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भड़काऊ डिबेट और उकसाऊ पोस्ट पर रोक होना जरूरी


डॉ. चन्दर सोनाने
                   हाल ही में एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय ने टीवी चैनलों पर भड़काऊ डिबेट को समाज के लिए जहर बताते हुए टीवी चैनलां को कड़ी फटकार लगाई है। जस्टिस के.एम जोसेफ और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की पीठ ने हेट स्पीच से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि टीवी पर डिबेट के दौरान एंकर की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। उस दौरान हेट स्पीच रोकना एंकर का कर्त्तव्य है। 
  सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने टीवी पर भड़काऊ डिबेट के संदर्भ में केन्द्र सरकार को भी निशाना बनाते हुए कहा कि वह मूकदर्शक क्यों बनी हुई है ? हमारा देश किस और जा रहा है ? कोर्ट ने केन्द्र सरकार से यह भी पूछा कि क्या सरकार निजी आयोग की सिफरिशों पर हेट स्पीच रोकने के लिए कानून बनाएगी ?
                 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मामले में नियुक्त न्यायमित्र और वरिष्ठ अभिवक्ता श्री संजय हेगड़े ने कोर्ट को बताया कि टीवी चैनलों का कोई नियमन नहीं है। इस पर कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि हेट स्पीच के मुद्दे से निपटने के लिए केन्द्र सरकार का स्पष्ट तरीका होना चाहिए। एक जिम्मेदार लोकतंत्र देश होने के कारण यह देश की जिम्मेदारी भी होनी चाहिए। पीठ ने हेट स्पीच रोकने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर असंतोष जाहिर किया और कहा कि हेट स्पीच अलग- अलग रूपो में हो सकती है। प्रेस की स्वतंत्रता भी महत्वपूर्ण है। लेकिन उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि कहाँ सीमा रेखा कितनी चाहिए ? 
               सर्वोच्च न्यायालय ने टीवी चैनलां पर भड़काऊ डिबेट को जैसे समाज के लिए जहर बताया है, उसी प्रकार राजनैतिक दलों द्वारा दूसरे राजनैतिक दलों के नेताओ और उनके भाषणों में काट-छांट कर जो अफवाह फैलाई जाती है वह भी कम जहर फैलाने वाली नहीं होती है ! वर्तमान में एक दल विशेष द्वारा धर्म और जाति को मुद्दा बनाते हुए सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट डालना भी समाज के लिए जहर से कम नहीं है। वर्तमान में कौन सा प्रमुख राजनैतिक दल इस काम में सबसे अग्रणी है, यह एक ऐसी गोपनीय बात है, जो सब जानते हैं ! 
                पूर्व में भी सर्वोच्च न्यायालय ने टीवी चैनलों पर हेट स्पीच के बारे में सरकार को आड़े हाथों लिया है। किन्तु, जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय कि पीठ ने कहा है केन्द्र सरकार मूकदर्शक बने हुए है। इसे रोकने के ठोस प्रयास नहीं किए जा रहे है। यह देश के लिए दुःखद है। विभिन्न राजनैतिक दलों में अपनी महत्वकांक्षाओं के चलते मतभेद होना स्वाभाविक है। किन्तु मनभेद नहीं होना चाहिए। देश में पूर्व में विभिन्न राजनैतिक दलों के नेताओं द्वारा एक दूसरे पर जमकर आरोप प्रत्यारोपण करते रहे, किन्तु वे व्यक्तिगत छींटाकसी नहीं करते थे। सभी राजनैतिक दलों में आपस में प्रेम और सद्भावना रहती थी। संसद के बाहर वे एक-दूसरे के घर भी आते-जाते रहते थे। इसका सर्वोच्च उदाहरण भाजपा के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी है। उनके जितने अच्छे संबंध अपनी पार्टी के नेताओं से होते थे, उतने ही अच्छे संबंध अन्य राजनैतिक दलों के नेताओ से भी होते थे। और इसे वे छुपाते भी नहीं थे। यदाकदा सार्वजनिक कार्यक्रमों में वे एक दूसरे से प्रेम पूर्वक मिलते भी थे। किन्तु दुःखद यह है कि हाल के कुछ वर्षों के दौरान ऐसे दृश्य देखे जाने बंद हो गए हैं। यह देश का दुर्भाग्य है !
              केन्द्र सरकार को सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देशों के अनुसार टीवी चैनलों पर भड़काऊ डिबेट रोकने के लिए सख्त कदम उठाना ही चाहिए। अन्यथा समाज में फैल रहा यह जहर जब अपना व्यापक स्वरूप ग्रहण कर लेगा तो उस जहर की काट संभव नहीं रहेगी। ऐसा मौका आने के पहले ही केन्द्र सरकार को सभी राजनैतिक दलों के साथ मिलकर इस बारे में सख्त नीति बनानी ही चाहिए। कम से कम इस मामले में विभिन्न राजनैतिक दल अपने मतभेद भूलकर एक जाजम पर आएँ और देशहित में एक ऐसी नीति बनाएँ, जिसमें किसी भी टीवी चैनल को भड़काऊ डिबेट करने का साहस ही नहीं होने पाएँ। यही नहीं जो एंकर भड़काऊ डिबेट को रोकने में असमर्थ रहे, उसके विरूद्ध भी कार्रवाई की जानी चाहिए, तभी समाज में यह जहर फैलने से रूक सकेगा !
              हाल के कुछ वर्षो में सोशल मीडिया की पहुँच घर-घर और व्यक्ति-व्यक्ति तक हो गई है। इसका लाभ राजनैतिक दल अपने निहित स्वार्थ सिद्ध करने में लेते रहते है और वे सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेट फार्मो पर भड़काऊ पोस्ट डालकर जो काम कर रहे हैं, वह भी किसी जहर से कम नहीं है ! इस पर भी प्रभावी नियंत्रण होना जरूरी है। अनेक साम्प्रदायिक दंगों के समय यह देखा गया है कि कुछ ही घंटों में सोशल मीडिया के माध्यम से भड़काऊ पोस्ट देशभर में फैल जाती है। और एक जगह हुए दंगों की प्रतिक्रिया स्वरूप अनेक जगहों पर दंगे फैल जाते हैं। इसलिए जिस प्रकार टीवी चैनल पर भड़काऊ डिबेट को रोकना जरूरी है, उसी प्रकार सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट को रोकना भी आज की सख्त आवश्यकता है। केन्द्र सरकार को सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर तो अब इस पर ठोस और प्रभावी कार्रवाई करनी ही चाहिए। 
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