रेप पर फांसी तो करप्शन पर उम्र कैद कानून क्यो नही..?
एमपी में 'मिशन करप्शन'- पैकअप के लिए कठोर कानून जरूरी ...
ना काहू से बैर
राघवेंद्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
भोपाल- एमपी में बाबू से लेकर जबलपुर के बिशप तक मिशन करप्शन में सिर से पैर तक लिपटे नजर आ रहे हैं। ऐसे में सरकार भी एक्शन के मोड पर दिख रही है। रेप पर फांसी तो करप्शन पर उम्र कैद का कानून क्यों नही..? अफसरों की जिम्मेदारी तय किए बिना करप्शन का पैकअप होना मुश्किल लगता है। केवल निलंबन से काम नही चलेगा। विधानसभा में ऐसा कानून बनाया जाए कि करप्शन जिस महकमे में हो उसके अधिकारी- कर्मचारी पर केस दर्ज कर सेवाएं समाप्त की जाए। भ्रष्टाचार भी देश के साथ द्रोह है। अस्पतालों में आग से मरीज जल कर मर रहे हैं, अवैध कालोनियां बन रही है, बाबूओं से लेकर बिशप तक करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार कर रहे हैं लेकिन उनका बाल बांका भी नहीं होगा ऐसा आम जन के बीच कहां - सुना जा रहा है। काफी हद तक यह सच भी है इसलिए ऐसा कानून भी बनाया जाए कि करप्शन करने वालों का पैकअप हो जाए।
हाल ही में नगर निगमों में चुनाव हुए और सरकार ने तय किया है कि ऐसे मकानों का 15 दिनों में सर्वे करे रिपोर्ट सौंपी जाए जो नक्शे के विरुद्ध बनाए गए हैं। बात अच्छी है लेकिन इससे पैसे खाने के नए रास्ते खुल जाएंगे। क्योंकि अवैध निर्माण कराने का अपराध जिस सरकारी सिस्टम ने किया था अब वही सर्वे के बाद कार्रवाई का जिम्मा भी उठाएगा। सर्वे तो इस बात का हो कि अवैध निर्माण कौन से कर्मचारी और अधिकारियों के रहते हुए अब उन इतनी कठोरता से एक्शन हो भविष्य में नक्शा विरुद्ध मकान- मार्केट और अवैध कालोनियां न बन सके।
जाहिर है सर्वे के कंपाउंडिंग करने के साथ बुलडोजर से तोड़ने का विकल्प खुला रहेगा। बस यही पर थोड़ा ठिठक कर सोचने की जरूरत है । आखिर जब स्वीकृत नक्शे के विपरीत मकान- दुकानें बन रहे थे तब नगर निगम का अमला क्या सो रहा था ? असली गुनहगार तो नगर निगम का अमला ही है। लेकिन वह साफ बच जाता है और मकान पर बुलडोजर की सजा और जुर्माना भुगतता है आम आदमी।
सरकार ने सर्वे के आदेश निकाल दिए हैं अब इससे अतिक्रमण और अवैध निर्माण कराने वाले अमले की पौं बारह समझिए, पांचों उंगलियां घी में और सिर कढाई में। पहले करोड़ों का अवैध निर्माण कराने में माल सूता और अब उसे तोड़ने के नाम पर फिर भयादोहन का दौर चलेगा। चुनावी साल है सो बुलडोजर और तबादले के नाम पर बल्ले बल्ले समझो। सरकार की मंशा तो ठीक है पर दर्द के साथ दवा देने वाले अफसरों पर कठोर कानून की नकेल जरूरी है। जैसे बलात्कार के आरोपियों पर फास्ट ट्रैक कोर्ट में केस की सुनवाई कर एक एक महीने में फंसी तक की सजा मामा शिवराज के राज होने के भी उदाहरण बने है।
जबलपुर में बिशप सीपी सिंह के घर ईओडब्ल्यू के छापे में 165 करोड़ रुपए नकद मिले। अंडरवर्ल्ड से भी बिशप के तार जुड़ने के सूत्र मिल रहे हैं। खाद को लेकर भी 130 मीट्रिक टन सरकारी यूरिया निजी गोदामों में मिला और जब यह बात जनता के बीच आई तो उसे बरामद भी किया गया। इसी तरह राशन कार्ड का सस्ता अनाज भी अरबों रुपए के घोटाले की खबरों का जरिया बन रहा है। खाद्य निरीक्षक से लेकर जिला खाद्य अधिकारी भी भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे हुए हैं घटिया खाद्य सामग्री वितरण से लेकर कम तोलने और महीना हफ्ता वसूली की बातें आम आदमी को भी पता है। मुख्यमंत्री भी इस पर नाराजगी जता चुके हैं। त्योहारों का सीजन शुरू हो गया है खाद्य सामग्री में मिलावट और कम तोलने को लेकर प्रदेश व्यापी छापामार अभियान की जरूरत है।
कलेक्टर कार्यालय,नगर निगमों से लेकर आम ओ खास से जुड़े महकमें रिश्वत के अड्डे बनते जा रहे है। अच्छी बात यह है कि मुख्यमंत्री मामा शिवराज सिंह चौहान भ्रष्टाचार की की ताजा खबरों को लेकर संवेदनशील है उन्होंने खुद कमान हाथ में लेते हुए बिशप से लेकर बाबू अब तक गहराई से जांच और कठोर कार्रवाई करने का फैसला किया है लेकिन बलात्कारियों की तरह फांसी का भले ही कानून ना हो लेकिन भ्रष्टाचारियों का आजन्म कारावास और नौकरी से बर्खास्तगी जैसे कानून के बगैर इसे काबू में करना कठिन लगता है।
मैहर में लगे नारे...
भाजपा शासन में शायद ऐसा पहली बार हो रहा है कि मुख्यमंत्री काफिले के बीच में नेतृत्व परिवर्तन के नारे लगे। सबसे खास बात हुई है कि नारे लगे तो देश का नेता कैसा हो नरोत्तम मिश्रा जैसा हो... से जुड़ा है अब इस बात की जांच पड़ताल हो रही है कि यह नारेबाजी गृहमंत्री मिश्रा को बदनाम करने की साजिश तो नहीं थी... कुल मिलाकर लोकल इंटेलिजेंस का फेलियर भी इसमें देखा जा रहा है। इसके पहले भी एक केंद्रीय मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारी के बीच जुगलबंदी को लेकर भी भाजपा के भीतर चर्चाएं गर्म हैं... आमतौर पर भाजपा के संस्कार और शिक्षा में इस तरह की सियासत को स्वीकार नहीं किया जाता है लेकिन अगर यह आम होती रही तो भविष्य में इन पर कोई गंभीरता से शायद बातें भी ना करें...
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