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पार्टी में सात सितारा भवनों की संस्कृति के खिलाफ खुल कर बोले रघुनंदन शर्मा


श्री श्रीप्रकाश दीक्षित ,संपादक,जनहित मिशन डाट काम
             भारतीय जनता पार्टी में प्रदेश कार्यालय मंत्री जैसे संवेदनशील और अंदरखाने के पद पर काम कर चुके पूर्व विधायक,राज्यसभा सदस्य और मध्यप्रदेश इकाई के पूर्व उपाध्यक्ष श्री रघुननंदन  शर्मा ने वर्तमान प्रदेश कार्यालय भवन को नेस्तनाबूद कर दस मंजिला सितारा भवन बनाने के फैसले का कड़ा विरोध किया है.उन्होंने इस निर्णय को मुग़ल काल में एक सनकी बादशाह द्वारा राजधानी दिल्ली से दौलताबाद ले जाने जैसा बताया है.श्री शर्मा ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा को सख्त भाषा मे लिखे पत्र में दिल्ली के सात सितारा केन्द्रीय भवन पर तंज कसते हुए टिप्पणी की कि हमने भले विशाल कार्यालय बनाया पर वहां संगठन सिकुड़ गया है. दरअसल पार्टी के भोपाल मुख्यालय को तोड़ कर उसे दस मंजिला बनाने की कवायद की जा रही है.इसके लिए मुख्यालय को कई भवनों में शिफ्ट किया जा रहा है जिनमे अनेक सरकारी बंगले हैं.
             प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने गए तमिलनाडु निवासी केन्द्रीय राज्यमंत्री एल मुरुगन को पिछले दिनों बंगला एलाट किया गया है.दैनिक भास्कर की खबर के मुताबिक़ बंगला उन्हें सिर्फ नाम के लिए एलाट किया गया है और इसका वास्तविक उपयोग पार्टी के रेस्ट हाउस और ऑफिस के लिए किया जाएगा.खबर बताती है की पुराने आरटीओ भवन के अलावा कुछ और बंगलों का उपयोग भी पार्टी के लिए किया जाना है.राजधानी में सरकारी बंगलों की बंदरबाँट से पहले ही इनकी किल्लत हो रही है और अब निगम मंडलों में पुनर्वासित नेताओं द्वारा भी बंगले मांगे जा रहे हैं.ऐसे में पार्टी ऑफिस के लिए उपयोग से हालत और ख़राब होने वाले हैं.बेहतर होता पार्टी बड़ा निजी भवन किराए पर लेती क्योंकि संसाधनों की तो उसे कमी है नहीं.
              सरकारी बंगलों की मारामारी का सबसे बुरा असर शासकीय सेवकों,खासकर कर्मचारियों पर पड़ रहा है और उन्हें आवास  मिलना दूभर हो गया है.मुख्यमंत्री के ओबीसी  एजेंडे के चलते वे बिना प्रमोशन के अलावा बिना आवास सुविधा के भी रिटायर हो रहे हैं,जबकि शासकीय आवास बने उनके लिए ही हैं.यह तर्क दिया जाता है की कर्मचारियों वाले आवास नेताओं आदि को एलाट नहीं किए  जाते हैं.पर जब बड़े बंगले बड़े अफसरों को नहीं मिलते तब उन्हें निचली श्रेणी के बंगले मिल जाते हैं.इसी प्रकार अन्य अफसरों को और निचले आवास मिल जाते हैं और अंत में कर्मचारी ही बिना आवास के रह जाते हैं.

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