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अपना एमपी गज्जब है..19 संन्यासिन को बस "सीकरी" सौँ काम....


अरुण दीक्षित, वरिष्ठ पत्रकार
संतन को कहां "सीकरी" सौँ काम..
आवत जात पनहियां टूटी बिसरि गयो हरिनाम
जिनको मुख देखे दुख उपजत तिनकों करिवे परे सलाम
कुम्भनदास लाल गिरिधर बिनु और सबै बेकाम...
                   सन 1468 में मथुरा के पास जमुनावतो गांव में जन्में प्रसिद्ध कवि कुम्भनदास ने यह छंद तो अपने अनुभव से लिखा था। अष्टछाप के प्रसिद्ध कवि कुम्भनदास का पंद्रहवीं शताब्दी में बहुत नाम था।एक बार अकबर ने उन्हें अपने दरबार में बुला कर सम्मानित किया।अकबर के बुलाने पर कृष्ण भक्त कुंभन फतेहपुर सीकरी तो गए।अपना सम्मान भी कराया।लेकिन उन्हें यह सम्मान अच्छा नही लगा।कहते हैं कि फतेहपुर सीकरी से लौट कर उन्होंने यह छंद लिखा था।उसके बाद वे कभी अकबर के दरबार में नही गए !
                  कुंभनदास को लोग भले ही न जानते हों पर उनका यह छंद आज भी लोगों की जुबान पर आता रहता है।कल से मुझे भी यह बहुत याद आ रहा था।इसलिए मैंने इसके साथ साथ इसके रचयिता के बारे में भी खोजबीन की। अब आप सोचेंगे कि मुझे इस छंद की याद क्यों आई!दरअसल कल यानी शुक्रवार,7 अक्तूबर 2022 को मैंने मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री,पूर्व केंद्रीय मंत्री सुश्री उमा भारती के कई ट्वीट देखे!उमा इन दिनों प्रदेश के उन गरीबों की चिंता में दुबली हुई जा रही हैं जो शराब पी पी कर अपना घर तबाह कर रहे हैं।वे पिछले करीब एक साल से मध्यप्रदेश में गुजरात और बिहार की तरह पूर्ण शराब बंदी लागू किए जाने की मांग कर रही हैं।लेकिन प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उनकी यह मांग मानने को तैयार ही नहीं हैं। शराबबंदी की मांग को लेकर उमा भारती पिछले डेढ़ साल में बहुत कह चुकी हैं और कर चुकी हैं।लेकिन नतीजा शून्य ही रहा है।
               उन्होंने पिछले साल कहा था कि वे शराब बंदी के लिए लट्ठ लेकर सड़क पर उतरेंगी।बाद में उन्होंने तय तारीख पर कुछ नहीं किया। हां कुछ महीने बाद राजधानी भोपाल में शराब की एक दुकान पर एक पत्थर जरूर फेंक आईं।एक दुकान पर उन्होंने गोबर भी फेंका। एक साल में वे शराब के नुकसान गिनाते हुए लगातार रुक रुक कर बयान जारी करती रहीं हैं।
 लेकिन राज्य के मुखिया ने उनकी किसी बात पर गौर नही किया।उमा शराब बंदी चाहती थीं लेकिन सरकार ने शराब की दुकानें दुगुनी कर दीं।जिन दुकानों पर सिर्फ देसी शराब बिकती थी उन पर अंग्रेजी भी बिकने लगी। ऐसे ही जहां सिर्फ अंग्रेजी शराब मिलती थी उन पर देसी भी मिलने लगी।
              हां यह जरूर हुआ कि मुख्यमंत्री ने कहा कि वे प्रदेश में नशामुक्ति अभियान चलाएंगे। उमा भारती भी इस अभियान से सहमत हो गईं।वे शायद शराब बंदी और नशामुक्ति के अंतर को भूल गईं।पिछले सप्ताह भोपाल में उन्होंने मुख्यमंत्री के नशामुक्ति अभियान में शिरकत भी की।
             लेकिन अब वे असलियत समझ रही हैं।इसलिए एक नए कार्यक्रम का ऐलान उन्होंने किया है।उमा के मुताबिक अब वे 7 नवंबर से 14 जनवरी मकर संक्रांति तक किसी नदी के किनारे या पेड़ के नीचे कुटिया बना कर रहेंगी।गलत जगह पर खुली शराब की दुकान के सामने भी वह चौपाल लगाएंगी।सरकार द्वारा आवंटित सरकारी घर या अन्य किसी भवन में नही रहेंगी।
 उमा को दुख इस बात का भी है कि खुद मुख्यमंत्री ने उन्हें बताया था कि उनकी मांग पर शराब की कुछ दुकानें और अहाते बंद कर दिए गए हैं।पर वास्तव में वे सब खुले हुए हैं।उन्हें इतना समय दिया गया कि वे अदालत से स्थगन आदेश ले आए।
              उमा कह रही हैं कि वे महसूस कर रही हैं कि वे हंसी का पात्र बन गई हैं।साथ ही ठगी भी गईं हैं।लोग कह रहे हैं कि चलो कुछ तो महसूस हुआ। वरना हंसी का पात्र तो वे पिछले एक साल से बनी हुईं हैं। दूसरी तरफ सच्चाई यह है कि उमा भारती राजनीति में पूरी तरह अलग थलग पड़ गईं हैं।आज वे भाजपा में तो हैं लेकिन कोई नेता उनके साथ नही है।उनके अपने लोग उनसे किनारा कर गए हैं।
वे पूरी तरह अकेली हैं और सक्रिय राजनीति में लौटने को छटपटा रही हैं।इसके लिए उन्होंने पिछले डेढ़ साल से "शराब" को पकड़ रखा है।
 शिवराज सिंह को वे अपना बड़ा भाई कहती हैं।लेकिन इन भाई बहन के रिश्तों के बारे में सब जानते हैं।2005 में जब शिवराज मुख्यमंत्री बने थे तब उमा भारती ने उनका भयंकर विरोध किया था।वे विधायक दल की बैठक छोड़ भोपाल से अयोध्या तक की पद यात्रा पर निकल गईं थीं। उसके बाद जो हुआ वह सब जानते हैं।उमा भाजपा से बाहर हुईं।अपनी अलग पार्टी बनाई।2008 का विधानसभा चुनाव भी लड़ीं।लेकिन शिवराज का रास्ता नही रोक पाई।
                  बाद में किसी तरह भाजपा में लौटी।पर मध्यप्रदेश से उन्हें बाहर ही रखा गया। वे उत्तरप्रदेश से विधानसभा की सदस्य बनी।बाद में झांसी से लोकसभा सदस्य भी रहीं।मोदी ने मंत्री भी बनाया।उन्हें गंगा सफाई जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय दिया गया।लेकिन वहां भी वे बयान देने के अलावा कुछ खास नहीं कर पाईं।नतीजा ! मोदी मंत्रिमंडल से बाहर हो गईं।2019 के चुनाव में उन्हें टिकट भी नही मिला।अब पूरी तरह खाली हैं। उनका कोई भी करीबी नेता  उनके साथ नही है। वे छटपटा रहीहैं!फड़फड़ा रही हैं ! उधर मध्यप्रदेश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बना चुके शिवराज सिंह उमा की इस छटपटाहट का पूरा आनंद ले रहे हैं।पहले जब उमा ने शराबबंदी की मांग की तो उनकी सरकार ने देसी और विदेशी शराब की दुकानों को एक कर दिया।उमा जब फिर बोलीं तो शिवराज नशामुक्ति अभियान ले आए।उन्होंने आज तक उमा की किसी भी बात का उत्तर नही दिया । अपना काम करते रहे हैं।अभी भी कर रहे हैं।उन्हें मालूम है कि बिना शराब के वे सरकार नही चला सकते।उमा का क्या?वे तो बोलती ही रहती हैं।और फिर अब दिल्ली भी उनके साथ नही है।
                जहां तक उमा का सवाल है वे कुछ समझ ही नही पा रही हैं।वे आज भी दावा करती हैं कि दिग्विजय की दस साल पुरानी सरकार को उन्होंने उखाड़ फेंका था।इतना प्रचंड बहुमत भाजपा को न कभी पहले मिला न कभी बाद में।शिवराज 2008 और 2013 का चुनाव जीते तो लेकिन 2018 का हार भी गए थे।उमा के दुख अनेक हैं।लेकिन दुख बांटने को कोई साथ नहीं है।उन्होंने दिग्विजय सिंह पर हजारों करोड़ के भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।दिग्विजय ने उन पर मानहानि का मुकदमा कर दिया।आज करीब 19 साल बाद भी उमा भारती और भाजपा दोनों ही दिग्विजय के खिलाफ कोई सबूत अदालत में पेश नही कर पाए हैं।उमा अब माफी मांगने को तैयार हैं।लेकिन दिग्विजय माफी के शब्द खुद लिखना चाहते हैं।इसलिए मामला अटका हुआ है।मजे की बात यह है कि उमा भारती दिग्विजय सिंह को भी अपना बड़ा भाई बताती हैं।शिवराज तो हैं ही उनके बड़े भाई।
                फिलहाल संन्यासिन का अस्थिर चित्त उन्हें ज्यादा परेशान कर रहा है।इसी की वजह से वे हलकान हुई जा रही हैं।अब उन्होंने ऐलान किया है कि शराब बंदी के लिए वे करीब डेढ़ महीने तक आलीशान भवन में न रहकर झोपड़ी में रहेंगी।नदी में नहाएंगी।शराब की दुकानों का विरोध करेंगी।जबकि लोगों का मानना है कि संन्यासियों को तो जंगल में झोपड़ी बना कर ही रहना चाहिए।संन्यासी को महलों से क्या लेना देना।अगर वे कुछ दिन झोपड़ी में रहकर सत्ता के महल में लौटना चाहती हैं तो फिर सन्यास काहे का?
               फिलहाल देखना यह है कि शराब के खिलाफ उमा का यह आंदोलन उन्हें सत्ता की "सीकरी" तक पहुंचा पाएगा या नहीं? फिलहाल तो वे खुद कह रही हैं कि वे "हंसी" की पात्र बन गई हैं।एक तथ्य यह भी है कि वे देश की पहली ऐसी संयासिन हैं जो "सत्ता के शिखर" पर चढ़ कर लुढ़की हैं।हिमालय से बेहद प्रेम करने वाली इस संन्यासिन को मध्यप्रदेश ने ही शिखर पर पहुंचाया था और उसी ने उन्हें "रसातल" का रास्ता दिखाया।
                आखिर अपना एमपी गज्जब  जो है!!!

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