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नाथ का किला ढहा, गोपाल का गढ़ अभेद्य....


राज-काज
दिनेश निगम ‘त्यागी’, वरिष्ठ पत्रकार
                  प्रदेश के शेष रह गए 46 निकायों में भी कमलनाथ कोई करिश्मा नहीं कर पाए। दो तिहाई से ज्यादा निकाय भाजपा ने जीते ही, कमलनाथ का किला भी ढहा दिया। इसके विपरीत पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव का गढ़ गढ़ाकोटा 40 साल बाद भी अभेद्य रहा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने छिंदवाड़ा जिले की सभा में मतदाताओं से अपील की थी कि आपने सांसद, विधायक और महापौर कांग्रेस के जिता दिए, अब पार्षद तो भाजपा के जिता दीजिए। शिवराज की अपील लोगों ने सुन ली और भाजपा ने जिले के कांग्रेस से ज्यादा निकाय जीत लिए। कमलनाथ के लिए यह बड़ा झटका है। इधर गोपाल भार्गव के गढ़ गढ़ाकोटा में फतह के लिए कांग्रेस ने पूरी ताकत झोंकी लेकिन चालीस साल बाद भी नतीजा वहीं ‘ढाक के तीन पात’ जैसा, भाजपा ने सभी वार्ड जीत लिए। कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला। विधानसभा चुनाव लड़े कांग्रेस प्रत्याशी फिर अपना वार्ड हार गए। निकाय चुनाव नतीजों का लाभ गोपाल भार्गव को विधानसभा चुनाव में भी मिलता है। विधानसभा के दो चुनाव में वे प्रचार के लिए भी नहीं निकले, तब भी बड़े अंतर से जीते। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने एक कार्यक्रम में कहा था कि नई पीढ़ी को भार्गव जैसे नेताओं से सीखना चाहिए और लेखकों को ऐसे नेताओं पर पुस्तक लिखना चाहिए।
‘दिल के अरमां आंसुओं में बह गए....!’
                 कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव लड़ने को लेकर निर्णय लेने में दिग्विजय सिंह ने जल्दबाजी कर दी। उन्हें लगा अशोक गहलोत दौड़ से बाहर हो गए हैं और वे ठहरे गांधी परिवार के सबसे विश्वस्त, इसलिए मौका अच्छा है। मौका था भी, लेकिन गलती ये हो गई कि दिग्विजय ने चुनाव लड़ने का निर्णय गांधी परिवार को भरोसे में लिए बगैर ले लिया। नतीजा, लोगों को कहने का अवसर मिल गया कि ‘दिल के अरमां आंसुओं में बह गए...!’ मजेदार बात ये है कि दिल के अरमान सिर्फ दिग्विजय एवं उनके समर्थकों के ही आंसुओं में नहीं बहे, भाजपा के कई नेताओं की दशा भी ऐसी ही है। संघ और भाजपा के कुछ नेता मान बैठे थे कि दिग्विजय कांग्रेस अध्यक्ष बने तो हिंदू-मुस्लिम के बीच ऐसा ध्रुवीकरण होगा कि कांग्रेस को 10-20 सीटें जीतना भी मुश्किल हो जाएगा। लोकसभा की सीटों को लेकर शर्तें लगाई जाने लगी थीं। पर लगता है, कांग्रेस आलाकमान ने मंशा भांप ली और भाजपा नेताओं के अरमानों पर भी पानी फेर दिया। जैसे ही कांग्रेस के दलित नेता मल्लिकार्जुन खडगे का नाम सामने आया, दिग्विजय ने ही सरेंडर नहीं किया, ग्रुप जी-23 भी बैकफुट पर आया। ग्रुप के नेताओं ने शशि थरूर की बजाय खडगे को समर्थन देने का फैसला लिया। इधर शर्त लगाने वाले बेचारे भाजपा नेता भी मायूस। 
 बदजुबानी से रामबाई को कितना नफा-नुकसान....
                      दमोह जिले से पथरिया की बसपा विधायक राम बाई बदजुमानी की सीमा लांघती नजर आने लगी हैं। परिवार के आपराधिक प्रवृत्ति का होने का आरोप उन पर पहले से चस्पा है, अमर्यादित आचरण से वे उसे सच साबित करती नजर आ रही हैं। अब उन्होंने सीधे दमोह के कलेक्टर के साथ अभद्रता की है। कुछ महिलाओं को लेकर उनके पास पहुंची राम बाई ने पहले तो उनकी तुलना ढोर अर्थात जानवर से की। इसके आगे बोलीं की दो रुपए की भी अक्ल नहीं है। कई उल्टी सीधी बातें और सुना डालीं। राम बाई के इस रवैए से सरकारी अमला खासकर आईएएस एसोसिएशन गुस्से में हैं। राम बाई के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी है। रामबाई ने हालांकी माफी मांगी है। पर सरकार और रहम करने के मूड में नहीं है। राम बाई की हरकत की आलोचना हो रही है और यह आंकलन भी कि राजनीतिक तौर पर राम बाई को इससे कितना नफा-नुकसान होगा। आमतौर पर आम लोग सरकारी अमले से नाराज रहते हैं। इस दुखती रग को पकड़ राम बाई आम लोगों को लेकर जाकर हंगामा करती हैं। ठीक उसी तर्ज पर जैसे मुख्यमंत्री मंच से अफसरों को ठीक करने की धमकी देते हैं। फर्क यह है कि मुख्यमंत्री की भाषा मर्यादित होती है और राम बाई मयार्दा को तार-तार करती नजर आती हैं।
नेताओं का यह डर कैसे दूर करेंगे कमलनाथ....                                                                                                                                                                    प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ विधानसभा चुनाव के बाद फिर सत्ता में आने को लेकर अति आत्मविश्वास में हैं। वे बार-बार कहते हैं कि ‘दिल्ली नहीं जाऊंगा, मप्र नहीं छोड़ूंगा।’ कमलनाथ कांग्रेस को सत्ता में लाने रणनीति बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हालांकि जमीन में इसका खास असर दिखाई नहीं पड़ रहा। पांच शहरों में महापौर न जीतते तो निकाय एवं पंचायतों के चुनावों में कांग्रेस का सफाया जैसा हुआ है। फिर भी कमलनाथ को लगता है कि चुनाव बाद कांग्रेस का सत्ता में आना तय है, उनके इस आत्मविश्वास को दाद देना होगी। दरअसल, कांग्रेस को सिर्फ भाजपा से ही नहीं लड़ना, उसके धन, बल और सरकारी मशीनरी से भी लड़ना है। कमलनाथ ने अभी महापौर प्रत्याशियों की बैठक बुलाई थी। इसमें एक महिला प्रत्याशी ने कमलनाथ से दो टूक कहा कि आप कितनी भी तैयारी कर लें, माहौल बना लें लेकिन भाजपा के धन, बल और प्रशासन की ताकत से कैसे लड़ेंगे। कांग्रेसियों को दबाने के लिए मुकदमे लाद दिए जाते हैं। मतदान के दिन तक पोलिंग एजेंटों को खरीदा, धमकाया जाता है। यह स्थिति विधानसभा चुनाव में भी रहने वाली हैै। उन्होंने सुझाव दिया कि कम से कम एक उड़नदस्ता तो ऐसा हो जो कांग्रेसियों के दमन पर साथ खड़ा दिखाई दे। क्या इस महिला प्रत्याशी की बात में दम नहीं है ? 
नड्डा के कारण ‘बिन मांगे पूरी हुई मुराद’....
                   भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के कार्यकाल में वृद्धि की खबर से राष्ट्रीय स्तर पर नड्डा से जुड़े लोग तो खुश हैं ही, मध्यप्रदेश में भी संगठन से जुड़े नेताओंकी बांछें खिल गई हैं। उन्हें बिन मांगे मुराद पूरी होती दिख रही है। सबसे ज्यादा खुशी की बात प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के लिए है। नड्डा का कार्यकाल बढ़ेगा तो इसका असर शर्मा के कार्यकाल पर भी पड़ेगा। उनके हटने का खतरा टलेगा, क्योंकि चाहे जब संगठन और सरकार में नेतृत्व परिवर्तन की चलने वाली अटकलों से सब परेशान हैं। नीचे स्तर पर  जिला एवं मंडल अध्यक्ष भी खुश हैं। इनमें से अधिकाशं की नियुक्ति वीडी शर्मा ने ही की है। इन्हें भी लगता है कि हमारा रिन्युअल हो जाएगा। कार्यकाल में यह वृद्धि 2024 में प्रस्तावित लोकसभा चुनाव तक के लिए मिल सकती है। साफ है कि भाजपा नेतृत्व ने फैसला भले जेपी नड्डा को लेकर लिया है लेकिन इसका असर निचले स्तर तक देखा जा रहा है। नड्डा के बाद प्रदेश स्तर पर बदलाव की संभावना इसलिए भी कम है क्योंकि पार्टी की राज्य इकाइयों का नड्डा के साथ तालमेल बन चुका है। हर स्तर पर विधानसभा एवं लोकसभा चुनाव को लेकर रणनीति बन चुकी है और उस पर अमल शुरू हो चुका है। ऐसे में नेतृत्व भी संगठन स्तर पर किसी को डिस्टर्ब नहीं करना चाहेगा।
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