अपना एमपी गज्जब है..11 ऊंची गोल इमारत में गूंजते नारे...दर्शक दीर्घाओं में भौंचक मुस्कराते बच्चे....
अरुण दीक्षित, वरिष्ठ पत्रकार
ऐसी बात नही है कि जो यहां हुआ वह इससे पहले कहीं और नहीं हुआ! न ही यहां जो हो रहा था वह पहली बार हो रहा था!लेकिन जो हो रहा था,जिस तरह हो रहा था और जो उसे होते हुए देख रहे थे..इस दृष्टि से अगर देखा जाए तो पुराने लोगों की भी यही राय थी - ऐसा पहले कभी नहीं हुआ!
बात हो रही है मध्यप्रदेश विधानसभा की! दिन था बुधवार!तारीख थी 14 सितम्बर!साल है 2022 !
छोटा सत्र है।काम ज्यादा!काम करवाने भी बहुत हैं।शायद यही वजह होगी कि लगभग सभी दलों के विधायक सदन और विधानसभा परिसर में मौजूद थे। दर्शक दीर्घाएं भी कमोवेश भरी हुई थीं।विधानसभा का सदन कैसे चलता है!यह देखने के लिए कुछ खास लोगों के अलावा एक स्कूल के बच्चे भी वहां मौजूद थे! विधानसभा की सुरक्षा में लगाए गए सुरक्षाकर्मी भी उत्सुकता से सदन के भीतर झांक रहे थे !
प्रश्नकाल चल रहा था।पहले ही प्रश्न पर सत्तापक्ष और विपक्ष में नोक झोंक चल रही थी कि अचानक विपक्ष के एक विधायक चिल्लाते हुए गर्भगृह की ओर आए।दीर्घाओं तक उनकी आवाज गूंज रही थी।वे गुस्से से लाल पीले हो रहे थे।अपना एक हाथ उठाकर विधानसभा अध्यक्ष को दिखाना चाह रहे थे।फिर उन्होंने अपनी एक टांग भी उठाई।शायद उनका पजामा फट गया था।वे आरोप लगा रहे थे कि सुरक्षा कर्मियों ने उनके साथ बदसलूकी की है।उनकी आवाज में उनके कुछ और साथियों ने अपनी आवाज मिलाई!शोर बढ़ा!उत्तेजना भी बढ़ी।इस बीच गृहमंत्री की तेज आवाज भी गूंजी!कोलाहल बढ़ गया।
इस बीच अध्यक्ष जी अपनी ओर से सभी सदस्यों से शांत हो जाने की गुहार करते नजर आए। पर उनकी सुनता कौन?
दर्शक दीर्घा में बैठे सभी लोग टकटकी लगाए अपने माननीय जनप्रतिनिधियों को देख रहे थे।गृहमंत्री की बुलंद आवाज भी कोलाहल में दब सी रही थी। अचानक शोर कुछ ज्यादा बढ़ा!दर्शक दीर्घा से दिखाई दिया कि विपक्ष के उत्तेजित माननीय ने सत्तापक्ष के एक माननीय के गिरेबान तक अपना हाथ पहुंचा दिया है। आमतौर पर सड़कों और अखाड़ों में देखे जाने वाले दृश्य को सदन के विशाल स्तूप के नीचे देख अन्य सदस्य तत्काल उन दोनों के बीच जा पहुंचे।उन्हें अलग किया!
लेकिन दोनो पक्ष उत्तेजित हो चुके थे।वाकयुद्ध चरम पर पहुंच गया।सदस्यों को अनुशासित करने में असफल हो रहे अध्यक्ष ने प्रश्न काल ही स्थगित कर दिया।वे आसन छोड़ अपने कक्ष की ओर प्रस्थान कर गए।
कुछ माननीय भी इधर उधर हुए!कुछ देर को शांति स्थापित हो गई।दर्शक दीर्घा में बैठे बच्चे मुस्करा रहे थे।उन्हें देख कर लग रहा था जैसे उन्हें अपने क्लास रूम सा आभास हो रहा था।
निर्धारित समयावधि के बाद सदन फिर समवेत हुआ।पक्ष विपक्ष के बीच फिर वाकयुद्ध शुरू हुआ।मुद्दा बच्चों के पोषण आहार घोटाले से जुड़ा था।मुख्यमंत्री चाहते थे कि वे इस मुद्दे पर सदन में अपना पक्ष एक वक्तव्य के जरिए रखें।अध्यक्ष ने उन्हें अनुमति भी दे दी थी।लेकिन विपक्ष तैयार नहीं था।दोनों ओर से जोर जोर से आवाजें आ रही थीं।बाघा सीमा जैसी उत्तेजना सदन में दिख रही थी!
उधर बच्चे...वे टकटकी लगाए सदन में चल "कार्यवाही" को देख रहे थे।वे मुस्करा भी रहे थे।शायद उन्हें अपनी क्लास और उसका कमजोर मॉनिटर याद आ रहा था।वे आपस में कानाफूसी भी करते दिख रहे थे।क्योंकि जब सदन में ही कोलाहल हो रहा था तो उन्हें दीर्घा में कानाफूसी करने से कौन रोकता। शोरगुल के बीच अचानक मुख्यमंत्री अपना वक्तव्य पढ़ने लगे।विपक्ष सदन के गर्भगृह में पहुंचा।जोर जोर से नारे लगने लगे।
भव्य,भाग्यविधाता इमारत में... चोर है ...चोर है ..का शोर गूंज रहा था।और नारे भी सुनाई दे रहे थे।उन्हें लिखना मुनासिब नहीं होगा।शोर में मुख्यमंत्री की आवाज भी दब रही थी।लेकिन उनका पढ़ना जारी था।वे बोलते जा रहे थे.. कागज पलटते जा रहे थे!
और विपक्षी विधायक अपना वॉल्यूम बढ़ाते जा रहे थे !
उधर दर्शक दीर्घा में बैठे बच्चे मुस्करा रहे थे!कौतूहल से पूरा दृश्य देख रहे थे!इस बीच सदन में एक आवाज गूंजी! उस आवाज में बच्चों को भी शामिल कर लिया गया!कौन माननीय बोल रहे थे,यह तो नहीं मालूम!लेकिन वे कह रहे थे - दर्शक दीर्घा में बच्चे बैठें है।बच्चों का राशन सरकार खा गई है।वे काफी देर तक बच्चों को संबोधित करते रहे!सदन में नारेबाजी चलती रही! मुख्यमंत्री अपना वक्तव्य पढ़ते रहे! और बच्चे..वे मुस्कराते रहे!गर्भगृह में जमीन पर बैठे माननीयों को निहारते रहे!सदन की कार्यवाही जारी रही।
इस बीच अध्यक्ष महोदय ने यह ऐलान भी किया कि आज भोजन अवकाश नही होगा।विधायकगण सदन की गैलरी में जाकर भोजन कर सकते हैं।उसकी व्यवस्था कर दी गई है। लेकिन थोड़ी देर बाद ही सदन की कार्यवाही अगले दिन तक के लिए स्थगित कर दी गई।बताया गया कि हंगामे के बीच मुख्यमंत्री का वक्तव्य तो पूरा हुआ ही,विधाई कार्य भी सम्पूर्ण हो गए हैं।आज का काम खत्म!
और बच्चे...उन्हें विधानसभा अध्यक्ष की ओर भोजन भी कराया जाना था!सदन स्थगित होने के बाद वे लाइन लगाकर,पूरे अनुशासन में,भोजन स्थल पर पहुंचे।पानी बरसने की वजह से थोड़ी असुविधा हो रही थी।लेकिन उनकी लाइन कायम थी।मुंह बंद थे।
मैने सोचा कि इन बच्चों का विधानसभा की कार्यवाही देखने का अनुभव जाना जाय!एक छात्र से पूछा तो वह सकुचा गया।कुछ बोला नही..लेकिन उसके पीछे खड़ी एक छात्रा ने बड़ी ही बेबाकी से कहा - कभी नही भूलेंगे हम यह दिन!बहुत मजा आया।खासतौर से तब..जब सदन में हमारा उल्लेख हुआ!हमारा नाम लिया गया।
लडकी को बात करते देख शायद उस लड़के का ईगो हर्ट हुआ। वह बीच में ही बोल पड़ा - मुझे तो कुछ कुछ अपनी क्लास जैसा ही फील हुआ।लेकिन मजा बहुत आया। एम एल ए लोग भी ऐसा करते हैं?
इस बीच कुछ और बच्चे आगे आए।लेकिन मैं आगे बढ़ गया।अब क्या पूछता उनसे!उन्हें जो संदेश मिला वह तो साफ दिख रहा था!
आखिर अपना एमपी सच में गज्जब है ! बहुतै गज्जब !