दूरस्थ और ऑनलाइन डिग्री अब हुई नियमित के बराबर
संदीप कुलश्रेष्ठ
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है। इस निर्णय के अनुसार अब मान्यता प्राप्त संस्थानों से प्राप्त की गई डिस्टेंस लर्निंग और ऑनलाइन पाठ्यक्रमों की डिग्री को परंपरागत डिग्रियों के समकक्ष ही माना जाएगा। परंपरागत तरीके से विश्वविद्यालय और महाविद्यालय से प्राप्त होने वाली स्नातक और परास्नातक डिग्रियों की ही तरह वर्ष 2014 में यूजीसी की अधिसूचना के तहत ओपन और डिस्टेंस लर्निंग से जुड़े विश्वविद्यालयों की स्नातक और परास्नातक डिग्रियों को भी मान्यता दी जायेगी।
यूजीसी की पहल सराहनीय -
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा की गई यह ताजा पहल सराहनीय और प्रशंसनीय है। इससे जिन छात्र-छात्राओं ने डिस्टेंस और ऑनलाइन डिग्री प्राप्त की है, उन्हें भी अब मान्यता मिलने से वे विद्यार्थी हीन भावनाओं से ग्रसित नहीं हो सकेंगे। उनकी पहल और मेहनत भी अब रंग लाएगी।
शुरूआत से रेगुलर को ही थी मान्यता -
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा नियमित रूप से कक्षाएँ लगाने वाले महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को प्राप्त होने वाली डिग्रियों को ही मान्यता थी। परंपरागत रूप से नियमित रूप से कक्षाएँ लगाने वाले संस्थाओं को यह सुविधा दी गई थी।
बाद में प्रायवेट को भी मिली मान्यता -
किसी कारण से कोई विद्यार्थी नियमित रूप से कक्षाओं में नहीं पढ़ पाता तो बाद में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रायवेट परीक्षाएँ देने वालों की डिग्री को भी मान्यता दी गई। इससे वो विद्यार्थी भी लाभान्वित हुए जो किसी कारणवश महाविद्यालय या विश्वविद्यालय में पढ़ने नहीं जा पाते थे। यह उस समय का क्रान्तिकारी फैसला था।
पत्राचार का नवाचार -
नियमित और प्रायवेट रूप से पढ़ने वाले विद्यार्थियों के अलावा अनेक विद्यार्थी ऐसे भी थे , जो किसी कारणवश न तो नियमित रूप से कक्षाओं में जा पाते थे और न ही वे प्रायवेट परीक्षा दे पाते थे। ऐसे विद्यार्थियों के लिए पत्राचार एक वरदान साबित हुआ। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा पत्राचार से प्राप्त डिग्री को भी मान्यता देने से अनेक विद्यार्थियों के भविष्य का मार्ग प्रशस्त हुआ। वे भी पत्राचार से अध्ययन कर परीक्षा देकर डिग्री प्राप्त करने लगे।
समय की मांग है, परिवर्तन -
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने अब डिस्टेंस और ऑनलाइन डिग्री को भी नियमित डिग्री के समान मान्यता देकर एक अभिनव प्रयास शुरू किया है। समय की मांग है कि समय के अनुसार परिवर्तन किया जाए तो ही वह जीवन्त रहता है। अन्यथा वह समय के साथ हासिए में चला जाता है। यूजीसी ने समय के अनुसार परिवर्तन कर समय के साथ कदमताल की है। इसकी हर एक को सराहना करना चाहिए।
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