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अमन और चैन अनमोल है


रविवारीय गपशप

                 

लेखक डॉ आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस अफ़सर हैं और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि अमन चैन अनमोल होता है , क्योंकि जब ये बिगड़ता है तभी इसका मूल्य समझ आता है । पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों को इसलिए क़ानून व्यवस्था की स्थिति सम्भालने के लिए निरंतर सजग रहना पड़ता है । आज का प्रसंग ऐसी ही एक घटना का है , जब मैं उज्जैन जिले में मुख्यालय का अनुविभागीय अधिकारी हुआ करता था । एक दिन की बात है , शहर में मुख्यमंत्री आये हुए थे और उनके उज्जैन नगर में कई स्थानों पर कार्यक्रम थे । मैं मुख्यमंत्री जी के काफिले के आगे इस जबाबदारी के साथ चल रहा था कि आगे कार्यक्रमों में कोई विघ्न ना हो । मुख्यमंत्री जी का क़ाफ़िला जब उदयन मार्ग से गुजर रहा था तभी वायरलेस सेट पर सन्देश आया कि महाकाल थाना क्षेत्र में दो समुदायों के मध्य कुछ तनाव की स्थिति बन रही है , किसी मजिस्ट्रेट को भेजा जाये । मैंने अपनी गाड़ी रोकी और कलेक्टर श्री विनोद सेमवाल को स्थिति बताई । उन्होंने कहा कि तुम घटना स्थल पर जाओ , सी.एम. साहब के साथ हम सब हैं ही , कोई गंभीर बात हो तो तुरंत बताना । वैसे तो उज्जैन शहर में सामाजिक समरसता का माहौल रहता है पर महाकाल थाना क्षेत्र की घटना होने से यह विषय संवेदनशील हो गया था । महाकाल घाटी पहुँचने पर मैंने देखा में गुदरी चौराहे के पास भीड़ जमा थी , मैंने वाहन रुकवाया और भीड़ के बीच खड़े टी.आई. साहब को पास बुलाया । मुझे देखते ही उन्होंने भीड़ से कहा कि लो अब एस.डी.एम. साहब आ गए हैं , आप लोग इनसे अपनी समस्या बताओ । थोड़ी देर में बातचीत के बात मुझे माजरा समझ आ गया । इस क्षेत्र में एक सिंधी धर्मशाला थी जिसमे कोई बाबा रुका हुआ था और उसके पास सभी तरह के लोग अपनी समस्याओं से निजात पाने जा रहे थे , इसी तरह की आवाजाही में एक समुदाय की एक किशोर अवस्था की बच्ची , परीक्षा परिणाम के बारे में जानने गयी और अकेले में उसके साथ कुछ नागवार हरकत हुई जिसे बच्ची ने घर आकर अपनी माँ को बताया , उसने पड़ोसियों को और फिर धीरे धीरे मोहल्ले के लोग इकठ्ठे हो गए , ये भीड़ उसी की थी । मैंने भीड़ में खड़े लोगों से पूछा बच्ची के माँ बाप कहाँ हैं ? थोड़ी देर में वो मेरे सामने लाये गए , मैंने उन्हें सुना , फिर समझाया कि जो भी दोषी है उस पर हम कड़ी कार्यवाही करेंगे , वे मान गए । मैंने फिर भीड़ के बचे लोगों से पूछा कि अब क्या है ? लोग कहने लगे कि साहब वो बाबा इसी धर्मशाला में कहीं छुपा है और ये लोग कह रहे हैं कि वो वहां नहीं है , हम कैसे भरोसा करें ? मैंने टी.आई. से पूछा तो उन्होंने कहा कि पूरी धर्मशाला की तलाशी ले ली है पर वो बाबा कहीं भी नहीं है । भीड़ के बीच ही धर्मशाला के प्रबंधक भी खड़े थे मैंने उन्हें बुलाया । तब तक मैं समझ चुका था कि लोगों को आक्रोश बाबा की गैरजिम्मेदाराना हरकत पर था वरना ये लोग कैसे सुरक्षित खड़े रहते ? मैंने प्रबंधकों से बात की तो उन्होंने भी कहा बाबा तो भाग गया है । भीड़ में खड़े कुछ स्वयंभू नेता कहने लगे आप तो हमें पुलिस के साथ अंदर भेज दो हम तसल्ली कर लें फिर हम चले जायेंगे । मैंने कहा अच्छा आप सब यहीं रुको मैं खुद अंदर जा कर ढूंढता हूँ , यदि मुझे कोई नहीं मिला तब तो मानोगे , मेरे ऐसा कहने पर वे तुरंत मान गए । टी.आई. साहब को नियंत्रण हेतु नीचे छोड़ , थाने के कुछ स्टाफ को लेकर मैं ऊपर गया । पूरी धर्मशाला छान मारी , सचमुच कोई भी नहीं था । हम वापस लौट ही रहे थे कि हमारे साथ के होमगार्ड ने अनाज रखने की एक आदमकद कोठी ( बर्तन ) को हिलाते हुए कहा कि लगता है इसमें कोई है । कोठी में ताला लगा था , प्रबंधकों से पूछा तो वे इधर उधर की बातें करने लगे कि चाबी न जाने कहाँ रखा गयी है । मुझे शक हो गया था , साथ खड़े हवलदार से कहा तो उसने हथोड़े से ताला तोड़ दिया । बर्तन खुला तो उसमे अंदर दुबका हुआ बाबा बैठा मिल गया । मैंने टी.आई. साहब से वायरलेस सेट पर कहा कि पुलिस की जीप धर्मशाला के गेट पर लगा दो । हमारे पास बहुत ज्यादा पुलिस बल नहीं था इसलिए हमने तय किया कि किसी तरह इस बाबा को यहाँ से सुरक्षित निकाल कर थाने तक ले चलें फिर वैधानिक कार्यवाही कर लेंगे । मैंने साथ के पुलिस कर्मियों को कहा “इस बाबा को चारों ओर से घेर लो” और उसे अपने पीछे लेकर सीढ़ियों से नीचे उतरा । इस बीच भीड़ में ये सन्देश चला गया था कि बंदा मिल गया है । मैं नीचे उतरा और चिल्ला कर बोला कि हमने आरोपी पकड़ लिया है , अब आप लोग जाओ । कुछ लोग जाने लगे , पर बहुतेरे खड़े रहे । हम बाबा को पुलिस जीप में बैठा ही रहे थे कि किसी ने भीड़ में से पथराव कर दिया । मैं जीप के पास ही खड़ा था , कि अचानक गोली कि तरह आता एक पत्थर पहले मेरी कुहनी और फिर उससे फिसल कर मेरी आँख पर लगा । एक क्षण के लिए मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया । मैंने जेब से रूमाल निकाल आँख पर रखा और चिल्ला कर कहा , गाड़ी सीधे थाने रोकना और उनके रवाना होते ही अपनी जीप में आकर बैठ गया । जीप मैं बैठ मैंने रुमाल हटाया तो तो आँख से निकलते खून से रुमाल गीला हो गया । मेरी एक आँख में ही दृष्टि थी और उस दूसरी आँख से मुझे कुछ भी नहीं दिख रहा था । मैंने अपने आप को सम्हाला और सोचा कि ये बात लोगों में फैल गई कि इस समुदाय के लोगों के पथराव से ऐसा कुछ हुआ है कुछ भी प्रतिक्रिया हो सकती थी । इसलिए मैंने अपने ड्राइवर से कहा कि सीधे ज़िला अस्पताल ले चलो । अस्पताल के रास्ते आते आते मैंने देवास गेट थाने के वायरलेस सेट पे खबर करवाई कि मैं अस्पताल पहुंच रहा हूँ कुछ इमरजेंसी है नतीजतन अस्पताल पहुँचने पर डाक्टर तुरंत मिल गए और फ़ौरन मुझे आँखों के वार्ड की ओर ले गए , संयोगवश नेत्र-विशेषज्ञ भी आ गए । प्रारंभिक जांच के बाद पता लगा कि चोट आँख के ऊपर है , आँख पर पत्थर की धमक ही थी । भवों से बहते खून के आँखों में भर जाने के कारण अस्थायी रूप से दिखना बंद हो गया था । मैंने चैन की साँस ली कि आँख बच गयी है , फिर भी मेरी एक आँख पर पट्टी बांध कर उसे ढक दिया गया । भवों पर लगा पत्थर आँख से तनिक ही दुरी पर था , मुझे लगा नियत और नियति के ठीक होने से ही मैं ही बाल बाल बचा । इस घटना की जानकारी घर वालों को उस रात तभी लगी जब मैं पट्टी करा के घर पहुंचा और बाकी लोगों को तो दूसरे दिन ही ये पता लगा ।

                 

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