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टिमटिमाते दियों में उम्मीद की रोशनी बने डॉ जटिया , भाजपा में 75 वर्ष जैसी कोई गाइड लाइन नहीं


कीर्ति राणा ,वरिष्ठ पत्रकार
                      इंदौर। भाजपा के वरिष्ठ नेता और संसदीय बोर्ड व केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य डॉ. सत्यनारायण जटिया ने पार्टी के बुझते दियों में उम्मीद का तेल डाल कर उनकी चमक बढ़ाने का काम कर दिया है। मप्र में विधानसभा चुनाव से एक साल पहले और उसके बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के लिहाज से उनका यह बयान बेहद महत्वपूर्ण है कि पार्टी में 75 साल जैसी कोई गाइडलाइन नहीं है।
                 यही बात किसी अन्य वरिष्ठ नेता ने कही होती तो उसका इतना वजन नहीं होता जितना  डॉ. जटिया का है। वजह यह कि तीन महीने पहले ही उन्हें संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति का सदस्य भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने नियुक्त किया है। 75 पार वाले भाजपा नेताओं के लिए  डॉ. जटिया का बयान इसलिए भी उम्मीद की किरण है कि खुद  डॉ. जटिया को 76वें वर्ष में भाजपा ने दोनों कमेटियों के लिए मप्र से एकमात्र योग्य और दलित चेहरे के रूप में दिवाली की सफाई वाले अटाले में निकली बेशकीमती वस्तु के रूप में संभाला है। जब संसदीय समिति और केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी) में अगस्त के दूसरे पखवाड़े में उन्हें शामिल करने की घोषणा की गई तो पार्टी नेतृत्व का यह फैसला बेहद चौंकाने वाला इसलिए भी था कि मध्यप्रदेश से एकमात्र  डॉ. जटिया पर ही पार्टी ने तब भरोसा जताया, जब प्रदेश में ही सत्ता और संगठन तो ठीक उज्जैन के पार्टी नेताओं ने भी उन्हें आउटडेटेड मान लिया था। उन्हें इन समितियों में शामिल करने का ही नतीजा रहा कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के साथ ही मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी बाहर कर दिया गया था। 
               डॉ. जटिया इतने भोले भंडारी भी नहीं कि वे इंदौर के घाघ मीडिया से चर्चा में यह सहज रूप से कह दें कि प्रत्याशी चयन उम्मीदवारी में 75 वर्ष की आयु सीमा का नियम बीजेपी में कभी था ही नहीं, उसे तो बेवजह चर्चा का विषय बना दिया गया। उनका यह बयान अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में जहां कई मंत्रियों के टिकट कटने का संकेत तो 75 पार के कई नेताओं के लिए लाटरी खुलने के समान भी हो सकता है। 


दूसरे सत्यनारायण के यहां अपनी नियुक्ति की जानकारी मिली  डॉ. जटिया को 
             इस प्रतिनिधि से चर्चा में  डॉ. जटिया ने भाजपा संसदीय बोर्ड, केंद्रीय चुनाव समिति में अपनी नियुक्ति की जानकारी वाला किस्सा भी बताया। बीते अगस्त में पत्नी के पैर में फ्रेक्चर के चलते उनके उपचार के सिलसिले में उनका लगातार इंदौर आना-जाना बना हुआ था। एक दिन दोपहर में वे राष्ट्रकवि-भाजपा नेता सत्यनारायण सत्तन से मुलाकात के लिए उनके मल्हारगंज स्थित निवास पर गए हुए थे। उसी दौरान उन्हें फोन पर दिल्ली से किसी ने समितियों में शामिल करने की जानकारी दी। पहली बधाई देते हुए सत्तन ने कहा था, जब दो सत्यनारायण मिलते हैं तो ऐसा परिणाम सामने आता है। 

याद दिलाना पड़ेगी पुराने संबंधों की 
             अब डॉ. जटिया पार्टी की मुख्य राजनीतिक धारा का अंग बने हैं तो स्थानीय राजनीति में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। कई नेता उनकी नियुक्त को पार्टी के विस्तार और संगठन की मजबूती से जोडक़र देख रहे हैं। उनका मानना है, इससे बढ़ता पट्ठावाद थोड़ा कम होगा। आगामी चुनावों में टिकट-पद आदि को लेकर संबंधित नेताओं के प्रति डॉ. जटिया का नजरिया महत्वपूर्ण रहेगा। कई नेताओं को उनसे नजदीकियां बढ़ाने के लिए फिर से डॉ जटिया को अपने पुराने संबंधों की याद दिलाना पड़ सकती हैं।

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