PFI... भयावह मोड़ पर देश,स्लीपर सेल के भी खतरे
ना काहू से बैर
राघवेंद्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई)नाम बड़ा अच्छा लेकिन नाम में क्या रखा है पीएफआई पर देशव्यापी छापे के बाद जो संकेत और सबूत मिले हैं वह नींद उड़ाने वाले हैं । टेरर फंडिंग के लिए अंतरराष्ट्रीय साजिश के सबूत भी मिले हैं। अभी गिरफ़्तारियों का सिलसिला आगे भी जारी रह सकता है। प्रतिबंधित संगठन सिमी के बाद मध्यप्रदेश से भी पीएफआई के खतरनाक सदस्यों का पकड़ा जाना स्लीपर सेल की तरफ भी इशारा करता है। दीवाली तक त्यौहार ही त्यौहार हैं। ऐसे में सबको सतर्क रहने की जरूरत है। केंद्रीय खुफिया एजेंसियो के साथ लोकल पुलिस और भोपालियों को आंख कान खुले रखने के साथ दिमाग को सक्रिय करने की जरूरत है। क्योंकि हर बार केंद्रीय एजेंसिया ही काम नही आएंगी। हेलमेट चेकिंग और वसूली अभियान के अलावा समाज और मुल्क की हिफाजत से जुड़े दूसरे महत्वपूर्ण कामों को भी अंजाम देना होगा।
कुछ महीने पहले भी भोपाल में ऐशबाग थाने के पास बंगलादेशी आतंकी संगठन के चार सदस्य पकड़े गए थे। जी कि बरसों से स्लीपर सेल बनाने में जुटे थे। उसके बाद एमपी के इंदौर और उसके आसपास से पीएफआई के प्रदेश अध्यक्ष अब्दुल करीम बेकरी वाला अब्दुल जावेद मुमताज कुरैशी और जमील शेख का पकड़ा जाना बताता है भाईचारा खत्म करने वाले और उनके सरपरस्तों की जड़ें बहुत दूर तक और बहुत गहरे तक जम गई हैं। देश के करीब 22 राज्यों से लेकर प्रदेश के 26 जिलों में शहरों, कस्बों से लेकर गांवों तक इसका नेटवर्क फैल गया है। जाहिर इसमे मजहब के नाम पर भोले भाले कम पढ़े लिखे लोगों को शामिल किया गया है। जांच में इस मुद्दे पर जानकारियां खुफिया एजेंसियों को मिल ही जाएंगी।
मप्र के मालवा-निमाड़ के साथ सैन्य शस्त्रागार और एयर फोर्स के लिहाज से महत्वपूर्ण माने जाने वाले महाकौशल और चम्बल में भी पीएफआई ने घुसपैठ कर ली है। शांति की दृष्टि से भोपाल उनके आनेजाने और ट्रांजिट पीरियड गुजराने के लिए बहुत मुफीद माना जाता है। अल्पसंख्यको के अंतरराष्ट्रीय सम्पर्कों के कारण आतंकियों ने भोपाल को भी स्लीपर सेल से लेकर ट्रेनिंग और ब्रेनवॉश करने के लिए सुविधजनक जगह बना ली है।
असल में आतंकवाद का वायरस भी अपडेट हो रहा है...और उसके इलाज कमजोर साबित हो रहे हैं।सिमी का नेटवर्क ध्वस्त हुआ तो पीएफआई के नाम से नया संगठन पहले ज्यादा ताकतवर बन कर सामने आ गया। चिंताजनक बात है यह है कि लोकल पुलिस का इस तरह के मामलों की तहकीकात में एकदम गाफिल रहना।
प्रतिबंधित संगठन सिमी से लेकर दक्षिण भारत के कुछ अलगाववादी संगठनों को मिलाकर पापुलर फ्रंट आफ इंडिया बना। इसमें लश्कर, हिज्बुल जैसे नाम नहीं है। लेकिन काम उन्हीं की तरह के हैं यही वजह है कि बीमारी और महामारी के वायरस अपडेट होते हैं। रूप बदलकर सामने आते हैं। नतीजतन वैक्सीन के साथ दवाएं बेकार हो जाती है। उसी तरह आतंकवाद और अलगाव से जुड़े देश विरोधी संगठन नाम और रूप बदलकर पहले से भी ज्यादा खतरनाक बंद कर सामने आ रहे हैं। कभी डेवलपमेंट इंडिया तो कभी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया। बतौर मीडिया अभी इस पर कोई जजमेंट देना उचित नहीं होगा लेकिन एनआईए के देश व्यापी छापे और जांच में जो संकेत मिल रहे हैं वह चौकानेवाले भी हैं और डराने वाले भी।
दिग्विजय के बयान से भड़केगी सियासत...
सिमी से लेकर पीएफआई पर होने वाली राजनीतिक बयानबाजी बहुत अभी जोर पकड़े। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने पीएफआई की तुलना आरएसएस और विहिप से कर आग में घी डालने का काम कर दिया है। पीएफआई पहले भी एनआरसी और सीएए जैसे मुद्दे पर दिल्ली के शाहीन बाग के आंदोलन से देश भर में चर्चाओं में आ ही चुका था। इस तरह के आंदोलन के लिए फॉरेन फंडिंग में पीएफआई का नाम आया था और तब से ही इसकी जांच हो रही थी। अभी रडार पर कई नाम होंगे। इस पूरे मसले पर दिग्विजयसिंह की टिप्पणी में कांग्रेस भी पार्टी बन गई है।
भाजपा में सन्नाटा...
प्रदेश के 16 नगर निगम में से सात में शिकस्त खाने के बाद प्रदेश भाजपा के अंदर खाने में सन्नाटा छाए हुआ हैं। छोटे बड़े लगभग सभी नेता कार्यकर्ता कुछ बड़ा घटित होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। हर कोई अपने हिसाब से महीना और तारीख बता रहे हैं। ये सब ऐसे ही हैं लग गया तो तीर नही तो तुक्का तो है ही।फिलहाल तो भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को एमपी के अलावा और भी बहुत से काम हैं। मसलन हिमाचल- गुजरात के चुनाव भी तो हैं । इस लिहाज से शांत से दिख रहे इस सूबे में बदलाव के पत्थर मारने के मूड में हैं 'मोशा'...लेकिन सब यह भी मानते और जानते हैं कि भाजपा अक्सर अपने फैसलों से सबको चकित भी करता आया है। पीएम नरेंद्र मोदी के हाथों कूनो पालपुर में आठ चीते का कुनबा छोड़ने के बाद फिलहाल तो सरकार और संगठन पीएम नरेंद्र मोदी की महाकाल की नगरी उज्जैन यात्रा की तैयारी में जुटे हैं।
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