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सिस्टम को तहस नहस करता एजेंडा


श्री श्रीप्रकाश दीक्षित ,संपादक,जनहित मिशन डाट काम
                 मध्यप्रदेश में शीर्ष स्तर पर आईपीएस अफसरों की भरमार पर छपी खबर में नया कुछ भी नहीं है.इसके बरअक्स आईएएस और वनसेवा में भी इफरात में बड़े अफसर मिल जाएंगे क्योंकि पद हो या ना हो उन्हें पदोन्नति मिलने में लेट लतीफी नहीं होती । इन सभी संवर्गों के अफसर इससे अपडेट होते रहते हैं की किस प्रदेश में उनके बेचमेट प्रमोशन में उनसे आगे तो नहीं निकल गए हैं.ऐसा होने पर एसोसिएशन मुख्यमंत्री से मिलती है और बिना पद पदोन्नति मिल जाती है । फिर पदस्थापना के लिए शाखाओं में कतरब्योंत कर नए पद सृजित कर लिए जाते हैं ताकि अफसर मक्खी मारने की तोहमत से बचे रहें।अलबत्ता खबर की यह जानकारी परेशान करने वाली है की स्पेशल डीजी और एडीजी स्तर के अनेक अफसर उपलब्ध होने और कई शाखाओं में पद के बावजूद पदस्थापना नहीं की जा रही है। दूसरी तरफ पदोन्नति में आरक्षण का मामला करीब सात साल से सुप्रीम कोर्ट में लम्बित होने से नई भर्तियाँ नहीं हो पा रही हैं। इससे विभागों में हर स्तर के सैंकड़ों पद खाली होने और पदोन्नतियाँ ना होने से प्रशासकीय ढांचा चरमरा गया है। मुख्यमंत्री शिवराज के आरक्षण एजेंडे के चलते 60-70 हजार शासकीय सेवक उन्हें कोसते और बद्दूआएँ देते रिटायर हो चुके हैं और सिलसिला जारी है। जहां भर्ती प्रक्रिया शुरू भी हुई वहां कानूनी पेचीदगियों के चलते रफ़्तार सुस्त होने से नियुक्तियाँ होने के आसार नहीं हैं। 
                   विभागों की दुर्दशा का एक उदाहरण प्रचार विभाग है। मुख्यमंत्री ने इसका मजाक उड़ाते हुए कहा की जितना काम मेरे ओसडी (कोई खरे) कर लेते हैं उतना यह पूरा विभाग नहीं कर पाता.? दिलचस्प यह की विभाग उनके पास है और करीबी आईपीएस रिश्तेदार संचालक तो आईएएस आयुक्त हैं,ऐसे में जवाबदारी किसकी हुई..?पदोन्नति मे आरक्षण दिग्विजयसिंह ने लागू किया था.जब हाईकोर्ट ने रद्द किया तो शिवराज सरकार सुप्रीमकोर्ट गई.माना जाता है की सुप्रीमकोर्ट मे भी यह टिक नहीं पाएगा..! तब मुख्यमंत्री शिवराज ने ऐलान किया की कोई माई का इस आरक्षण को खत्म नहीं कर सकेगा और जरूरत पड़ी तो हम सारे नियम बदल डालेंगे.यदि ऐसा है तो सुप्रीम कोर्ट से तभी मामला वापस लेकर कानून को बदल डालते.तब कम से कम महंगे वकीलों पर तो जनता का धन बरबाद ना होता।

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