भाजपा जीत रही क्योंकि काँग्रेस मैदान मे है ही नहीं
श्री श्रीप्रकाश दीक्षित ,संपादक,जनहित मिशन डाट काम
दो दलीय लोकतंत्र वाले मध्यप्रदेश मे मुख्य प्रतिपक्ष काँग्रेस की हालत देख कर समझ मे नहीं आ रहा की उस पर तरस खाएं या लानत-मलानत भेजें..! अध्यक्ष बनने के बीस महीने बाद अरूण यादव अपनी कार्यकारिणी का गठन करने मे कामयाब हो पाए हैं .! तकरीबन 200 सदस्यों से भरपूर जम्बो कार्यकारिणी मे सबको साधा गया है,जनता को छोड़ कर.अध्यक्षजी ने चालीस महामंत्री और अस्सी से ज्यादा सचिव बनाए हैं.पार्टी मे जान फूंकने के लिए स्थायी आमंत्रितों के अलावा 18 उपाध्यक्ष भी नियुक्त किए गए हैं.अभी दर्जन भर प्रवक्ताओं की नियुक्ति होना है.साल भर की कवायद और सभी गुटों को साधने के लिए पदों की थोक बंदरबांट के बाद भी कमबख्त असंतोष और आक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा है.
अब इस पार्टी से क्या आप उम्मीद करेंगे कि वह भाजपा को चुनौती देगी..? व्यापम घोटाले की बदनामी के बावजूद उपचुनावों और स्थानीय चुनावों मे भाजपा को प्रदेश मे एक के बाद एक मिल रही कामयाबी को मुख्यमंत्री शिवराज जनता का आशीर्वाद बता गलतफहमी का शिकार हैं.हकीकत मे उन्हे लस्त-पस्त और दयनीय काँग्रेस का शुक्रिया अदा करना चाहिए जो रस्म अदाएगी के लिए मैदान मे रहती है.जनता को पूछने का हक है कि ऐसी खस्ता हाल पार्टी को भला कोई क्यों वोट दे..? याद करें पिछले विधानसभा चुनाव के ऐन पहले काँग्रेस के उपनेता राकेशसिंह चौधरी नाटकीय तरीके से भाजपा से जा मिले थे.याददाश्त पर ज़ोर दें तो याद आएगा की लोकसभा चुनाव मे सुषमा स्वराज के खिलाफ विदिशा से काँग्रेस उम्मीदवार किस सनसनीखेज तरीके से मैदान से बाहर हो गए थे..!
विधानसभा मे नेता प्रतिपक्ष चुनने का वक्त आया तब भंग सदन के नेता प्रतिपक्ष अजयसिंह का यह कह कर विरोध किया गया की अर्जुनसिंह के निधन के बाद उनको अनुकंपा के बतौर यह पद दिया गया था,तब कटारेजी की लाटरी खुल गई.अनुकंपा आरोप यादव पर भी मढ़ा जा सकता है क्योंकि वे स्वर्गीय सुभाष यादव के पुत्र के नाते ज्यादा जाने जाते हैं.कमजोर और लोप्रोफ़ाइल अरूण यादव सबको वैसे ही भा गए,जैसे लोप्रोफ़ाइल मोतीलाल वोरा दो बार मुख्यमंत्री.रह चुके हैं.तीन तीन विधानसभा चुनाव हार जाने के बाद भी काँग्रेस को होश नहीं आया जिससे जनता के सामने विकल्प ही नहीं है.इसलिए मुख्यमंत्री शिवराज को जीत पर कुप्पा होने और खालीपीली घोषणाओं और वायदों से परहेज कर ठोस काम करना चाहिए वरना दिल्ली जैसा तीसरा विकल्प आने मे देर नहीं लगेगी ।