ओर से था, सो सरकार सकते में आ गई। खबर है कि सरकार की ओर से कांग्रेस नेताओं से संपर्क साधा गया। नतीजा, कमलनाथ ने आरोप की यह कहकर हवा निकाल दी कि भारत जोड़ो यात्रा में कहीं कोई हमला नहीं हो रहा है। इस बयान से आरोप लगाने वाले नेताओं की खासी फजीहत हुई। कमलनाथ के बयान पर प्रतिक्रिया चाही गई तो वे कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थे। करते भी क्या, कमलनाथ ने इन्हें कहीं का नहीं छोड़ा था। क्या ऐसा भाजपा में संभव है? कतई नहीं। समन्वय की इस कमी से कौन कांग्रेस नेता कब अपनी ही पार्टी के किस नेता की टोपी उछाल दे, कोई नहीं जानता। यहां कमलनाथ ही यह कर बैठे। कांग्रेस में ऐसी कोई व्यवस्था बनना चाहिए, ताकि पहले से तय हो जाए कि क्या बोला जाना है, क्या नहीं। वर्ना कांग्रेस और नेताओं की छीछालेदर इसी तरह होती रहेगी।
माफ करिए, यह सिर्फ राजनीति और कुछ नहीं....
गुरुनानक जयंती पर इंदौर के खालसा कालेज पहुंचे कमलनाथ को लेकर पैदा किया गया विवाद बेवजह दिखता है। इसे लेकर सिर्फ राजनीति हो रही हैं। कमलनाथ का नाम सिख दंगों में लिया जरूर जाता है लेकिन न उनके खिलाफ कहीं कोई एफआईआर है, न सजा हुई है और संभवत: न ही किसी कोर्ट में कोई मामला चल रहा है। इतना ही नहीं, कांग्रेस सिख दंगों के लिए माफी मांग चुकी है। सिख समाज कांग्रेस को माफ भी कर चुका है। तभी दंगों के बाद पंजाब में दो बार कांग्रेस की सरकार बन चुकी है। केंद्र में कांग्रेस ने एक सिख को दस साल तक प्रधानमंत्री बनाए रखा है। ऐसे में सिखों के एक कार्यक्रम में कमलनाथ के पहुंचने का पहले विरोध और फिर इसे तूल देना महज ओछी राजनीति लगती है। कीर्तनकार का कीर्तन करने से ही इंकार और कभी इंदौर न आने की घोषणा से साफ है कि उन्हें गुरुनानक के आदशों, उनके बताए मार्ग से कोई लेना देना नहीं है। यदि वे गुरुनानक को ही जानते होते तो ऐसा कभी नहीं करते। उनके दर पर मत्था टेकने वाला अपने आप माफी का हकदार हो जाता है। कार्यक्रम में बड़ी तादाद में सिख शामिल थे। उन्होंने कमलनाथ का स्वागत किया था। साफ है कि पूरा सिख समाज कमलनाथ के विरोध में नहीं है। सवाल है, तो क्या विरोध करने वाले सिर्फ कांग्रेस विरोधी मानिसकता के हैं? या कहीं से संचालित हैं?
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