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14 सितम्बर हिन्दी दिवस पर विशेष - हिन्दी : हमें क्षमा करें , तुझे राष्ट्रभाषा का गौरव नहीं दिला सके !


डॉ. चन्दर सोनाने
                  पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। गत 15 अगस्त को हमारे देश को आजाद हुए 75 साल हो गए। भारत के संविधान के भाग 17 के अनुच्छेद 343 (1) में कहा गया है कि राष्ट्र की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। और आज देश को आजाद हुए 75 साल हो जाने के बाद भी हम हिन्दी को राष्ट्रभाषा के गौरवशाली पद पर बैठाने में असमर्थ रहे हैं ! इसके लिए हम सब दोषी हैं।
                 हिन्दी को राजभाषा का दर्जा 14 सितम्बर 1949 को मिला। इसके बाद 14 सितम्बर 1953 से राजभाषा प्रचार समिति द्वारा हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस का आयोजन किया जाने लगा। देशभर में हिन्दी दिवस आजकल सिर्फ औपचारिक समारोह बनकर रह गया है। हर साल हर शहर में आयोजित हिन्दी दिवस समारोह में यह दुख व्यक्त किया जाता रहा है कि हिन्दी राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई है। किन्तु इस दिशा में किसी भी राजनैतिक दल ने गंभीरतापूर्वक प्रयास नहीं किया। इसी कारण आज भी हिन्दी राष्ट्रभाषा के गौरव से वंचित है।
                 वर्तमान में हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। भारत में हिन्दी सबसे अधिक बोली जाती है। यहाँ के 77 प्रतिशत क्षेत्र में हिन्दी पढ़ी , बोली और समझी जाती है। इसके बावजूद दक्षिण के कुछ राज्यों में हिन्दी विरोध को देखते हुए समस्त राजनैतिक दल हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की हिम्मत आज तक जुटा नहीं पाए ! हिन्दी को देश में और विश्व में सम्मानजनक पद पर स्थापित करने के लिए 10 जनवरी 1970 से विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया जाने लगा। उस समय से लगभग हर वर्ष विश्व हिन्दी सम्मेलन देश में और विदेश में आयोजित होते रहे हैं। उन विश्व हिन्दी सम्मेलनों में भी हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए भारत सरकार से माँग की जाती रही है। पिछले पाँच दशकों से यह सम्मेलन लगभग नियमित रूप से हो रहा है, किन्तु 52 साल से भी अधिक समय बीत जाने के बाद आज भी हमारे देश की किसी भी सरकार ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता देने का गंभीर प्रयास नहीं किया।
                      देश के हिन्दी भाषी राज्यों के हिन्दी के समाचार पत्र भी पिछले कुछ सालों से अंग्रेजी मोह से पीड़ित नजर आ रहे हैं। मध्यप्रदेश की अगर हम बात करें तो इस राज्य के सबसे अधिक प्रचार संख्या का दम्भ भरने वाले दैनिक भास्कर समाचार पत्र ने ही सबसे पहले हिन्दी का सत्यानाश करना शुरू किया। पिछले कुछ सालों से इस समाचार पत्र ने मुख पृष्ठ से लेकर अंतिम पृष्ठ तक शीर्षकों में अंग्रेजी शब्दों को ठूस-ठूस कर उपयोग करने का निंदनीय प्रयास शुरू किया। शीर्षकों के साथ-साथ समाचारों के अंदर भी जबरजस्ती अंग्रेजी शब्दों की भरमार देखी गई है। मध्यप्रदेश के ही 2 और 3 नम्बर पर रहने वाले समाचार पत्रों पत्रिका और नईदुनिया में भी यही प्रवृत्ति पेठ कर गई है। ये समाचार पत्र हिन्दी की खाते हैं और अंग्रेजी का बजाते हुए देखे जा रहे हैं। हिन्दी का बेड़ा गर्क करने वालों में इन्ही जैसे समाचार पत्रों का नाम इतिहास में प्रमुखता से लिया जाता रहेगा। इन्हें कभी माफ नहीं किया जा सकता। और दुःखद यह भी है कि इस प्रकार का रोग अन्य समाचार पत्रों में भी तेजी से फैल रहा है। यह अत्यन्त दुःखद और निंदनीय है।
                    देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री अटलबिहारी वाजपेयी हिन्दी के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने सयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर हिन्दी प्रेमियों का दिल जीत लिया था। किसी प्रधानमंत्री द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर हिन्दी में संबोधन देने का यह पहला अवसर था। अटल जी देश के सार्वजनिक सभाओं में भी हमेशा हिन्दी में संबोधित करते थे। इस कारण भी वो देश के लोगों के दिलों पर राज करने लगे थे। देश के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी भी देश में सार्वजनिक सभाओं में हमेशा हिन्दी में ही संबोधित करते हैं। इसलिए वे अपनी बात सीधे लोगों तक पहुँचाने में सफल भी माने जाते हैं। एक तरह से कहा जा सकता है कि अटल जी के बाद मोदी जी ही प्रधानमंत्री के सर्वोच्च पद पर रहते हुए सार्वजनिक सभाओं में हिन्दी का इतना ज्यादा प्रयोग करते देखे गए हैं। यह हम सब हिन्दी प्रेमियों के लिए खुशी और गर्व की बात है। यदि वे हिन्दी को राष्ट्रभाषा के गौरवशाली पद पर स्थापित कर पाएँ तो देशवासियों और हिन्दी प्रमियों पर उनका उपकार होगा। 
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