यह कमलनाथ का एक और ‘सेल्फ गोल’....!
राज-काज
दिनेश निगम ‘त्यागी’, वरिष्ठ पत्रकार
कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के अनुभव पर सवाल उठने लगे हैं। वजह हैं, ‘सेल्फ गोल’ साबित होते उनके बयान। ऐसे एक बयान के कारण वे सत्ता गंवा चुके हैं। उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया को सड़क पर उतरने की चुनौती दे दी थी। जवाब में सिंधिया ने 22 विधायकों के साथ कांग्रेस से अलग होकर सरकार गिरा दी और कमलनाथ को सड़क पर ला दिया था। उम्मीद थी, कमलनाथ इससे सबक लेंगे लेकिन नतीजा वही ‘ढाक के तीन पात’। अब उन्होंने कह दिया कि जिसे कांग्रेस छोड़कर जाना है चला जाए, मैं जाने के लिए अपनी कार भेज दूंगा। कमलनाथ के इस बयान की कांग्रेस के अंदर आलोचना हो रही है और भाजपा भी मजे ले रही है। पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा है कि यह बयान ठीक नहीं है। जो नाराज भी हैं उन्हें समझा कर साथ जोड़े रहने की जरूरत है। प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने तंज कसा कि राहुल गांधी जोड़ने के लिए यात्रा निकाल रहे हैं और कमलनाथ कांग्रेस छोड़ो अभियान चला रहे हैं। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल खुद नेताओं, कार्यकर्ताओं के घर जाकर उन्हें सक्रिय करने की कोशिश कर रहे हैं। क्या कमलनाथ को अपने ऐसे बयानों के लिए आत्ममंथन नहीं करना चाहिए। ‘विधानसभा में बकवास होता है’, कहने पर भी उनकी आलोचना हो चुकी है।
शिवराज की सजा का यह तरीका कितना जायज....
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान फिर चर्चा में हैं। मुद्दा है अफसरों के खिलाफ उनके द्वारा की गई कार्रवाई। पहले उन्होंने झाबुआ के एसपी को छात्रों से बातचीत में अमर्यादित भाषा का उपयोग करने के लिए सजा दी। इसके बाद झाबुआ के कलेक्टर को भी नाप दिया। कलेक्टर के खिलाफ भ्रष्टाचार सहित कई अन्य शिकायतें थीं। अगले शिकार एक खाद्य अधिकारी हुए। इन्हें शिवराज ने फिल्मी स्टाइल में सभा में मंच से ही कह दिया कि आप सस्पेंड, यहां से चले जाइए। अर्थात शिवराज पहले मंच से कार्रवाई की चेतावनी देते थे, अब मौके पर ही सजा दे रहे हैं। सवाल यह है कि दंड देने का शिवराज का यह तरीका कितना जायज है? सामान्य नियम है कि सजा देने से पहले आरोपी को अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाता है। झाबुआ एसपी का अपराध प्रमाणित था क्योंकि उनकी बातचीत का आडियो वायरल हुआ था और जांच में आवाज एसपी की ही पाई गई थी लेकिन कलेक्टर एवं खाद्य अधिकारी को सिर्फ शिकायतों के आधार पर दंडित कर दिया गया। खाद्य अधिकारी का तो वहां के कलेक्टर बचाव कर रहे थे। हो सकता है शिकायत गलत हो और वे निर्दोष हों। इसलिए मुख्यमंत्री द्वारा कार्रवाई करना गलत नहीं है लेकिन यह भी देखना होगा कि कोई निर्दोष दंडित न हो जाए।
गोंगपा’ जैसा तो नहीं होगा ‘जयस’ का हश्र....!
आदिवासियों को संगठित करने में काफी हद तक सफल हुए युवा संगठन ‘जयस’ अब ‘गोंगपा’ की राह पर है। एक समय गोंगपा ने आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में ताकत बन कर कांंग्रेस और भाजपा की नींद उड़ा दी थी। पहले ही चुनाव में उसके तीन विधायक जीत गए थे। इसके बाद गोंगपा के नेताओं में ऐसी महात्वाकांक्षा जागी कि दल टुकड़ों में बंटता चला गया। आज गोंगपा की हालत किसी से छिपी नहीं है। अब उसमें एक भी सीट जीतने का माद्दा नहीं। लगभग यही स्थिति जयस की हो रही है। आदिवासी युवाओं को संगठित कर इस संगठन ने सभी का ध्यान खींचा था। भाजपा, कांग्रेस बेचैन हुए। जयस के नेता डॉ हीरालाल अलावा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक भी बन गए। बस क्या था, गोंगपा की तरह जयस के नेताओं के भी पंख लगे। इन्हें लगा कि हम अपनी दम पर भी चुनाव जीत सकते हैं। डॉ अलावा ने घोषणा कर दी कि हम आदिवासी अंचल की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, जबिक विधानसभा के पिछले चुनाव के बाद गंगा में काफी पानी बह चुका है। जयस खुद कई टुकड़ों में बंट चुका है। ऐसे में जयस नेताओं को संगठन को एकजुट और मजबूत करने की ओर पहले ध्यान देना चाहिए था लेकिन वे सभी सीटों में चुनाव लड़ने का एलान करने लग गए। ऐसे में जयस का गोगपा जैसा हश्र नहीं होगा तो क्या होगा ?
पूरी हो सकेगी भाजपा के इन नेताओं की मंशा....!
भाजपा के एक और बड़े नेता ने ऐलान कर दिया है कि वे विधानसभा का अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे। ये हैं पूर्व मंत्री नागेंद्र सिंह। इससे पहले पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने भी ऐसी ही घोषणा की थी। दमोह के जयंत मलैया और रायसेन के सांची से विधायक रहे पूर्व मंत्री डॉ गौरीशंकर बिसने भी इसी पंक्ति में हैं। खास बात यह है कि इन नेताओं ने सिर्फ इसलिए चुनाव न लड़ने की घोषणा नहीं कि क्योंकि ये भाजपा नेतृत्व द्वारा निर्धारित 70 की आयु सीमा पार कर रहे हैं और नई पीढ़ी को अवसर देना चाहते हैं। इसके विपरीत इनकी मंशा अपनी जगह अपने परिवार के बेटे-बेटी को उत्तराधिकारी बनाने की है। गौरीशंकर बिसेन चाहते हैं कि अगला टिकट उनकी बेटी को मिले। इसी प्रकार गौरीशंकर शेजवार एवं जयंत मलैया अपने बेटों के लिए टिकट चाहते हैं। नागेंद्र सिंह की सोच भी ऐसी ही है। सवाल ये है कि नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह के रहते क्या मार्गदर्शक मंडल की ओर अग्रसर इन बुजुर्ग नेताओं की मंशा पूरी हो सकती है? क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी परिवारवाद को बढ़ावा देने के खिलाफ हैं। उत्तरप्रदेश के चुनाव में इस मसले पर उनका सख्त रुख कई बड़े नेता देख चुके हैं और भाजपा नेतृत्व के निर्णय से आहत भी। अजिता वाजपेयी के बेटे ने तो पार्टी ही छोड़ दी थी।
शिवराज के मिस्टर भरोसेमंद बन कर उभरे भूपेंद्र....
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लंबे समय से राजनीति में हैं और लगभग 17 साल से मुख्यमंत्री। भाजपा में प्रदेश के सैकड़ों नेता उनके खास और नजदीक हैं। लेकिन शिवराज के मिस्टर भरोसेमंद होने का ओहदा किसी ने हासिल किया है तो वे हैं प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह। भूपेंद्र मुख्यमंत्री चौहान के संकटमोचक हैं और खास सखा भी। कांग्रेस को तोड़ने और शिवराज को चौथी बार मुख्यमंत्री बनाने की मुहिम में भी उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई थी। 11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाकाल कारिडोर का लोकार्पण करने उज्जैन आ रहे हैं तो इस कार्यक्रम का प्रभारी भी भूपेंद्र सिंह को बनाया गया है। जबकि यह दायित्व मालवा के किसी बड़े नेता अथवा वरिष्ठ मंत्री को दिया जा सकता था। इससे पहले उज्जैन में आयोजित सबसे बड़े धार्मिक समागम सिंहस्थ के प्रभारी भी भूपेंद्र ही थे। वे भोपाल के प्रभारी मंत्री हैं। भूपेंद्र यदि शिवराज मंत्रिमंडल में पहले गृह और परिवहन और अब नगरीय प्रशसन जैसे महत्वपूर्ण विभाग के मंत्री हैं तो इसकी वजह शिवराज का उन पर भरोसा ही है। इसके पीछे की वजह यह है कि भूपेंद्र शुरू से शिवराज के साथ रहे हैं और उनकी अपेक्षाओं पर खरे उतरे हैं। शिवराज की हर प्रमुख मुहिम में भूपेंद्र की खास भागीदारी देखने को मिलती है।
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