रेल यात्रियों को सबसे ज़्यादा मिला डिजिटल युग का फ़ायदा
लेखक डॉ आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस अफ़सर हैं और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं।
इन दिनों त्योहारों , शादी-ब्याह के अवसरों के कारण ट्रेन में जगह मिलना मुश्किल हो रहा है । रेलवे ने कुछ स्पेशल ट्रेन भी उन मार्गों के लिए शुरू की हैं जहाँ यात्रियों की संख्या ज़्यादा है । डिजिटल युग का फ़ायदा रेल यात्रियों को सबसे ज़्यादा मिला , जहाँ रनिंग स्टेट्स पर भी ख़ाली बर्थ का टिकट आप यात्रा तिथि को ही ऑनलाइन ख़रीद सकते हो , वरना ट्रेन की बर्थ के लिए टी.टी. पर ही निर्भर रहना पड़ता था ।
ये बात बड़ी पुरानी है , तब मैं राजनांदगांव के डोंगरगढ़ अनुविभाग में एस.डी.एम. हुआ करता था , उन्ही दिनों मेरी शादी तय हुई । उन दिनों छत्तीसगढ़ तो नहीं बना था पर परिवार कल्याण कार्यक्रम का अधिकांश लक्ष्य रायपुर और बिलासपुर सम्भागों से ही पूरा हुआ करता था , सो फरवरी माह जिसमें मेरी शादी होने वाली थी , इस कार्यक्रम की लक्ष्य् पूर्ति के लिए बड़ा मौज़ूं था , हम सब के लिए बड़े व्यस्तता वाला था । डॉक्टरों के साथ राजस्व विभाग की टीम लक्ष्य पूर्ति के लिए जुटी हुई थी । देखते देखते शादी की तारीख़ नज़दीक आ गई और काम की अधिकता को देख मंजूरशुदा छुट्टी पर जाने की अनुमति मांगने कि हिम्मत ही नहीं हो रही थी । होते होते वो दिन भी आ गया जब एक दिन बाद ही घर में मंडप का विधान तय हुआ था । हर्षमंदर जो तब राजनांदगाँव के कलेक्टर थे , उसी दिन परिवार कल्याण कार्यक्रम की प्रगति जानने दौरे पर पधारे । हमारी प्रगति बढ़िया थी तो खुश भी हुए , शाबासी भी दी , तभी मेरे बी.एम.ओ.डा. श्रीवास्तव ने मौका देख के कहा कि सर शर्मा साहब की शादी है दो दिन बाद और कल मंडप है ये आपसे संकोच वश छुट्टी नहीं मांग पा रहे हैं । कलेक्टर थोड़ा हैरान हुए और बोले अरे तुरंत जाओ ... आज ही बल्कि अभी ही भागो । इस तरह मुझे छुट्टी तो मिल गयी पर मेरा ट्रैन में रिज़र्वेशन नहीं था । सारनाथ एक्सप्रेस दुर्ग से रात को चलती थी जो सुबह कटनी मेरे पैतृक स्थल पहुंचा देती थी , सो उसी से जाने का निश्चय कर मैं तैयारी करने लगा । कुछ साजो सामान जो स्नेहीजनों ने उपहार आदि के रूप में दे दिया था को मिला जुला कर मेरा लगेज कुछ ज्यादा ही भारी भरकम हो गया था , तो मेरे तहसीलदार ने सलाह दी कि बंगले में रात्रिकालीन ड्यूटी देने वाले तालुक राम को आप साथ लेते जाओ , कुछ समान रखने उठाने में मदद कर देगा और अकेला लड़का है , घूमघाम भी आएगा कभी घर से निकला ही नहीं है | मुझे बात जाँच गयी , लिहाजा ये तय हुआ कि तालुक राम भी साथ जायेंगे । दुर्ग तक तो हम आ गये पर उसके बाद का सफ़र कठिन था , और बिना रिज़र्वेशन के दो लोगों के लिए जगह ढूढनी थी । दुर्ग से ही गाड़ी बनती थी तो पहुंच के एक खाली से दिखने वाले डिब्बे में हम चढ़ गए । एक टी. सी. महोदय से पूछा , परिचय दिया , मजबूरी बखान की तो उसने एक बर्थ की तरफ इशारा करते हुए कहा कि अभी तो ये ही एक बर्थ है जो शहडोल कोटे की है यानी इसमें शहडोल तक कोई नहीं आएगा, इसी पे जम जाओ और शहडोल के बाद तो दो घंटे का रास्ता ही रहता है तो जैसे तैसे निकल ही जायेगा । सलाह अच्छी थी , बीच वाली बर्थ थी वो , तो जैसे तैसे कुछ नीचे और कुछ सामान बर्थ पर ही रख लेटने लायक जगह बना मैंने तालुक राम से कहा कि इस बर्थ पे लेट जा और उसके सीधेपन को ध्यान रख ये भी कहा कि देख मैं आगे देखने जा रहा हूँ , पर तेरे को कोई हूल दे कि यहाँ से उतर जा तो डरना मत कहना मेरा साहब आ रहा है उसी से बात करना समझ गया । तालुक राम ने सर हिलाया और बोला ठीक है । छत्तीसगढ़ी आदमी सीधा , पर बात का पक्का होता है । मैं थोड़ा आगे गया और तीन या चार डब्बे बाद संयोगवश एक बर्थ मुझे खाली मिल गयी जो किसी यात्री के बच्चे के नाम पर थी पर बच्चा छोटा था तो उनके पास ही सो रहा था , मै थका हुआ था और बड़े दिनों बाद छुट्टी मिली थी , सो बर्थ देख कर ऐसा खुश हुआ कि सबकुछ भूल कर उस पर सो गया । सुबह जब कटनी आने के थोड़ी देर पहले नींद खुली तो जो सबसे पहले मुझे बात ध्यान में आई वो यही थी कि सामान कहाँ है , फिर याद आया कि वो तो तालुक राम बर्थ पे रखे सो रहा है , मैं भाग के उस डब्बे में पहुँचा तो क्या देखता हूँ कि बर्थ के आस पास भीड़ लगी है और लोग जोर जोर से आवाज़ आ रही है । मैं और पास पंहुचा तो देखा एक सज्जन तालुक राम पर बुरी तरह चिल्ला रहे हैं , और वो निर्विकार भाव से बर्थ के एक कोने में अधलेटी मुद्रा में अनसुनी करे लेता हुआ है । मैंने पूछा क्या हुआ भाई साहब ? वो सज्जन भन्नाए स्वर में बोले तो ये आपके साथ है ? मैंने कुछ आशंकित होते हुआ पूछा जी हाँ क्या बात है क्या गलती कर दी इसने ? गलती अरे गलती क्या होती है भैया मैं शहडोल स्टेशन से खड़ा हूँ , रात चार बजे से दो घंटा हो गया है , ये मेरी बर्थ है , पर ये मानता ही नहीं कहता है बिना साहब के आये न उतरूंगा । मैंने तुरंत दोनों हाथ जोड़ कर उनसे माफ़ी मांगी पूरी स्थिति बतायीं और कहा कि मुझसे ही गलती हुई है श्रीमान । मुझे पता नहीं था कि मै इतनी देर से वापस आऊंगा , इसके सीधेपन के लिहाज से इसे समझाया था कि मेरे बिना आये न उठना , पर ऐसा अक्षरशः पालन ये करेगा मैं जानता न था । खैर वो सज्जन वाकई सज्जन ही थे , समझ गए और फिर खुद भी खूब हँसे । थोड़ी देर बाद स्टेशन आ गया और हम दोनों सामान उठा कर उनसे पुनः माफ़ी मांग अपने घर को चल दिए ।
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