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मोरबी हादसे के पीछे ‘हरिइच्छा’: भाग्यवादी सोच का निकृष्ट नमूना


अजय बोकिल, वरिष्ठ पत्रकार
सार
                मोरबी हादसे को लेकर गुजरात सरकार और भाजपा विपक्ष के निशाने पर है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने पूछा कि मोरबी के पुल की दुर्घटना 'एक्ट ऑफ गॉड' है या 'एक्ट ऑफ फ्रॉड' है? 

विस्तार
               देश की आर्थिक प्रगति के इंजन गुजरात में बड़े और प्राकृतिक हादसे कोई नई बात नहीं है, लेकिन राज्य के मोरबी में झूला पुल ढहने से 135 से ज्यादा लोगों की असमय दर्दनाक मौत के मामले में जिस तरह की संवेदनहीनता और कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति का रवैया दिख रहा है, वह कई सवाल खड़े करता है। कई घरों के चिराग बुझाने और कइयों की कोख सूनी करने वाली इस भीषण त्रासदी के बाद हादसे के लिए जिम्मेदारी कंपनी के गिरफ्तार कर्मचारियों ने जो बयान कोर्ट के में दिया है, वह तो असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा है।

               ब्रिज का रखरखाव करने वाली कंपनी ओरेवा के मैनेजर ने कहा कि जो हुआ, वह ‘भगवान की मर्जी’ थी। यानी जो भयानक हादसा हुआ और झूला पुल का आनंद लेने पुल पर चढ़े सैकड़ों लोग पुल गिरने की वजह से नीचे बहती मच्छु नदी में जिंदा समा गए, वह सब ईश्वरेच्छा थी। इसमें किसी का कोई दोष नहीं है। भाग्यवादी सोच का यह शायद सबसे निकृष्ट उदाहरण होगा। 

अंग्रेजों के जमाने का है यह पुल
                मोरबी का पुल 143 साल पुराना था और अंग्रेजों के जमाने में उस समय की उपलब्ध श्रेष्ठ तकनीक से बना था और इस निर्माण पर 3.5 लाख रुपये खर्च हुए थे। कहा जाता है कि यह पुल अंग्रेजों को उनके अपने शहर लंदन की याद दिला देता था। आजाद भारत में भी यह सैलानियों को पसंदीदा जगह बन गया था। पुल पुराना हो जाने के कारण मोरबी नगर पालिका ने इसकी मरम्मत और रखरखाव का ठेका ओरेवा कंपनी को दिया था, जिसके पास इस तरह के कामों का कोई अनुभव नहीं था। आरंभिक जांच में यह सामने आ रहा था कि कंपनी ने रखरखाव के नाम पर दो करोड़ रुपये खर्च करना बताया है, लेकिन हकीकत में उसने खानापूर्ति की और इस पुल के जरिए पैसा कमाने की लालच में प्रशासन से फिटनेस सर्टिफिकेट लिए बिना ही इसे सैलानियों के लिए खोल दिया।

                 गुजरात में दिवाली के दूसरे दिन गुजराती नव वर्ष ‘बेस्तु बरस’ का त्योहार मनाया जाता है। प्रदेश में दिवाली के बाद पांच दिन तक बाजार बंद रहते हैं और लोग दिवाली का जश्न मनाने और तफरीह के लिए अक्सर बाहर निकल जाते हैं। शायद इसी वजह से हजारों लोग मोरबी के पास मच्छु नदी पर बने इस पुराने झूला पुल का आनंद लेने वहां पहुंचे थे।

              पुल का रखरखाव करने वाली कंपनी ने भी मौके का फायदा उठाते हुए 17-17 रुपये टिकट बेचकर सैकड़ों लोगों को पुल पर जाने दिया, बिना यह सोचे कि पुल एक साथ इतने लोगों का वजन कैसे झेल पाएगा? उधर लोग भी इस बात से बेखबर थे कि हाल में मरम्मत किए पुल पर कोई ऐसा हादसा भी हो सकता है। वहां कोई भी ऐसी एजेंसी नहीं थी, जो चेताती कि कोई भी पुल हो, उसकी सहनशक्ति की भी एक सीमा होती है। बताया जाता है कि जब पांच सौ से अधिक लोग एक साथ पुल पर जा चढ़े तो उसकी नींव ही चरमरा गई और एक झटके में पुल के दो टुकडे़ हो गए। क्षणार्धात में झूला पुल का आनंद ले रहे सैंकड़ों लोग नदी में समा गए, जिसने भी उस दृश्य का वीडियो देखा, वह भीतर से हिल गया। लेकिन जो हुआ, वह गुजरात के भुज में आए भयावह भूकंप जैसी प्राकृतिक विपदा नहीं थी। यह मानवीय लापरवाही के कारण हुआ हादसा है, जो पुल के मेंटेनेंस के नाम पर की गई खानापूर्ति और इस ठेके के जरिए भारी मुनाफा कमाने की नीयत से की गई थी। इसके पहले दुनिया में तोड़फोड़, युद्ध, प्राकृतिक आपदा, घटिया निर्माण अथवा आतंकवादी घटनाओं के कारण पुलों को भारी नुकसान पहुंचा है और इस कारण लोगों को भी अपनी जानें गंवानी पड़ी है। ऐसा ही एक भयानक हादसा पुर्तगाल में 1809 में हुआ था, जब वहां दूरा नदी पर बना एक पोंटून पुल टूट गया था और इसमें 4 हजार से अधिक लोगों को जानें गंवानी पड़ी थीं।

                 मोरबी पुल भी संभवत: सही मरम्मत न करने के कारण टूटा है। शुरुआती जांच में जो तथ्य सामने आ रहे हैं, उसमें पुल की लोहे की रस्सियां बुरी तरह जंग खा गई थीं, जिन्हें नहीं बदला गया। मोरबी में झूलते पुल के तार जंग लगे हुए थे। इन्हें मरम्मत के दौरान बदला नहीं गया। इनकी मरम्मत की जाती तो यह हादसा नहीं होता। यह बात मोरबी पुल हादसा मामले के जांच अधिकारी और मोरबी के पुलिस उपाधीक्षक पीए झाला ने स्थानीय अदालत में पेश फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी रिपोर्ट में कही। पैसे बचाने के चक्कर में सैकड़ों लोगों की जान को दांव पर लगा दिया गया।
सरकार का रवैया पर प्रश्नचिन्ह
                 इस मामले में गुजरात सरकार का रवैया भी हैरान करने वाला है। सरकार दोषियों को सजा देने के बजाय, उन्हें बचाने में लगी ज्यादा लगती है। ओरेवा कंपनी के छोटे कर्मचारियों के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया है, लेकिन कंपनी  के मालिक जयसुख पटेल के खिलाफ कार्रवाई  तो दूर, एफआईआर में उनका नाम तक नहीं है। जयसुख पटेल के भाजपा नेताओं से अच्छे रिश्ते बताए जाते हैं। तानाशाह हिटलर को अपना आदर्श मानने वाले जयसुख भाई ने इस हादसे पर अफसोस तक नहीं जताया। 
                उधर निचली अदालत में अतिरिक्त सरकारी अभियोजक एचएस पांचाल ने बताया कि ओरेवा कंपनी के मैनेजर दीपक पारेख ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश एमजे खान को बताया है कि कंपनी के प्रबंध निदेशक से लेकर निचले स्तर के कर्मचारियों तक, सभी ने खूब काम किया, लेकिन भगवान की इच्छा से ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई। इस बीच राज्य में इस भयंकर हादसे को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं और आक्रोश सामने आ रहा है।

मोरबी व राजकोट बार एसोसिएशन ने कहा कि एसोसिएशन का कोई भी सदस्य घटना से जुड़े किसी भी आरोपी का मामला नहीं लड़ेगा। साथ ही वकीलों ने विरोध मार्च भी निकाला। हालांकि सरकार इस मामले में दुख जताने की पूरी कोशिश कर रही है। मोरबी हादसे के मृतकों  की याद में अहमदाबाद, सूरत में प्रार्थना सभाएं हुई। 2 नवंबर को राज्य में राजकीय शोक रखा गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं मोरबी पहुंचे और घायलों से मिले। एक कार्यक्रम में मोरबी हादसे में मृत व्यक्तियों की याद में उनकी आंखों से आंसू भी आ गए।

सरकार-विपक्ष आमने सामने
              मोरबी हादसे को लेकर गुजरात सरकार और भाजपा विपक्ष के निशाने पर है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने पूछा कि मोरबी के पुल की दुर्घटना 'एक्ट ऑफ गॉड' है या 'एक्ट ऑफ फ्रॉड' है? साथ ही उन्होंने कहा कि 6 महीने से पुल की मरम्मत की जा रही थी, इसमें कितना खर्च आया? 5 दिनों में पुल गिर गया। 27 साल से बीजेपी की सरकार है, क्या यही है आपका विकास मॉडल ? कांग्रेस ने इस घटना की न्यायिक जांच की मांग की है। राज्य में इस बार पूरी ताकत से विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही आम आदमी पार्टी ने भी इस हादसे के लिए भाजपा को जमकर घेरा है।

             भाजपा की परेशानी यह है कि यह हादसा राज्य में ऐन विधानसभा के मुहाने पर हुआ है। इस हादसे के बचाव में उसके पास कोई ठोस तर्क नहीं है। वह हादसे के लिए दोषी लोगों पर कार्रवाई करती दिखना भी चाहती है और इसके लिए नैतिक रूप से जिम्मेदार कंपनी मालिक जयसुख भाई पटेल को कार्रवाई की आंच से बचाना भी चाहती है, क्योंकि इससे राज्य में पटेलों के नाराज होने का खतरा है। चुनाव की पूर्व बेला में वो कोई ऐसा जोखिम नहीं उठाना चाहती।  

             आश्चर्य की बात तो यह इस चुनावी मजबूरी को राजकोट के भाजपा सांसद मोहन भाई कुंडारिया के दुख और घोषणा की भी फिकर नहीं है, जिसमें उन्होंने कहा था कि किसी दोषी को नहीं बख्शा जाएगा। सांसद कुंडारिया ने इस हादसे में अपने परिवार के 12 सदस्यों को खोया है। यही नहीं मोरबी नगर पालिका के उपाध्यक्ष जयराज सिंह जडेजा ने भी इस घटना के लिए ओरेवा कंपनी के मालिक को जिम्मेदार ठहराया था।

             जडेजा ने कहा था कि जयसुख भाई ने नगर पालिका से एनओसी लिए बिना ही 24 अक्टूबर को फीता काटकर पुल को आम लोगों के लिए खोल दिया था। उसने यह भी डीएम को लिखकर दिया था कि यदि कोई अनहोनी हुई तो जिम्मेदारी हमारी होगी। प्रधानमंत्री ने भी मोरबी दौरे के दौरान कहा था कि इस मामले में किसी को बख्शा नहीं जाएगा, लेकिन हकीकत में वैसा कुछ होता दिख नहीं रहा। छोटे कर्मचारी मालिकों के निर्देश पर काम करते हैं, लेकिन अगर यह पूरा मामला ‘भगवान की इच्छा’ ही है तो इसका संदेश यह है कि चुनावी मजबूरियों के आगे सब कुछ बेमानी है।

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