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अपना एमपी गज्जब है..21 सरकार पर भारी "दारोगा"


अरुण दीक्षित, वरिष्ठ पत्रकार
                    
                     पिछले कुछ दिन से मध्यप्रदेश के एक दारोगा जी खासे चर्चा में हैं।ये दारोगा जी इतने "बजनदार" हैं कि प्रदेश के मुखिया पर ही भारी पड़ गए।एक एसपी को 5 मिनट में हटाने वाले मुख्यमंत्री को इन दारोगा जी को हटाने में 24 घंटे से भी ज्यादा लग गए!वह भी तब जब उन्होंने खुलेआम अपनी नाराजगी जाहिर की! दारोगा के कारनामों का जिक्र किया!तल्ख शब्दों में कहा कि मैं यह बर्दाश्त नहीं करूंगा!
                     प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में तैनात रहे ये दारोगा खुल कर "रस्सी - डंडे" का खेल खेल रहे थे!उनका "भोपाल कनेक्शन" इतना मजबूत था कि वह बर्दी वाले डॉन बन गए थे!वे पुलिस कमिश्नर तक की परवाह नही करते थे। फिलहाल वे सस्पेंड कर दिए गए हैं!सबसे मजे की बात यह है कि उनके सस्पेंशन लेटर में उनकी उन सब खूबियों क्या जिक्र किया गया है जिनके चलते उनके चर्चे आम थे।
                   चलिए दारोगा जी की महिमा बताने से पहले आपको एक किस्सा सुनाता हूं।यह किस्सा मैने बचपन में अपने गांव उखरा में सुना था!हुआ यूं कि एक बुजुर्ग एक घरू (पारिवारिक) लड़ाई में फंस गए।उनकी शिकायत थाने में पहुंची।दारोगा बाबू तफ्तीश करने आए।उन्होंने समझ लिया कि मामला फर्जी है।लेकिन शिकायत आ गई थी सो उन्होंने बुजुर्ग से कहा कि 10 हजार का नजराना दे दो!मामला अभी खत्म कर दूंगा। बुजुर्ग गांधी जी के जमाने के थे।उन्होंने दारोगा जी को नजराना देने से साफ मना कर दिया!नतीजा यह हुआ कि दारोगा जी नाखुश हो गए।उन्होंने बुजुर्ग पर मुकदमा कायम करके उन्हें जेल भेज दिया।बाद में मामला अदालत में पहुंचा!जज साहब को पहली नजर में ही दारोगा जी का खेल समझ में आ गया।उन्होंने एक दो तारीख लगाकर मुकदमा खारिज कर दिया!बुजुर्ग वरी हो गए।
                    फैसले के बाद जज साहब ने बुजुर्ग से पूछा अब तो आप खुश हो!बुजुर्ग ने कहा - बहुत खुश हूं हुजूर!मेरी दुआ है कि भगवान आपको दारोगा बना दें!ताकि लोग यहां तक आने से बच सकें!दुआ सुनकर जज साहब और उनकी अदालत में मौजूद सभी लोग चौंके।खुद  जज साहब भी!उन्होंने उत्सुकता में बुजुर्ग से पूछ लिया - दादा दारोगा ही क्यों! वे बोले - दारोगा ने कहा था दस हजार दे दो!मामला अभी खत्म कर दूंगा।आपके पास तो महीनों लग गए। फिर दारोगा तो आपसे भी ज्यादा ताकतवर हुआ न ?
                    किस्सा सुनकर जज साहब ने क्या किया यह गांव के किस्से में नही बताया गया ! लेकिन इंदौर के दारोगा बाबू ने इस किस्से को अमली जामा पहना दिया।वे न केवल अपने बड़े अफसरों पर भारी थे बल्कि अदालतों की भी परवाह नहीं करते थे। इस किस्से के साथ अकबर बीरबल का रस्सी डंडे का किस्सा भी सुन लीजिए!यह किस्सा दारोगा जी के बुद्धि कौशल पर रोशनी डालेगा।हुआ यूं कि एक बार दरबारियों के भड़काने पर बादशाह अकबर बीरबल से नाखुश हो गए।उन्होंने बीरबल को एक गज का डंडा और दो गज की रस्सी देकर कहा - जाओ आज शाम तक एक बोरी मुंहरे कमा कर लाओ!बीरबल ने रस्सी डंडा लिया और दरबार से चले गए।
                     बाहर निकल कर उन्होंने दो सेवक साथ लिए और पहुंच गए मीना बाजार में।बाजार में उन्होंने सेवकों को आदेश दिया कि सबकी दुकानों की नपाई शुरू करो।दुकानें नपते देख सब दुकानदार चौंके! दौड़ कर बीरबल के सामने हाजिर हुए!नपती का कारण पूछा !
                    बीरबल ने मुस्कराते हुए कहा - बादशाह सलामत का हुक्म है।बाजार की सड़क चौड़ी करनी है।आपकी दुकानों को तोड़कर  ही यह काम हो सकता है। इसलिए नपती कराई जा रही है। बीरबल की बात सुनकर दुकानदार घबड़ा गए।फिर उन्होंने ले देकर मामला निपटाने को कहा।
 थोड़ी देर बाद ही बीरबल मुंहरों से भरी बोरियां लेकर दरबार में अकबर के सामने हाजिर हो गए! माल देख कर बादशाह का खुश होना स्वाभाविक था!सो हुए!बीरबल फिर अपनी जगह पर स्थापित हो गए !
                अब ये किस्से कितने सच हैं यह तो जज साहब और बादशाह अकबर ही जाने लेकिन इंदौर से जिस तरह की खबरें मिली हैं उनसे तो यही साबित हो रहा है कि ये दारोगा जी ऐसा ही खेल खेल रहे थे।
                अब दारोगा जी के किस्से सुनिए!उनकी खूबियां बाद में गिनाऊंगा।यह तो आप जानते हैं कि अपने इंदौर को मिनी मुंबई भी कहा जाता है।इस शहर में भी "जमीन और जमीन" का भाव सबसे ऊपर रहता है।कहते यह भी हैं कि भोपाल का खर्च तो इंदौर ही चलाता है।
 हर फन में माहिर दारोगा जी को इंदौर की इस खूबी बखूबी इलहाम था।इसलिए भोपाल से पट्टा लेकर इंदौर पहुंच गए।चूंकि बड़े पुलिस अफसरों को उनकी खूबियां अच्छे से पता थीं।इसलिए उन्होंने उन्हें किसी थाने की जिम्मेदारी नहीं दी।लेकिन उन पर भोपाल से "कृपा" बरस रही थी!इसलिए वे क्राइम ब्रांच में तैनात हो गए।
               क्राइम ब्रांच में पहुंचते ही उन्होंने "जमीन और कमीन" वाला खेल शुरू कर दिया।अपराधों की जांच तो भूल गए और खुद "अपराध" करने लगे।सेवकों की एक टीम बनाई और इंदौर की महंगी जमीनों का हाल जाना।इसके बाद ही शुरू हुआ रस्सी डंडे का दौर। दारोगा जी ने सेवकों के जरिए विवादित जमीनों का खेल शुरू किया तो मुहरों की बोरियां भरने लगीं।चूंकि "कृपा" सीधे भोपाल से आ रही थी इसलिए विभाग के बड़े अफसरों को ठेंगे पर रखा।खेल खूब चला। दारोगा जी का हौसला भी बढ़ा।
                उन्होंने इंदौर शहर के पुराने रसूखदार परिवार की जमीनों पर नजर गड़ा दी। भाजपा के करीबी माने जाने वाले उस परिवार के मुखिया ने दारोगा का दवाब मानने से इंकार कर दिया!उन्होंने बड़े अफसरों को पूरा मामला बताया!लेकिन "कृपापात्र" दारोगा जी के हौसले इतने बुलंद थे कि उन्होंने अपने अफसरों की भी नही सुनी।उद्योगपति और उनके पुत्र को अपने दफ्तर में बैठा कर जमीन छोड़ने के लिए धमकाया!  इस पर भी जब नही माने तो पिता - पुत्र पर झूठा मुकदमा कायम कर दिया।बेचारे भागे भागे अदालत गए।अग्रिम जमानत कराई।
                जमानत की खबर मिल जाने के बाद दारोगा जी इतने नाखुश हुए कि उन्होंने अपनी जैसी कृपा पा रहे एक और दारोगा जी की मदद से इंदौर के विजय नगर थाने में एक और झूठा मुकदमा पिता पुत्र पर कायम करा दिया। बताते यह भी हैं कि इंदौर के सांसद के एक करीबी की जमीन पर भी दारोगा जी और उनके सेवकों ने अड़ी डाली।सांसद महोदय को भी रस्सी डंडे के खेल में नाप दिया।
                 ऐसा नहीं है कि इंदौर के पुलिस कमिश्नर को दारोगा जी के किस्से मालूम नही थे।लेकिन उन पर भोपाल की कृपा इतनी मजबूत थी कि कमिश्नर साहब चाह कर भी कुछ कर नही पाए।बताते तो यह भी हैं कि शिकायतों के चलते कमिश्नर ने दारोगा जी को पद से हटाया भी।लेकिन भोपाल से आए मौखिक आदेश के बाद वे फिर क्राइम ब्रांच में जा बैठे। ऐसा नहीं था कि दारोगा जी के कारनामों की खबर  भोपाल को नही थी।चूंकि कृपा की पाइप लाइन में मुहरें बह रही थीं इसलिए क्या कमिश्नर और क्या सांसद!सब किनारे पर थे।
                  इंदौरी भियाओ के मुताबिक जब दारोगा जी ने भाजपा नेताओं को भी अपनी रस्सी से नापा और डंडा चलाया तब वे एक हुए!पिछले दिनों जब मुख्यमंत्री इंदौर पहुंचे तो सबने मिलकर उन्हें पूरा "दारोगा - पुराण" सुनाया!कहते हैं अपने नेताओं की व्यथा सुनकर मुख्यमंत्री ने दारोगा जी के बारे में आला पुलिस अफसरों से दरियाफ्त किया।उन्होंने भी "कृपापात्र" का पूरा किस्सा और अपनी लाचारी की कथा मुख्यमंत्री को सुनाई।
 बताते हैं कि इसी वजह से मुख्यमंत्री ने सुबह सुबह अपनी वीडियो कांफ्रेंसिंग में इन दारोगा जी की दादागीरी का जिक्र किया और कहा कि दारोगा की दादागीरी वे नही चलने देंगे।
                 बताते यह भी हैं कि अपने करीब 17 साल के कार्यकाल में पहली बार मुख्यमंत्री का मुकाबला ऐसे ताकतवर दारोगा से हुआ। उनके स्पष्ट आदेश के बाद भी इसके निलंबन का आदेश निकलने में 24 घंटे से ज्यादा लग गए।जबकि मुख्यमंत्री झाबुआ के एसपी को जरा सी देर में हटाकर सस्पेंड भी कर दिया था।तीन जिला आपूर्ति अधिकारियों को तो उन्होंने भरी सभा में मंच से ही सस्पेंड किया है।
                अब दारोगा जी की कुंडली भी जान लीजिए!दतिया वाली माई के भक्त बताए जा रहे दारोगा जी के खिलाफ दो अपराधिक मामले दर्ज हुए हैं।वे जेल भी गए हैं।बर्खास्त भी हुए हैं।सात विभागीय जांच भी चली हैं। बर्खास्तगी के बाद उनकी दया याचिका पर विचार करके सरकार ने ही उन्हें फिर से नौकरी दे दी थी। मजे की बात यह है कि इतने उज्ज्वल चरित्र वाले दारोगा जी को न केवल इंदौर जैसे महत्वपूर्ण शहर में तैनात किया गया बल्कि अफसरों की इच्छा के खिलाफ क्राइम ब्रांच में बैठाया गया। कहते हैं कि यह सब भोपाल से जुड़ी "कृपा की पाइपलाइन" में बहने वाली मुहरों का कमाल था।इनकी वजह से ही वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी भी उनके आगे बौने हो गए थे।
                बताया यह भी गया है कि इंदौर में ऐसे कई कृपापात्र दारोगा और भी हैं।यह सब "माई" के सेवक बताए जाते हैं।इन दारोगाओं ने बाकायदा अपनी टीम बना रखी है।ये सब एक दूसरे की मदद करते हैं।उद्योगपति के खिलाफ विजय नगर थाने में फर्जी मुकदमा इसी मदद के तहत किया गया था।
 खबर है कि मुख्यमंत्री के गुस्से के बाद अब कमिश्नर साहब दारोगा जी कुंडली बना रहे हैं।उनके द्वारा हथियाई गई जमीनों के साथ साथ उनकी संपत्तियों का भी ब्यौरा जुटाया जा रहा है। वैसे इन दिनों पूरे मध्यप्रदेश की पुलिस सक्रिय हो गई है।ताबड़तोड़ काम कर रही है।दो दिन में ही सैकड़ों मुकदमे दर्ज हुए हैं।बुलडोजर भी चल रहा है।मीडिया लगातार ब्रेकिंग न्यूज चला रहा है।
              लेकिन सवाल यह है कि इतने "योग्य" दारोगा को इंदौर में किसने तैनात कराया था?उससे पहले जेल जाने और बर्खास्तगी के बाद उस पर किसने "दया" की थी? कौन है जो उन पर कृपा बरसा रहा है? इन सवालों की जांच भी अगर मुख्यमंत्री करा लें तो तस्वीर साफ हो जायेगी।
 वैसे पुलिस मुख्यालय के सूत्र कहते हैं कि यह तो एक मामला है।पूरे प्रदेश में ऐसे कृपापात्र दारोगा भरे पड़े हैं।अकेले इंदौर में ही बड़ी संख्या में हैं।कहा यह भी जाता है कि इंदौर में तैनात दारोगा आईपीएस से भी ज्यादा ताकतवर और पहुंच वाला होता है। क्योंकि "जमीन और कमीन" की सबसे ज्यादा कीमत यहीं लगती है।
                 देखना यह है कि मुख्यमंत्री की यह मुहिम आगे क्या रंग लाती है !
                 पर कुछ भी हो!अपना एमपी तो गज्जब ही है। है ना ?
               

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