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परिवार के लिए पार्टी दांव पर..!


ना काहू से बैर

राघवेंद्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

                   आजादी के आंदोलन से जन्मी कांग्रेस पार्टी इन दिनों बाहर कम अपने ही भीतर ज्यादा संघर्ष करती हुई दिख रही है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्वाचन को लेकर यह आशंका और भी साफ होती दिखती है। 
                   'मास बेस पार्टी फेमली बेस' में इस कदर तब्दील हो गई है कि गांधी परिवार से काबिल कोई भी उसे रास नही आता।आजादी के बाद लगभग 65 साल तक राष्ट्र पर एक छत्र राज करने वाली कांग्रेस से कांग्रेसी गुत्थमगुत्था है। पटखनी पर पटखनी दिए जा रहे हैं। हालात ऐसे हैं की क्या कहा जाए और क्या नहीं कुछ समझ में नहीं आ रहा लेकिन इसका नेतृत्व अच्छा है यह साबित करने के लिए एक कहानी बताना जरूरी लगता है।
                 असल में एक गांव में एक बहुत ही अपयश प्राप्त व्यक्ति रहा करता था वह अक्सर घर के सामने दरवाजे पर बैठता था और जो भी निकलता उससे अपशब्द बोलता और झगड़ा करता इस वजह से पूरे गांव के लोग उससे बच के चलते और पीठ पीछे उससे भला बुरा बोलते लेकिन जब वह बुजुर्ग मरणासन्न नेता उसने अपने पुत्रों से कहा कि तुम कम से कम ऐसा काम करना कि लोग यह कहे तुम्हारे पिता बहुत अच्छे थे इसके बाद दिवंगत व्यक्ति के पुत्र परेशानी में पड़ गए क्या खेल ऐसा क्या करें कि लोग कहे कि इनके पिता अच्छे से बहुत विचार करने के बाद पुत्रों ने तय किया कि अब घर के सामने से जो भी गुजरेगा उसे हम पिता की भांति अपशब्द तो कहेंगे साथ में लाठियों से पिटाई भी करेंगे। अप्रिय और कष्टकारी निर्णय था लेकिन इसका नतीजा यह निकला की पूरा गांव कहने लगा इनसे अच्छे तो उनके पिताजी थे कम से कम मारते तो नहीं थे। यह कहानी केवल समझने के लिए है कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर प्रदेशों के ज्यादातर मुखिया इसी तरह की कहानी से मेल खाते नजर आए तो इससे केवल एक इत्तेफाक समझा जाए।
                कांग्रेस नेतृत्व के मामले में अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा कर पार्टी में नई जान फूंकने की कोशिश कर रहे हैं और इस बात पर कायम है कि कोई गैर गांधी पार्टी का अध्यक्ष होगा। लेकिन ऐसा लगता है पार्टी के नेता राहुल बाबा से कमजोर लीडर राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए ढूंढने में लगे हैं। ताकि यह साबित किया जा सके कि जो नया अध्यक्ष है उनसे तो 100 गुना अच्छे राहुल बाबा थे वरना क्या वजह है कि उत्कृष्ट विकल्प होने के बावजूद दक्षिण भारत के उम्र दराज नेता को राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए सुना जा रहा है। ऐसा भी नहीं है कि दक्षिण भारत के यह लीडर इतने कद्दावर है कि वह पूरे देश में पार्टी का परचम ठहरा सकें उनके गृह राज्य कर्नाटक में कांग्रेस की हालत खराब है वे स्वयं पिछला लोकसभा का चुनाव हार चुके हैं। इसके बाद आलाकमान ने उन्हें राज्यसभा में चुनकर भेजा और ऊर्जावान नेताओं की अनदेखी कर उन्हें नेता प्रतिपक्ष भी बनाया। इससे भी आगे 65 फ़ीसदी युवा वोटरों के भारत में कांग्रेस की कमान बुजुर्ग बाद नेता के हाथ में सौंपने की चाल चलकर नेतृत्व क्या संदेश देना चाहता है किसी को समझ नही आ रहा है। दक्षिण से उत्तर पूर्व से पश्चिम तक पूरे देश में कांग्रेस साफ है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में कांग्रेस का सोनिया गांधी के रूप में मात्र एक सांसद है। बिहार,मप्र, राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा,छत्तीसगढ़, उड़ीसा जैसे राज्यों का माहौल पार्टी को जिताने और केंद्र के साथ राज्य में सरकार बनाने का अवसर देता है। इन राज्य में लोकसभा में कांग्रेस का एक तरह से सूपड़ा साफ है। उत्तर भारत जहां से लोकसभा के लिए करीब ढाई सौ से ज्यादा सीटें आती हैं उसकी अनदेखी कर आखिर कांग्रेस किन नेताओं और कौन से गणित से 2024 में केंद्र में सरकार बनाने में अपनी भूमिका देखती है। मध्यप्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट के चेहरे सामने रखकर चुनाव लड़े गए थे। राजस्थान में पीसीसी चीफ पायलट थे और मुख्यमंत्री बने अशोक गहलोत मध्यप्रदेश में शिवराज बनाम सिंधिया थे और मुख्यमंत्री बने कमलनाथ। मध्यप्रदेश में सरकार के शपथ समारोह में जरूर राहुल गांधी आए लेकिन उसके बाद मध्यप्रदेश में क्या हो रहा है कितना असंतोष है देखने के लिए राहुल बाबा पलट कर नहीं आए। उपेक्षित सिंधिया ने बगावत कर दी।नतीजतन15 महीने में कांग्रेस सरकार के बाहर हो गई। राजस्थान में भारी असंतोष और पायलट की बगावत की खबरें थी। किसी तरह सरकार बच गई। लेकिन दो बारा आएगी इस पर सभी को संदेह है।

                    कांग्रेस सिर्फ राजस्थान और छग में ही सत्तारूढ़ है। पंजाब में दलित कार्ड के रूप में चरनजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाया था। दांव उल्टा पड़ा।अब वहां आम आदमी पार्टी सरकार में है। कठिन समय है। राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए भी दलित कार्ड खेला जा रहा है। दक्षिण भारत के 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस की कमान सौंपी जा रही है। खड़गे में ऐसा करिश्मा नही है कि वे देश मे कांग्रेस को खड़ा कर पाएंगे। वे न तो दक्षिण के एन टी रामाराव, एमजी रामचन्द्रन, करुणाकरण, रामकृष्ण हेगड़े जैसे नेताओं में शुमार हैं कि बाजी पलट दें। पार्टी को जिताना तो दूर वे खुद ही कर्नाटक से लोकसभा चुनाव हार गए।एक तरह से चलने फिरने दिन रात दौरे करने जनता और कार्यकर्ताओं से का कठिन काम कैसे कर पाएंगे। इस तरह के निर्णय खुद आलाकमान करेगा तो फिर पार्टी के लिए दुश्मन ढूढ़ने की जरूरत नही है। कमजोर नेतृत्व को सूबेदार अपने निर्णय सुना रहे हैं कि वे छग, राजस्थान और मप्र नही छोड़ेंगे।इसके बाद भी कुछ बचता है तो यही कहा जाएगा उम्मीदों पर आसमान टिका है। गोरों से लड़ कर आजादी दिलाने वाली यह पार्टी फिर से उठ खड़ी होती आई है। लेकिन कब तक...? अब उसका कमजोर हाईकमान अपने - पराए सब से डरा हुआ सा है।

दिग्विजय की वफादारी ...
                कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह का नाम भी खूब चला कह सकते हैं कि उन्होंने इसे चलाया भी खूब लेकिन अंदर खाने जो अनुमान निकल कर आ रहे हैं उसे लगता है गांधी परिवार में भी समन्वय और संवाद घट रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष के लिए दिग्विजय सिंह का चुनाव मैदान में उतरने के संकेत बताते थे गांधी परिवार से उन्हें ग्रीन सिग्नल मिला हुआ है। लेकिन ऐन वक्त पर सोनिया गांधी और प्रियंका की चर्चा ने पूरा गणित व उलट दिया। इसका मतलब कुछ लोग और भी हैं जो पार्टी के निर्णय को प्रभावित करते हैं। ये अलग बात है कि उसमें पार्टी और गांधी परिवार का कितना भला होगा। फिलहाल तो पार्टी दांव पर है।

खड़गे जी सनातन विरोधी भी हैं...
                    कांग्रेस के भावी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे आरआरएस के साथ सनातन विरोधी भी है। उनका एक वीडियो बहुत वायरल हो रहा है जिसमे वे कह रहे हैं - मोदी को और शक्ति मिली तो ऐसे में सनातन और आरआरएस की हुकूमत आएगी। जिस सनातन का ध्येय वाक्य है विश्व का कल्याण हो, प्राणियों में सद्भावना हो, धर्म की जय  और अधर्म का नाश हो...ऐसे सनातन का विरोध कर खड़गे जी किस तरह के धर्म और कैसी राजनीति का सपना लेकर कांग्रेस को मजबूत कर पाएंगे। सनातन न तो धर्मांतरण कराता है और न ही आतंकवाद का समर्थन करता है। वह तो सभी धर्म, मत- पन्थों को ईश्वर तक पंहुचने और उन्हें पाने का माध्यम मानता है। आने वाले समय मे कांग्रेस के लिए चिंता और चिंतन का विषय हो सकता है। 
 
कमलनाथ के गढ़ में कांग्रेस कमजोर...
                   मप्र कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में कांग्रेस कमजोर हो रही है। हाल के नगरीय चुनाव में सौंसर ऐसा कस्बा है जहां कांग्रेस  बुरी तरह हार गई है। 46 नगर पालिका- नगर पंचायतों में से मात्र 10 में ही उसे सफलता मिल सकी है। इन नतीजों को पीसीसी चीफ की लोकप्रियता के मामले में हांडी के चावल के रूप में देखने की जरूरत है। मुख्यमंत्री रहते विधानसभा चुनाव में जीत का अंतर लगभग 25 हजार 837 वोट का ही था। यह हाल तब है जब उनके खिलाफ भाजपा ने मामूली से कार्यकर्ता बंटी साहू को मैदान में उतारा था। इसी तरह छिंदवाड़ा संसदीय सीट से नाथ के पुत्र नकुलनाथ भी बहुत मामूली अंतर करीब 37 हजार वोट से सीट बचा पाए थे। जबकि कमलनाथ ने यह सीट एक लाख सोलह हजार वोट से जीती थी।

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