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तो क्या बघेलखंड में बहने लगी उलटी बयार....!


राज-काज
दिनेश निगम ‘त्यागी’, वरिष्ठ पत्रकार
               विंध्य अर्थात बघेलखंड की राजनीतिक आबोहवा इस बार कुछ बदली नजर आ रही है। विधानसभा के पिछले चुनाव में इस अंचल में कांग्रेस की लगभग वैसी ही दुर्गति हुई थी, जैसी भाजपा की चंबल-ग्वालियर में। पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह जैसे दिग्गज अपने क्षेत्र चुरहट में चुनाव हार गए थे। बहरहाल, दोनों अंचल इस बार विपरीत परिणाम दे सकते हैं। नगरीय निकाय के चुनाव में रीवा में कांग्रेस का महापौर जीतने में सफल रहा है, सीधी जिले में भी पार्टी को अच्छी सफलता मिली। हाल की एक घटना भी चौकाने वाली है। सीधी की भाजपा सांसद रीति पाठक और विधायक अमर सिंह गोरबी स्थित हनुमान मंदिर में ‘आपकी सरकार आपके द्वार’ कार्यक्रम में हिस्सा लेने गए। उन्होंने जैसे ही सरकार के काम गिनाना शुरू किए, वहां मौजूद लोगों ने सवालों की झड़ी लगा दी और विरोध शुरू कर दिया। इनमें बड़ी तादाद में महिलाएं थीं। हालात ये बने कि दोनों को पुलिस की सुरक्षा के घेरे में वहां से भागना पड़ गया। ऐसे नजारे तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के दूसरे कार्यकाल के दौरान देखने को मिला करते थे। अलबत्ता, यह आंकलन करने की  जरूरत है कि यह विरोध भाजपा सरकार का है या स्थानीय जनप्रतिनिधियों का। लेकिन विरोध किसी का भी क्यों न हो, भाजपा के लिए यह चिंता की बात है।
क्या छोड़ नहीं देना चाहिए तोमर को मंत्री पद....!
                    केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर के काम की शैली लोगों को आकर्षित करने वाली है। जब वे विरोधी दल के कांग्रेसी विधायक हुआ करते थे तो विधानसभा के अंदर अकेले धरने पर बैठ जाते थे। इसके बाद मंत्री रहते हुए शौचालयों, गंदे नालों की सफाई करते नजर आ चुके हैं। बिजली गड़बड़ हुई तो खुद खंबे में चढ़कर बिजली ठीक करते नजर आए। क्षेत्र का भ्रमण करने निकले तो दलित के दरवाजे खड़े होकर भोजन मांगा और उसकी देहरी में बैठकर ही भोजन करने लगे। पहले एक बार वे जूता-चप्पल त्याग चुके हैं। फिर घोषणा कर दी कि जब तक वे अपने क्षेत्र की खराब गड्ढों वाली सड़कें ठीक नहीं करा देते, तब तक जूता चप्पल नहीं पहनेंगे। जूते भी उन्होंने निरीक्षण के दौरान खराब सड़कें देखकर उतारे। खराब सड़कों के कारण जूता-चप्पल न पहनने की घोषणा कर उन्होंने अपनी सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। क्या इसका मतलब यह है कि सिंधिया के करीबियों की सरकार नहीं सुनती है? या यह माना जाए कि प्रद्युम्न एक मंत्री का दायित्व निभा पाने में नाकाम हैं और सरकारी अमले पर कार्रवाई करने की बजाय खुद लोगों की शिकायतों का निकरारण करने लगते हैं। यदि ऐसा है तो क्या उन्हें नाकामी की जवाबदारी लेकर मंत्री पद नहीं छोड़ देना चाहिए ? 
कितनी सार्थक होगी प्रदेश प्रभारी की यह पहल....
                 लंबे समय बाद प्रदेश कांग्रेस को जेपी अग्रवाल के रूप में ऐसे नए प्रदेश प्रभारी मिले हैं जो लगभग उसी तरह सक्रिय दिखते हैं जैसे मोहन प्रकाश और दीपक बाबरिया हुआ करते थे। अलबत्ता, काम की शैली इन्हें दूसरों से अलग करती है। सबसे खास यह कि इन्हें बड़े नेता से लेकर छोटे से छोटे कार्यकर्ता के घर जाने में कोई हिचक नहीं है। इसे उन्होंने अपने कार्यक्रम में शुमार कर लिया है। प्रारंभ में ही वे पार्टी के लगभग हर प्रमुख नेता के घर जाकर मिल चुके हैं। वे छोटे कार्यकर्ताओं एवं असंतुष्ट नेताओं के घर भी जा रहे हैं। अग्रवाल इनके घर ही नहीं जाते, शाल ओढ़ा कर इनका सम्मान भी करते हैं। कांग्रेस को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। क्योंकि कमलनाथ की  कार्यशैली के कारण नेताओं, कार्यकतार्ओं का एक बड़ा वर्ग असंतुष्ट होकर घर बैठा है। घर जाना तो दूर, कमलनाथ भोपाल आने वालों से मिलने में भी रुचि नहीं दिखाते। ऐसे में जेपी अग्रवाल यदि असंतुष्ट नेताओं, कार्यकतार्ओं को मना कर सक्रिय कर देते हैं तो यह बड़ी उपलब्धि होगी। आखिर, इन कार्यकतार्ओं पर ही चुनाव में जीत-हार का दारोमदार है। इससे पहले प्रदेश प्रभारी मुकुल वासनिक थे लेकिन उनके पास समय ही नहीं था। कोई प्रदेश प्रभारी भी होता है, कार्यकर्ता यह तक भूलने लगे थे। अग्रवाल की यह पहले कितनी सार्थक होती है, इंतजार रहेगा।
पहले से ज्यादा सक्रिय हो रहे ज्योतिरादित्य....!
                 केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पिछले कुछ समय से चर्चा में हैं। वजह है प्रदेश में बढ़ती उनकी सक्रियता और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा उनको दी जा रही तवज्जो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरों के दौरान सिंधिया खास चर्चा में थे क्योंकि मोदी उन्हें अपने साथ विमान में बैठाकर दिल्ली ले गए थे और शाह ने ग्वालियर स्थित उनके जयविलास पैलेस में जाकर लगभग डेढ़ घंटे सिंधिया परिवार के साथ बिताए थे। इसके बाद से हर अवसर पर सिंधिया की मौजूदगी देखी जाने लगी है। सिंधिया कांग्रेस में रहते हुए कभी मप्र कांग्रेस कार्यालय आकर बैठक में हिस्सा नहीं लेते थे। भाजपा में आने के बाद उनमें बदलाव है। दो दिन पहले ही प्रदेश भाजपा मुख्यालय में रात साढ़े 11 बजे प्रमुख बैठक हुई। उसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा सहित चुनिंदा प्रमुख नेताओं के साथ सिंधिया भी शामिल थे। यह भाजपा की प्रमुख रणनीतिक बैठक थी। इसके बाद रानी कमलापति रेल्वे स्टेशन में रोजगार मेले का आयोजन हुआ, उसमें भी सिंधिया मौजूद थे। पहले ऐसी बैठकों और कार्यक्रमों में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ज्यादा दिखाई पड़ते थे। साफ है, सिंधिया की भाजपा की गतिविधियों में सक्रियता बढ़ रही है। राजनीतिक हलकों में इसके अलग-अलग मायने निकाले जा रहे हैं।
अस्त की ओर एक और आदिवासी संगठन जयस....
                    आपसी और व्यक्तिगत हितों की टकराहट से संघर्ष के बल पर खड़ा हुआ कोई ताकतवर संगठन कैसे अस्त की ओर जाता है, इसका उदाहरण है जयस। कुछ साल पहले यही परिणति गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की हुई थी। गोंगपा की तर्ज पर जयस ने कम समय में संघर्ष के बूते आदिवासियों का दिल जीता, अपनी पैठ बनाई। संगठन के नेता डॉ हीरालाल आलावा विधायक बन गए। जयस ने चुनाव में कई सीटों में अपनी ताकत दिखाई। डॉ आलावा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे, इसलिए संगठन के असर का फायदा कांग्रेस को मिला। अब संगठन के अंदर ही नेताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई छिड़ गई। जयस के दो-दो सम्मेलन मनावर और कुक्षी में हुए। मनावर में डॉ आनंद राय शरीक हुए जबकि कुक्षी में हीरालाल आलावा। डॉ राय ने आलावा के खिलाफ हमला बोला, हालांकि आलावा ने ऐसा करने से परहेज किया। डॉ राय और डॉ आलावा के तेवरों से साफ है कि इनके रास्ते अलग-अलग होंगे। इसका फायदा कांग्रेस को मिले या भाजपा को, लेकिन नुकसान जयस का तय है। ऐसा हुआ तो आदिवासियों के हक की लड़ाई के लिए तैयार हुआ एक और संगठन गोगपा की तरह समय से पूर्व मृतपाय हो सकता है। इसलिए जयस के नेता आपसी समझ से विवाद सुलझा लें, यही संगठन, आदिवासियों एवं उनकी सेहत के लिए बेहतर होगा।
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