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कूनो को शेर ना देने के हठ से उपजे अपराधबोध की अभिव्यक्ति तो नहीं मोदीजी का चीता प्रेम..?


श्री श्रीप्रकाश दीक्षित ,संपादक,जनहित मिशन डाट काम

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                   तो अब यह तय हो गया है की मध्यप्रदेश का  कूनो नेशनल पार्क इसी महीने प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन पर चीता से आबाद हो जाएगा.खुद मोदीजी चीतों की अगवानी के लिए कूनो पहुँच रहे है.वैसे नामीबिया सरकार के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर होने के बाद हल्ला मचा था की 15 अगस्त से पहले चीते भारत आ जाएंगे,जब नहीं आए तब कहा गया की दक्षिण अफ्रीका के साथ अनुबंध होने के बाद दोनों देशों से एकसाथ चीते लाए आएँगे.पर फिलहाल नामीबिया से आठ चीते ही आ रहे हैं, दक्षिण अफ्रीका के बारें में खबर जरूर है की वहां से चीता विशेषज्ञों का दल कूनो आया  है जो चीतों के रहवास पर अपनी सरकार को रिपोर्ट देगा जिसके बाद ही वहां से चीता आने का फैसला होगा.राज्य सरकार की मुनादी के बाद तय है की  मोदीजी की मौजूदगी में 17 सितम्बर को आठ चीते कूनो में दाखिल होंगे.  
                        इस बीच खबर आई  है की कूनो पालपुर सेंचुरी के लिए 260 बीघा जमीन और किला देने वाले पूर्व राजघराने के वारिस ने इसे लौटाने के लिए अदालत की शरण ली है.घराने के श्रीगोपाल देव सिंह का कहना है की हमने यह सब शेर याने लायन की बसाहट के लिए दिया था ना की चीता के लिए जो यहाँ बसाया जा रहा है. दरअसल कूनो पार्क भारत सरकार की योजना के तहत शेरों के लिए ही बनाया गया है.भारत में शेर गुजरात के गिर में ही पाए जाते हैं और विशेषज्ञों की रिपोर्ट के मुताबिक इन्हें एक और जगह ना बसाया गया तो उनके चीता जैसे लुप्त होने का खतरा है.तब श्योपुर की आबोहवा शेरों के अनुकूल पाए जाने पर भारत सरकार के निर्देश पर कूनो मे नेशनल पार्क का निर्माण कराया गया.पार्क बन जाने पर गुजरात की मोदी सरकार ने शेर देने से इनकार कर दिया और सुप्रीम कोर्ट के दो दो फैसलों की भी परवाह नहीं की.
                      मोदीजी के प्रधानमंत्री बन जाने पर  केंद्र अपनी ही योजना पर कुंडली मार कर बैठ गया.गिर से कूनो शेर भेजने का अध्याय समाप्त करने के लिए वहां  चीतों को आयात कर बसाने का निर्णय किया गया.माना जाता है की कूनो में चीता को बसाने के पीछे यहाँ गिर से शेर लाने को रोकने का प्लान काम कर रहा है.वैसेञ नामीबिया,केनिया और दक्षिण अफ्रीका आदि में शेर और चीता सदियों से साथ रह रहे हैं. शेरों केञ मामले में गुजरात की हठधर्मी से मोदीजी की साख जरूर प्रभावित हुईञ है और शायद उन्हें भी इसका एहसास है.तभी तो चीता की वापसी पर केंद्र सरकार ने अपने उपक्रम इंडियन आयल के मार्फ़त  बड़ा विज्ञापन छपवाया है.इतना ही नहीं इंडियन आयल चीता प्रोजेक्ट के लिए ५०.२२ञ करोड़ रुपये भी दे रही है.अब खुद मोदीजी खुद उनके स्वागत के लिए पधार रहे है.यह एक तरह से शेर ना देने की हठधर्मी से उपजे अपराधबोध की अभिव्यक्ति ही तो  है.

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